Edited By ,Updated: 11 Jan, 2016 02:40 PM
किसानों के लिए सरकार की महत्त्वाकांक्षी बीमा योजना को 'भारतीय किसान बीमा योजना' नाम दिया जाएगा और इसका लक्ष्य अगले 2 से 3 वर्षों में करीब 50 फीसदी किसानों को बीमे के दायरे में लाना होगा।
नई दिल्लीः किसानों के लिए सरकार की महत्त्वाकांक्षी बीमा योजना को 'भारतीय किसान बीमा योजना' नाम दिया जाएगा और इसका लक्ष्य अगले 2 से 3 वर्षों में करीब 50 फीसदी किसानों को बीमे के दायरे में लाना होगा। इस समय कुल फसल रकबे 19.4 करोड़ हैक्टेयर के करीब 23 फीसदी हिस्से का ही बीमा हो पाता है। अधिकारियों ने कहा कि फसल बीमा योजना के प्रस्ताव के अंतिम प्रारूप के मुताबिक किसानों के लिए प्रीमियम की औसत दर बीमित राशि के 2.5 फीसदी से अधिक नहीं होगी और यह इससे भी कम रखी जा सकती है, वहीं प्रीमियम भुगतान पर सरकार 90 फीसदी तक सब्सिडी देगी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री के दखल के बाद कृषि मंत्रालय में फसल बीमा के अंतिम प्रारूप पर चर्चा हुई और अब इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। यह मंजूरी इस सप्ताह मिलने की संभावना है।' इस समय फसल बीमा का प्रीमियम कुछ मामलों में 25 फीसदी तक होता है। मोटे अनुमानों के मुताबिक सब्सिडी मुहैया कराने के लिए केंद्र पर हर साल करीब 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ सकता है।
इस नई योजना में ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश समेत बहुत सी आपदाओं के लिए खेत स्तर पर आकलन किया जाएगा, ताकि प्रत्येक किसान को बीमा राशि मिलना सुनिश्चित हो सके, भले ही छोटे से क्षेत्र में ही नुकसान क्यों न हुआ हो। वर्तमान बीमा योजनाओं में दावा तय करने के लिए एक बड़े क्षेत्र में नुकसान के आकलन किया जाता है, जो छोटे किसानों के हित में नहीं होता है।
नई योजना में दावों का निपटान नुकसान के आकलन के 30 से 45 दिनों के भीतर किया जाना अनिवार्य है और स्मार्टफोन, मोबाइल, टैब आदि के द्वारा ली गई फसल की तस्वीरों को नुकसान का वैध प्रमाण माना जाएगा। अधिकारी ने कहा, 'इससे शीघ्रता से दावों के निपटान में मदद मिलेगी।' भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय जाखड़ ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'मेरा मानना है कि बीमा और हर्जाने को अलग-अलग करना चाहिए और बीमा केवल जोखिम कम करने वाली रणनीति ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि इससे कुछ प्रोत्साहन भी मिलना चाहिए। इसके साथ ही फसल आकलन सटीक होना चाहिए, अन्यथा अपात्र लोगों को सभी दावे मिल जाएंगे और वास्तविक नुकसान वाले किसानों को कुछ नहीं मिल पाएगा।'
उन्होंने कहा कि सही आकलन के अलावा फसल बीमा को आधार से जोड़ा जाए, ताकि फर्जीवाड़ा रोका जा सके। किसान जागृति मंच के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश योजना आयोग के सदस्य सुधीर पंवार ने कहा कि दावों के आकलन की इकाई एक व्यक्तिगत किसान होना चाहिए और न कि एक गांव, जो वर्तमान चलन है। कीटों के प्रकोप की वजह से उत्पादन में नुकसान को भी नए फसल बीमा में शामिल किया जाना चाहिए। पंवार ने कहा, 'इस समय कृषि में दावों का निपटान स्वास्थ्य से कम है, जिसमें सुधार की जरूरत है। साथ ही कई बार बहुत कम प्रीमियम की वजह से कंपनियां कृषि बीमा में रुचि नहीं लेती हैं।'