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देखें तस्वीरें, सिरमौर रियासत की कहानी इमारतों की जुबानी

Edited By ,Updated: 04 May, 2015 09:05 AM

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सिरमौर रियासत की राजधानी वर्तमान में जिला मुख्यालय नाहन में यहां के चंद्रवंशी राजा-महाराजाओं की आन-बान-शान की गाथा सुनाती ये भव्य इमारतें जिनको वजूद में आए 100 साल से ज्यादा बीत चुके हैं लेकिन इन इमारतों की शान ज्यों की त्यों बरकरार है।

नाहन: सिरमौर रियासत की राजधानी वर्तमान में जिला मुख्यालय नाहन में यहां के चंद्रवंशी राजा-महाराजाओं की आन-बान-शान की गाथा सुनाती ये भव्य इमारतें जिनको वजूद में आए 100 साल से ज्यादा बीत चुके हैं लेकिन इन इमारतों की शान ज्यों की त्यों बरकरार है। ये सभी इमारतें आज भी शाही दौर के उस सुनहरे अतीत की याद दिलाती हैं। कुछ इमारतों का स्वामित्व शाही परिवार के पास है तो कुछ इमारतें सरकारी हैं। इन इमारतों को स्थानीय कारीगरों ने अपने हुनर से तराशा था। कुछ इमारतों में विक्टोरिया जमाने के स्थापत्य कला का मिश्रण देखने को मिलता है। इन इमारतों को रियासतकाल में एक्सियन रहे डा. पीयर सैल ने डिजाइन किया था। इतिहास के पन्नों के अनुसार इन इमारतों में से ज्यादातर महाराजा शमशेर प्रकाश के जमाने में बनी हैं। जो अपने काल में एक दूरदर्शी व लोकप्रिय शासक थे। केंद्र सरकार की एजैंसी इंटैग की रिपोर्ट में 100 साल से ज्यादा पुरानी ये इमारतें हैरिटेज की फैहरिस्त में शुमार हैं।

 

रॉयल पैलेस
सिरमौरी हुकमरानों की राजधानी रहे शहर में रॉयल पैलेस शानदार इमारत है। 1621 में जब शहर बसना शुरू हुआ तो महाराजा कर्म प्रकाश ने पैलेस का निर्माण शुरू किया। महाराजा फतेह प्रकाश ने पैलेस के विस्तार में अहम भूमिका निभाई। पैलेस से जैसलमेर से आए चंद्रवंशी राजाओं की 42 पीढिय़ों ने शासन किया। इसमें सिरमौरी ताल राजबन का दौर भी शामिल है। सिरमौर पैलेस में महाराजा कर्म प्रकाश से लेकर अंतिम शासक महाराजा राजेंद्र प्रकाश ने निवास किया। वर्तमान में सिरमौरी हुकमरानों की शान-बान रहे इस पैलेस के रखरखाव में कानूनी लड़ाई बाधा बनी। पैलेस का बहुत सा हिस्सा खस्ताहाल हो चुका है लेकिन हाल ही में पैलेस के रखरखाव को लेकर अदालत के फैसले से दोनों पक्षों को राहत मिली है।

 

पहले दवाखाना था फिर विक्टोरिया डायमंड जुबली अस्पताल बना
रियासत काल में महाराजा शमशेर प्रकाश ने 1887 में इस भव्य इमारत का निर्माण इंगलैड में महारानी विक्टोरिया के शासन की डायमंड जुबली के मौके पर करवाया। वास्तुकला की दृष्टि से यह इमारत बेजोड़ है। विक्टोरिया डायमंड जुबली भव्य इमारत वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग के अधीन है। रखरखाव के चलते यह इमारत खस्ताहाल हो चली है। रियासत में इससे पहले एक साधारण सा दवाखाना चलता था जिसमें रोगियों का यूनानी व आयुर्वैदिक पद्धति से इलाज होता था लेकिन महाराजा ने महारानी विक्टोरिया के शासन की डायमंड जुबली के मौके पर यह अस्पताल बनवाया जिसमें महिलाओं व पुरुषों को अलग-अलग भर्ती करने व इलाज करने की सुविधा मौजूद थी। वर्तमान में इस इमारत में सरकारी नर्सिंग होस्टल चलाया जा रहा है। इमारत को बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग व लोक निर्माण विभाग के बीच जंग जारी है। अगर सरकार चाहती तो इसका संरक्षण सालों पहले हो सकता था।

