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साधु को भी चोर बना देता है ऐसा भोजन

Edited By ,Updated: 22 Jul, 2015 12:59 PM

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बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से सांठ-गांठ हो गई। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा। सेठ को हुआ कि इतना पाप हो रहा है तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।

बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से सांठ-गांठ हो गई। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा। सेठ को हुआ कि इतना पाप हो रहा है तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए। एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवाई और किसी साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजन प्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की। साधु बाबा ने बासमती चावल की खीर खाई। दोपहर का समय था। सेठ ने कहा, ‘‘महाराज! अभी आराम कीजिए। थोड़ी धूप कम हो जाए फिर पधारिएगा।’’
 
साधु बाबा ने बात स्वीकार कर ली। सेठ ने 100-100 रुपए वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियां उसी कमरे में चादर से ढंक कर रख दीं। साधु बाबा आराम करने लगे। खीर थोड़ी हजम हुई। चोरी के चावल थे। साधु बाबा के मन में हुआ कि इतनी सारी गड्डियां पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूं तो किसको पता चलेगा? साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली। शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े।
सेठ दूसरे दिन रुपए गिनने बैठा तो 1 गड्डी (10 हजार रुपए) कम निकली। सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवत् पुरुष थे, वे क्यों लेंगे? नौकरों की धुनाई-पिटाई चालू हो गई। ऐसा करते-करते दोपहर हो गई।
 
इतने में साधु बाबा आ पहुंचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोले, ‘‘नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था।’’
 
 सेठ ने कहा, ‘‘महाराज! आप क्यों लेंगे? जब यहां नौकरों से पूछताछ शुरू हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आए हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते हैं।’’
 
साधु, ‘‘यह दयालुता नहीं है। मैं सचमुच तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था। सेठ! तुम सच बताओ कि तुमने कल खीर किसकी और किस लिए बनाई थी?’’
 
सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावला खरीदता हूं, उसी चावल की खीर थी।
 
साधु बाबा, ‘‘चोरी के चावल की खीर थी, इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया। सुबह जब पेट खाली हुआ तो खीर का सफाया हो गया, तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि हे राम, यह क्या हो गया? मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी, इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया।’’
 

इसलिए कहते हैं कि ‘‘जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन। जैसा पीओ पानी वैसी होवे वाणी।’’ 

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