Edited By ,Updated: 25 Feb, 2015 11:01 AM
बजट सत्र गत सोमवार को शुरू होते ही मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर विपक्ष के निशाने पर है। गत मंगलवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा में बिल पेश किया
नई दिल्ली: बजट सत्र गत सोमवार को शुरू होते ही मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर विपक्ष के निशाने पर है। गत मंगलवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा में बिल पेश किया तो सदन से लेकर सड़क तक हंगामा मच गया। वहीं जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे ने बाकि कसर पूरी कर दी।
अन्ना ने साफ किया वह किसानों के हित का हनन होने नहीं देंगे। सरकार के अंदर भी इस बिल को लेकर खींचतान देखने को मिली। भूमि युद्द में अन्ना, विपक्ष और सहयोगियों के आक्रमण से मोदी सरकार थर्रा उठी है। एनडीए की बैठक में सहयोगी शिवसेना और अकाली दल ने साफ कर दिया है कि वह अधिग्रहण से पहले किसानों की सहमति को प्राथमिकता मानते हैं।
स्थिति स्पष्ट है, भूमि अधिग्रहण बिल पर मोदी सरकार एक छोर पर अकेली है तो दूसरी छोर अन्ना, विपक्ष, किसान और खुद सरकार के कुछ सहयोगी। मंगलवार को झारखंड, बिहार समेत कई राज्यों में इसके विरोध में किसानों ने प्रदर्शन किया। भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर एनडीए सरकार के भीतर से ही विरोध के स्वर उठने लगे हैं। उसकी महत्वपूर्ण सहयोगी शिवसेना ने मौजूदा स्वरूप में विधेयक का विरोध किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई मंत्रियों ने इस बात के पर्याप्त संकेत दिए कि किसानों की चिंताओं का संज्ञान लेने के लिए कार्रवाई की जा रही है और विधेयक में बदलाव किए जा सकते हैं। कृषि मंत्री बीरेन्द्र सिंह द्वारा मंगलवार को लोकसभा में लगभग समूचे विपक्ष के वाकआउट के बीच भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश किए जाने के साथ ही सरकार के भीतर और बाहर गहन विचार विमर्श की प्रक्रिया दिनभर जारी रही।
वहीं किसानों का कहना है कि विधेयक में परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण करने से पूर्व 70 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति का प्रावधान होना चाहिए और साथ ही इसके सामाजिक प्रभाव के आकलन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। नायडू ने बाद में बताया कि एनडीए के कई सांसदों ने सुझाव दिया कि ऐसी जमीन जहां परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी लेकिन अधिग्रहण के 20 साल बाद भी कुछ नहीं हुआ, उसे किसानों को लौटा दिया जाना चाहिए।
नायडू ने कहा कि भूमि अध्यादेश इसलिए लाया गया था क्योंकि 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने कानून में संशोधन की मांग की थी क्योंकि कई ढांचागत विकास परियोजनाएं इसके चलते अटकी पड़ी थीं। अकाली दल के सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा कि कुछ गलतफहमियां थीं, जिन्हें नायडू ने दूर कर दिया। वे पार्टी के भीतर विचार विमर्श करेंगे कि इसे समर्थन दिया जाए या नहीं।