 

आज का डीसी ऑफिस अंग्रेज मेहमानों का था रैस्ट हाऊस
वर्तमान में जिलाधीश कार्यालय की इमारत को रियासत के जमाने में स्टोन हैंज के नाम से जाना जाता था। महाराजा शमशेर प्रकाश ने इसका निर्माण करवाया। रियासत में यह सिरमौरी शासकों के खास महमानों के लिए रैस्ट हाऊस के तौर पर प्रयोग किया जाता था। जानकारी के अनुसार इस इमारत में महाराजा अपने अंग्रेज महमानों को ठहराया करते थे। बाद में रियासत काल में ही इस इमारत को कलैक्टर ऑफिस के रूप में तबदील कर दिया गया। आजादी के बाद इस इमारत का प्रयोग जिलाधीश कार्यालय के रूप में हो रहा है। इस दो मंजिला इमारत में 2 बड़े हाल व कई कमरे हैं इमारत का निर्माण पत्थर से किया गया है। वास्तु की दृष्टि से यह भी नायाब है।

 

तंबूखाना
ऐतिहासिक चौगान के किनारे 100 साल से ज्यादा पुरानी तंबूखाना की इमारत भी वास्तु की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। रियासत के जमाने में इमारत का प्रयोग टैंट व अन्य साजो सामान रखने के लिए होता था। वर्तमान में यह इमारत शाही परिवार की संपत्ति है दोनों जगह इमारत का निर्माण सुंदर गढ़ाई वाले पत्थरों से किया गया है। जानकारी के अनुसार इस इमारत में बड़े हाल बने हैं और सुंदर मेहराबों से बना बरामदा यहां इमारत के आगे से निकलने वालों को आकर्षित करता है। तंबूखाना का निर्माण महाराजा शमशेर प्रकाश के जमाने में हुआ। वर्तमान में इमारत के ज्यादातर कमरे बंद हैं और कुछ हिस्से का प्रयोग हो रहा है।

 

रंजौर पैलेस
रंजौर पैलेस का निर्माण राजकुमार सुरजन सिंह ने करवाया था जोकि महाराजा फतेह प्रकाश के मंझले बेटे थे। इस भव्य इमारत में दर्जनों कमरे हैं और एक बड़ा हाल भी है जिसको निजी संग्रहालय के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। इस इमारत में शाही परिवार के सदस्य रहते हैं। इमारत का प्रवेश द्वार वास्तु की दृष्टि से बेहद खूबसूरत है। खासतौर से भित्ती चित्रों को आज भी संजोए रखा गया है। यह इमारत भी शाही दौर के इतिहास की याद दिलाती है। इसका रखरखाव भी शाही परिवार से जुड़े सदस्य कर रहे हैं।

 

रणविजय भवन
रणविजय भवन भी शहर की पुरानी बेहद खूबसूरत इमारतों में एक है। यह इमारत इतनी ऊंचाई पर बनी है कि शहर के ज्यादातर हिस्सों से इसे आसानी से देखा जा सकता है। यह इमारत वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। दोमंजिला इस इमारत के ऊपर बने 2 गुंबद इसकी शान में चार चांद लगाते हैं। इसकी देखरेख भी शाही परिवार से जुड़े लोग करते हैं। इस इमारत का निर्माण महाराजा फतेह प्रकाश के चचेरे भाई वीर विक्रम सिंह ने करवाया था।

 

