कोरोनाः अब तुम चले भी जाओ न...अतिथि !!!

Edited By Tanuja,Updated: 23 Jan, 2022 08:24 PM

apki kalam corona  now you go away guest

आज अतिथि के रूप में एक वैश्विक महामारी सुरसा की तरह मुंह फैलाए यत्र-तत्र-सर्वत्र मिल जाएगी । इसने न जाने कितने लोगों को अपना आहार बना लिया है ...

आज अतिथि के रूप में एक वैश्विक महामारी सुरसा की तरह मुंह  फैलाए यत्र-तत्र-सर्वत्र मिल जाएगी । इसने न जाने कितने लोगों को अपना आहार बना लिया है लेकिन इसकी भूख है कि ख़त्म ही नहीं होती ।  यह महामारी धरती पर स्वयं आई  है या इसे किसी ने रक्तबीज की तरह शक्ति वरदान देकर पैदा किया है ? नहीं पता । लेकिन आज इससे विश्व त्रस्त है, जनजीवन अस्त-व्यस्त है, साँसें दूभर हो गई हैं , बात करना गुनाह हो गया है । एक अजीब संक्रमण का दौर चल पड़ा है  । जो सोशल डिस्टेंसिंग भूला नहीं कि बस आनन- फ़ानन में उसका शरीर, दिलोजान इस कोरोना की मुट्ठी में क़ैद हुआ समझिए। मास्क नहीं लगाया तो यह जानी दुश्मन बनकर शिकार की तरह ढूँढ लेती है । बड़ी शातिर है यह महामारी । हाथों की स्वच्छता में  ज़रा सी भी चूक हुई कि यह ताड़का की तरह आतंक मचाती इंसान को अपने नागपाश में बांध लेती है । धोखा देना और इस प्रकार से धोखा देना कि इंसान को प्राणों के लाले पड़ जाए ? बहुत ज़ालिम है यह कोरोना ।

PunjabKesari

बहुत दिन हो गए तुम्हें धरती पर आए  अपनी दहशत फैलाते हुए लेकिन तुम भी तो जानते हो कि जो आता है वह चला भी जाता है । धरती की क्षणभंगुरता के विषय में क्या तुम्हें नहीं पता ? तुम कब जाओगे , अतिथि  पाठ में भी तो अतिथि से यही बात बार -बार पूछी जा रही थी। यही प्रश्न बार - बार पूछा जा रहा था कि तुम कब जाओगे । शायद तुम्हारे बुजुर्गों ने तुम्हें कभी बताया ही नहीं कि दूसरों के घर की शांति को ख़त्म करना सबसे बड़ा पाप है । आज तुम्हारी मनमानी से तंग आकर हम भी तुमसे यही प्रश्न पूछते हैं कि तुम कब जाओगे अतिथि ! अब तुम चले भी जाओ न! शरद जोशी से पता चला कि यदि अतिथि एक दिन रह कर चला जाए तो उसे भगवान माना जाता है , दो दिन के बाद चला जाए तो उसे मानव कहा जाता है लेकिन जब जाने का नाम ही न ले तो उसे दैत्य से कम नहीं माना जाता।

 

अब तक  तो तुम्हें समझ आ ही गया होगा कि धरती पर तुम्हारी असली पहचान किसी दैत्य से कम नहीं है ।  तुम्हें  तो इस धरती पर दो वर्ष से अधिक समय हो गया है । तुमने तो विश्व की आर्थिक स्थिति पर भी कितना बुरा प्रभाव डाला है कि सारी विकास परम्परा रसातल में चली गई । आम इंसान अपने काम - धंधे से विमुख ख़ाली हाथ घर बैठा निराशाजनक स्थिति में जीने के लिए मजबूर हो गया । किसने कितना जोड़ा होगा , जो भरपेट खा लेगा । किसके पास कितना  धन होगा ? मुसीबतों को इससे कोई मतलब नहीं होता और तुम भी तो अनचाही मुसीबत ही हो। कौन जाने कैसे निर्वाह करेगा कोई तुम इस विषय में क्यों सोचोगे?

 

PunjabKesari

एक बात कहना चाहती हूँ तुम्हारा अनचाहा स्वागत भी हुआ  क्योंकि तुम्हारे आने से लॉक डाउन हुआ , प्रदूषण धरती, वायु ,जल ,धरती हर प्रकार  के प्रदूषण से निजात मिल गई । लुप्तप्राय पक्षियों की प्रजातियां आंगन में आकर फिर से चहचहाने लगी। काम की व्यस्तता से जिन रिश्तों में शिथिलता आ गई थी वे फिर से हरे  भरे हो गए। घर वालों की मजबूरियां  समाप्त हो गईं। घर वालों का सहयोग सब दिखने लगा है और जिन लोगों को अपनी व्यस्तता के कारण भुला दिया गया था वे सभी फिर से याद आने लगे हैं ।मोबाइल से सेल्फी लेने वाले लोगों ने पुरानी अल्बम खोलकर फिर से अपने अतीत को पहचाना । अपनी अस्त -व्यस्त बालों वाली फ़ोटो में से टूटे दाँत वाली फ़ोटो को निकाला । मज़े और मस्ती के भरे पलों को याद करने से तुम तो पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिए गए कोरोना।

 

माँ- बाबू जी की पूजा से लौटने की इंतज़ार हर कोई करने लगा है , हर कोई भी प्रसाद की इन्तज़ार भी करता है।  अच्छे संस्कार जो हम भूल चुके थे वो सब धीरे - धीरे  हर घर में अपनाए जाने लगे हैं । फ़ुरसत के क्षणों में घर वालों के साथ मनाए जाने वाले सुखद क्षणों में कितनी रचनात्मकता निकल कर सामने आ गई  तुम क्या जानो, क्योंकि तुमने स्वार्थ से आगे कुछ सोचा ही नहीं । जो कभी किया ना था जो कभी सोचा भी नहीं था घर में रहकर लोग वह सभी करने लगे हैं । घर की साफ़ - सफ़ाई , समान का रख -रखाव ये सब तुम्हारे आने के कारण ही तो संभव हो पाया है । तुम्हारे आ जाने से लोगों के ख़ान -पान , रहन -सहन हर चीज़ में अंतर आया । कम हुआ तो उसमें भी गुज़ारा कर लिया । 

PunjabKesari

अब तुम अपनी तरफ़ देखो, देखो कि तुम्हारी  तो कहीं ज़रूरत भी नहीं है फिर भी तुम धरती पर इस तरह से अड्डा जमाकर बैठे हो जैसे ये धरती तुम्हारी  बपौती है , फिर भी अभी भी कुछ ज़्यादा नहीं बिगड़ा , हम मनुष्य कई बार धरती पर स्वर्ग ला चुके हैं । आँधी ,तूफ़ान , भूचाल ,अकाल और अनेक प्रकार की महामारियों के दंश  सहने के बाद भी हम ने अपना स्वभाव नहीं बदला। हम वास्तविक अर्थों में मज़दूर हैं , हमें स्वर्ग से नहीं हमें धरती पर स्वर्ग लाने की आदत है । तुम जाओ जितना नुक़सान कर सकते थे कर चुके हम फ़िर से मेहनत करके इस नुक़सान की भरपाई कर लेंगे अभी तो हम मन ही मन ऐसा कह रहे हैं लेकिन जिस दिन सार्वजनिक रूप से कह दिया उस दिन कहाँ  सिर छुपाओगे ।  चले जाओ...अब चले भी जाओ अतिथि ।
                                                                                                                                                             लेखिकाः विभा कुमरिया शर्मा

 

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!