Edited By ,Updated: 15 Dec, 2020 08:04 PM
16 दिसंबर का दिन 1971 से गहरे रूप में जुड़ा है। यही वह दिन है, जब भारत और पाकिस्तान युद्ध में, पाकिस्तान की करारी हार हुई और पूर्वी पाकिस्तान के स्थान पर वर्तमान बांग्लादेश का जन्म हुआ। भारत में हर साल 16 दिसंबर का दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता...
16 दिसंबर का दिन 1971 से गहरे रूप में जुड़ा है। यही वह दिन है, जब भारत और पाकिस्तान युद्ध में, पाकिस्तान की करारी हार हुई और पूर्वी पाकिस्तान के स्थान पर वर्तमान बांग्लादेश का जन्म हुआ। भारत में हर साल 16 दिसंबर का दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज ही के दिन 1971 में भारत ने 12 दिन चले युद्ध में पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया था। 1947 में हुए विभाजन के समय से चली आ रही दो पाकिस्तानों की विसंगति आखिरकार 1971 में जा कर ठीक हुई।
3 दिसंबर को पाकिस्तान ने भारत के 11 महतवपूर्ण हवाई अड्डों पर आक्रमण किया था। इसके बाद यह युद्ध शुरू हुआ और महज 12 दिनों में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी। भारत ने करीब 1 लाख पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी भी बनाया। इसके साथ ही एक स्वतंत्र बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इस युद्ध का एक मुख्य कारण वह अत्याचार था जो पश्चिमी पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान पर लगभग दो दशक से कर रहा था।
इस अत्याचार के विरुद्ध भारत ने आवाज़ उठाई क्यूंकि उत्तर पूर्वी राज्यों पर शरणार्थियों का बोझ बढ़ता जा रहा था । तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थी कि अप्रैल 1971 में युद्ध छेड़ा जाए। इस बारे में जब उन्होंने ने थल सेना अध्यक्ष जनरल मानेकशॉ की राय ली। तो मानेकशॉ ने सियासी दबाव में झुके बिना प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से स्पष्ट कह दिया कि वह पूरी तैयारी के साथ ही युद्ध में उतरना चाहते हैं। बारिश से पहले का समय यूँ भी सैनिक अभियान के लिए उचित नहीं था। उन्होंने प्रधानमंत्री को युद्ध में जीत का आश्वासन दिया बशर्ते उन्हें अपनी युद्धनीति पर अमल करने दिया जाए।
असल में इन्दिरा गांधी जल्दबाजी में की गई सैन्य कार्यवाही के दुष्परिणाम से अवगत थीं। उस वक़्त भारत के पास सिर्फ एक माउंटेन डिवीजन थी। इस डिवीजन के पास सामरिक पुल बनाने की क्षमता नहीं थी, और उस पर मानसून की दस्तक देने ही वाला था। ऐसे समय में पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करना मुसीबत मोल लेने जैसा था।
3 दिसंबर को इंदिरा गांधी पश्चिमी बंगाल में एक जनसभा को संबोधित करने गई थी। इसी दौरान शाम 5:40 के करीब पाकिस्तानी वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा में वायु सेना हवाई अड्डे पर बम वर्षा की और युद्ध छेड़ दिया। इंदिरा गांधी ने उसी वक्त दिल्ली लौटकर तुरंत सेना के अफसरों और कैबिनेट के साथ मीटिंग की। इसी शाम इंदिरा गांधी ने रेडियो से देश के नाम संदेश दिया और कहा कि यह वायु हमले पाकिस्तान की ओर से भारत को खुली चुनौती हैं।
भारतीय वायु सेना ने 3 दिसंबर की रात को ही जवाबी कार्रवाई कर दी। अगले दो दिन तक हमारी वायुसेना के तीव्र हमले के कारण पाकिस्तान की वायुसेना पूरी तौर पर निष्क्रिय हो गयी। हमारी सेनाओं ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों ही सीमाओं पर मोर्चा संभाला हुआ था। कई इलाकों में भयंकर युद्ध हुआ पर हमारी कुशल रणनीति और सेनाओं की बहादुरी के आगे पाकिस्तानी सेनाओं की एक न चली। नौसेना ने भी पश्चिमी पाकिस्तान के कराची और पूर्वी पाकिस्तान के महत्वपूर्ण बंदरगाहों पर भीषण हमला किया और पाकिस्तान को घुटने टेकने पर विवश कर दिया और पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को बंदी बना लिया।
14 दिसंबर को भारतीय सेना ने एक गुप्त पाकिस्तानी सन्देश पकड़ा जिसमें उस दिन सुबह 11 बजे ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक बैठक का जिक्र था। भारतीय वायु सेना के मिग विमानों ने गवर्नमेंट हाउस पर तय समय पर बम गिरा दिए। जिसके बाद गवर्नर मलिक ने भयभीत हो कर त्यागपत्र दे दिया।
16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने अन्ततः एकतरफ़ा युद्ध-विराम की घोषणा कर दी एवं इसके साथ ही अपनी 'संयुक्त थल सेना' को भारतीय सेना को सौंप दिया जिसके साथ ही भारत-पाक युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया। पूर्वी पाकिस्तान स्थित पूर्वी कमान द्वारा भारतीय पूर्वी कमान के जनरल आफ़िसर कमांडिंग - इन चीफ़ लेफ़्टि-जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा एवं पाक पूर्वी कमान के कमाण्डर, लेफ़्टिनेंट जनरल ए ए के नियाजी के बीच ढाका में समर्पण अभिलेख पर हस्ताक्षर हुए। इस जीत का यादगार चित्र भारत के हर नागरिक के मानसपटल पर अंकित है। भारत की न्यायप्रियता और शांति के प्रति कटिबद्धता का प्रमाण यह है कि इतनी बड़ी विजय के बाद भी हमने बांग्लादेश को अपनी सीमाओं में नहीं मिलाया ,बल्कि उसे एक स्वतंत्र देश घोषित किया।- नीलम हुंदल