‘36 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में सिर्फ 50 छात्र’ ‘तथा 16 प्रतिशत अध्यापक कम’

Edited By ,Updated: 28 Feb, 2025 05:28 AM

36 percent government schools have only 50 students

देश के सरकारी स्कूलों में प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में छात्र घटते जा रहे हैं। ‘पी.आर.एस. लैजिस्लेटिव रिसर्च’ नामक संस्था के अनुसार देश भर में कम से कम 36 प्रतिशत सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनमें 50 से भी कम छात्र दाखिल हैं। प्रति वर्ष भारी संख्या में सरकारी...

देश के सरकारी स्कूलों में प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में छात्र घटते जा रहे हैं। ‘पी.आर.एस. लैजिस्लेटिव रिसर्च’ नामक संस्था के अनुसार देश भर में कम से कम 36 प्रतिशत सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनमें 50 से भी कम छात्र दाखिल हैं। प्रति वर्ष भारी संख्या में सरकारी स्कूलों से बच्चों के नाम कट रहे हैं लेकिन नए दाखिले नहीं हो रहे। गत वर्ष अगस्त में एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पिछले 2 वर्षों में अकेले उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में ही 24 लाख बच्चे कम हो गए हैं। संख्या बढ़ाने के तमाम प्रयासों तथा ‘स्कूल चलो अभियान’ चलाने के बावजूद यह कमी आई है। इसी प्रकार बिहार में एक वर्ष में पहली से पांचवीं तक की कक्षाओं में 6,27,355 छात्र कम हुए हैं। 

हिमाचल प्रदेश के भी अनेक स्कूलों में बच्चों की संख्या काफी कम है जिसे देखते हुए प्रदेश सरकार इन स्कूलों को दूसरे स्कूलों के साथ इकट्ठा (मर्ज) करने या बंद करने पर विचार कर रही है। इस नीति के अंतर्गत अभी तक प्रदेश सरकार ने 27 प्राइमरी और मिडल स्कूलों को ‘डीनोटीफाई’ कर दिया है। ‘नीति आयोग’ के अनुसार लगभग 10 प्रतिशत स्कूलों में 20 से भी कम विद्यार्थी हैं तथा इन स्कूलों में मात्र 1 या 2 अध्यापक हैं। उल्लेखनीय है कि छोटे स्कूल, जिनमें आमतौर पर कम अध्यापक होते हैं, उनके सामने कई समस्याएं आती हैं। नई शिक्षा नीति (2020) के अनुसार इसके कारण अध्यापकों को कई कक्षाओं में अलग-अलग विषय पढ़ाने पड़ते हैं। 

इनमें ऐसे विषय भी शामिल हैं जिनमें संभवत: अध्यापक स्वयं भी पर्याप्त योग्य नहीं होते। नई शिक्षा नीति की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पढ़ाने के अलावा अध्यापक अपना अधिकांश समय प्रशासनिक कार्यों में बिताते हैं जिससे उनके द्वारा बच्चों को पढ़ाने में दिया जाने वाला समय प्रभावित होता है। वर्ष 2022-23 तक कक्षा एक से 8 तक के लिए 16 प्रतिशत शिक्षण पद रिक्त थे। झारखंड (40 प्रतिशत), बिहार (32 प्रतिशत), मिजोरम (30 प्रतिशत) तथा त्रिपुरा में (26 प्रतिशत) पद खाली थे। 

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ‘‘2023-24 तक प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक लगभग 12 प्रतिशत अध्यापकों के पास पेशेवर शिक्षण योग्यता का अभाव है। शिक्षा मंत्रालय (2023-24) की रिपोर्ट के अनुसार पूर्व प्राथमिक स्तर पर 48 प्रतिशत शिक्षक अयोग्य हैं।’’ सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या घटने का एक कारण यह भी बताया जाता है कि हर जगह प्राइवेट स्कूल लगातार खुल रहे हैं तथा बच्चों के अभिभावक सरकारी स्कूलों की बजाय प्राइवेट स्कूलों को अधिमान देते हैं। इसका सीधा सा कारण यह है कि सरकारी स्कूलों में आधारभूत ढांचे और अध्यापकों की कमी से छात्रों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी कम हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील जैसी योजनाओं को प्रभावशाली बनाकर स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। कई छात्र तो मिड-डे-मील और कई दूसरी सरकारी योजनाओं के लालच में स्कूल पहुंचते हैं लेकिन अब यह बहुत प्रभावशाली नहीं रहीं। 

नई शिक्षा नीति के अनुसार छोटे तथा अलग-अलग स्कूलों का प्रबंध करना कठिन है। इनमें प्रयोगशालाओं व पुस्तकालयों जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। इस कारण भी अभिभावक सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने को अधिमान नहीं देते। शिक्षा जगत से जुड़े लोगों के अनुसार सरकारी स्कूलों में अध्यापकों के खाली पड़े पदों को सरकार भरना नहीं चाहती। अत: सरकार को गंभीरतापूïर्वक उन सब बातों का पता लगाने की जरूरत है, जिनकी वजह से बच्चों और उनके अभिभावकों का सरकारी स्कूलों से मोहभंग हो रहा है। अत: इन सब बातों पर ध्यान देने तथा एक विशेषज्ञ कमेटी बनाकर सरकारी स्कूलों के शिक्षा के स्तर में जरूरी सुधार करने, इसे आकर्षक बनाने, अध्यापकों व अन्य स्टाफ की कमी दूर करने की तुरंत जरूरत है ताकि सरकारी स्कूलों में छात्रों के दाखिले में आ रही गिरावट को रोका जा सके।—विजय कुमार 

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