लाल कोठी 
महाराजा शमशेर प्रकाश ने लाल कोठी का निर्माण शहर के सबसे ऊंचे भाग पर करवाया। अब यह जगह पूरी तरह से आबाद है। इमारत के आसपास कितने ही सरकारी कार्यालय हैं। वास्तु की दृष्टि से इमारत अपने आप में बहुत कुछ कहती है। महाराजा ने नाहन फाऊंडरी की स्थापना की तो इस इमारत को फाऊंडरी के चीफ इंजीनियर के लिए बनवाया था लेकिन वर्तमान में इस इमारत का प्रयोग जिला प्रशासन कर रहा है। रखरखाव न होने से इमारत बदहाल हो रही है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने इस इमारत का दौरा किया था। सरकार इसका प्रयोग सरकारी गैस्ट हाऊस के रूप में करना चाहती है।

 

ऐतिहासिक फाऊंडरी का प्रवेशद्वार
नाहन फाऊंडरी की स्थापना महाराजा शमशेर प्रकाश ने 1875 में की थी जैसे-जैसे स्थिति बदली फाऊंडरी का विस्तार किया गया। यहां की बनी गन्ने का रस निकालने की मशीनें जोकि सुल्तान ब्रांड के नाम से जानी जाती थी, खाड़ी देशों तक इनकी आपूर्ति होती थी। देशभर में नाहन फाऊंडरी का डंका बजता था। यहां बनी अनारकली ब्रांड की कास्ट आयरन की ग्रिल व अन्य साजो सामान पूरे देश में मशहूर था। ऐतिहासिक प्रवेश द्वार अपनी एक अलग पहचान रखता है। जिसका संरक्षण होना चाहिए। यह कारखाना महाराजा शमशेर प्रकाश की दूरदर्शिता का नतीजा भी रहा जिन्होंने रियासतकाल में उस वक्त शहर के औद्योगिकरण का सपना देखा और यह विशाल कारखाना स्थापित किया लेकिन सरकार की गलत नीतियों के चलते यह ऐतिहासिक कारखाना खत्म हुआ। आज इसके अवशेष बचे हैं।

 

लिटन मैमोरियल
शहर के प्रवेशद्वार पर महाराजा सुरेंद्र प्रकाश ने अपने शासन में उस वक्त के वायसराय लार्ड लिटन के सरकारी विजिट पर उनकी शान में लिटन मैमोरियल दिल्ली गेट का निर्माण करवाया। यह इमारत हजारों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। चौगान के किनारे 100 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी शान से खड़ी यह इमारत शाही जमाने की याद दिलाती है। शुरूआत में दिल्ली दरवाजे के ऊपर लगी घड़ी नहीं थी। दिल्ली गेट के ऊपर लगी घड़ी महाराजा अमर प्रकाश के जमाने में स्थापित की गई। दिल्ली गेट की ऐतिहासिक इमारत का रखरखाव नगर परिषद के जिम्मे है। नप केवल रंग-रोगन करके ही अपनी जिम्मेदारी निभा रही है जबकि इस इमारत के वजूद को बचाने के लिए सरकार और प्रशासन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। 

 

सूरत पैलेस
चौगान के एक छोर पर रिसायत काल में बनी इमारत सूरत पैलेस भी वास्तु की दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है। यह इमारत शाही परिवार के सदस्यों का आवास है। इमारत का निर्माण महाराजा शमशेर प्रकाश के छोटे राजकुमार सूरत ङ्क्षसह ने करवाया था। जिसका नाम बाद में सूरत पैलेस पड़ा। यह इमारत भी हैरिटेज की रिपोर्ट में शुमार है।

 

कलैक्टर रैजीडैंस
अस्पताल राऊंड में सबसे ऊंची इमारत रिसायत काल में कलैक्टर रैजीडैंस के रूप में वजूद में आई। इसका निर्माण भी महाराजा शमशेर प्रकाश के जमाने में हुआ। रिसायतकाल में इस इमारत में कलैक्टर रहा करते थे। वर्तमान में यह इमारत जिलाधीश सिरमौर का सरकारी निवास है। बेहतर रखरखाव के चलते इमारत यहां आने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इमारत के बाहर एक बड़ा लॉन है। किचन गार्डनिंग भी होती है।

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