Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Jul, 2017 09:23 AM
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी हरिशयनी, देवशयनी,विष्णुशयनी, पदमा एवं शयन एकादशी के नाम से प्रसिद्घ है।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी हरिशयनी, देवशयनी,विष्णुशयनी, पदमा एवं शयन एकादशी के नाम से प्रसिद्घ है। इस बार यह एकादशी 4 जुलाई को है। पदमपुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार मास के लिए शयन करने के लिए चले जाते हैं। जब सूर्य कर्क राशि में आता है तब भगवान शयन करते हैं तथा जब तुला राशि में आता है तो भगवान जागते हैं। यह चातुर्मास की पहली एकादशी है, इसलिए इसकी महिमा सर्वाधिक है। इस दिन हवन यज्ञ, धार्मिक कार्य एवं दानादि देकर पुण्यलाभ सहज ही प्राप्त किया जा सकता है।
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कुछ लोग एकादशी से एकादशी तक ही चतुर्मास व्रत के नियम का पालन करते हैं, इसलिए एकादशी से एकादशी तक का चातुर्मास आषाढ़ मास की हरिशयनी एकादशी से शुरु होकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की हरिप्रबोधिनी एकादशी तक होगा अर्थात ऐसे लोग 4 जुलाई से 31 अक्तूबर तक चातुर्मास व्रत के नियमों का पालन करेंगे।
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जो लोग सूर्य के हिसाब से महीने की शुरुआत मानते है वह सक्रांति से सक्रांति तक और जो चन्द्रमा के हिसाब से महीने की शुरुआत मानते हैं वह पूर्णिमा से पूर्णिमा तक चातुर्मास व्रत के नियम का पालन करेंगे। सक्रांति से सक्रांति तक का चातुर्मास 16 जुलाई से 17 अक्तूबर तक और पूर्णिमा से पूर्णिमा तक का चातुर्मास 9 जुलाई से 4 नवम्बर तक चलेगा।
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4 जुलाई से 31 अक्तूबर तक भगवान श्री विष्णु लक्ष्मी जी सहित क्षीर सागर में शयन करेंगे तथा 31 अक्तूबर को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवप्रबोधिनी एकादशी पर उठेंगे। पदमपुराण के अनुसार इन चार महीनों में भगवान विष्णु के दो रूप अलग-अलग स्थान पर वास करते हैं, उनका एक स्वरूप राजा बलि के पास पताल और दूसरा रूप क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर शयन करता है, इसी कारण इन चार महीनों में विवाह आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते।
वीना जोशी
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