विनम्र, सादगी पसंद - दिवंगत प्रधानमंत्री स. मनमोहन सिंह के साथ गुजारे - ‘चंद पल’

Edited By ,Updated: 28 Dec, 2024 04:42 AM

a few moments spent with late prime minister s manmohan singh

भारत में आर्थिक सुधारों के नायक प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का 26 दिसम्बर रात 9.51 बजे दिल्ली के ‘एम्स’ में देहांत हो गया। वह 92 वर्ष के थे तथा अपने पीछे पत्नी गुरशरण कौर व तीन शादीशुदा बेटियां छोड़ गए हैं।

भारत में आर्थिक सुधारों के नायक प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का 26 दिसम्बर रात 9.51 बजे दिल्ली के ‘एम्स’ में देहांत हो गया। वह 92 वर्ष के थे तथा अपने पीछे पत्नी गुरशरण कौर व तीन शादीशुदा बेटियां छोड़ गए हैं। 26 सितम्बर, 1932 को अविभाजित पाक पंजाब के ‘गाह’ के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे मनमोहन सिंह का परिवार देश के विभाजन के बाद अमृतसर आ गया था। वह घर में दीए की रोशनी में और कभी-कभी गली में लगे खम्भे की रोशनी में पढ़ा करते। 1952 में जब पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी पंजाब के शिक्षा मंत्री बने, तब उन्होंने युवा मनमोहन सिंह को पढ़ाई में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित भी किया था। 21 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्या के बाद पी.वी. नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री का पद संभाला, उस समय देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने के लिए उन्होंने मनमोहन सिंह जी को अपना वित्त मंत्री बनाया।

22 मई, 2004 को कांग्रेस नीत यू.पी.ए. की गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद स. मनमोहन सिंह की सरकार ने गरीबों को रोजगार देने के लिए ‘मनरेगा’ तथा अन्य योजनाएं शुरू कीं और वह 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।  
मनमोहन सिंह जी से ‘पंजाब केसरी’ परिवार के स्नेहपूर्ण सम्बन्ध थे। वह ‘शहीद परिवार फंड’ के समारोह में आतंकवाद पीड़ित परिवारों को पहली बार 19 दिसम्बर, 1993 को 9,40,000 रुपए और फिर 23 जनवरी, 2000 को 13,80,000 रुपए सहायता राशि प्रदान करने के लिए जालंधर पधारे थे। हमने मनमोहन सिंह जी को प्राइम मिनिस्टर नैशनल रिलीफ फंड के लिए भी 2004 (तमिलनाडु टाइडल वेव्स) में 4,90,00,000, 2005 (जम्मू-कश्मीर अर्थक्वेक) में  84,17,754, वर्ष  2010 (लद्दाख भूकंप) में  2,07,22,670 व 2013 (उत्तराखंड) में 8,00,00,001 रुपए जन सहयोग से भेंट किए।

एक बार मैं दिल्ली में उन्हें शहीद परिवार फंड की राशि भेंट करने गया चूंकि मुझे साढ़े चार बजे की गाड़ी भी पकडऩी थी और उनके स्टाफ ने मुझे लेट कर दिया था, उन्होंने मुझसे कहा कि ‘‘आपको चाय पीकर ही जाना पड़ेगा।’’ जब भी मनमोहन सिंह जी किसी विदेश यात्रा पर जाते तो देश के अन्य पत्रकारों के साथ मुझे भी अपने साथ ले जाते। जब उन्हें मेरी धर्मपत्नी (स्व.) स्वदेश जी के गंभीर बीमार होने का पता चला तो उन्होंने ‘अपोलो अस्पताल’ वालों को उनका सर्वश्रेष्ठï इलाज करने को कहा और हर बार जब भी वह मिलते तो जरूर पूछते, ‘‘हाऊ इज़ शी?’’ 

यही नहीं, जब पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी के सम्मान में डाक विभाग द्वारा विशेष डाक टिकट जारी करने की बात चली तो उनका संदेश आया कि,‘‘यह टिकट मैं रिलीज करूंगा और मेरी कोठी में सबके लिए चाय आदि का भी प्रबंध होगा।’’
9 सितम्बर, 2013 को लाला जी के बलिदान दिवस पर विशेष डाक टिकट जारी करने के बाद अनौपचारिक बातचीत में स. मनमोहन सिंह ने कहा कि, ‘‘हिन्दू कालेज अमृतसर में पढ़ाई के दौरान दीक्षांत समारोह पर लाला जी का दिया हुआ भाषण मुझे आज तक याद है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘लाला जी के शिक्षा मंत्री रहने के नाते मैं उनका शिष्य हूं।’’

हैरानी हमें उस समय हुई जब उस दिन वह स्वयं चाय बना कर मेरे पास लाए और मेरे द्वारा आपत्ति करने पर बोले, ‘‘आप मुझसे कई महीने बड़े हैं।’’ वह समय के भी बड़े पाबंद थे। एक बार जब वह शहीद परिवार फंड के समारोह में आए तो समारोह की समाप्ति के बाद उन्होंने मुझसे कहा,‘‘मुझे पांच बजे स्टेशन पर पहुंचा दें।’’  मेरे यह कहने पर कि गाड़ी तो 6 बजे जाती है, उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘समय से पहले ही स्टेशन पर पहुंचना चाहिए।’’ काफी समय पहले जब ‘पंजाब सिंध बैंक’ में हमारा खाता था जो थोड़े समय के लिए घाटे में चल रहा था। उन्हीं दिनों वहां आए एक नए चेयरमैन, जो जालंधर के ही रहने वाले थे, ने आव देखा न ताव सभी लोन लेने वालों के खाते में रकमें डलवा कर उस वर्ष के घाटे को समाप्त कर दिया। यह खाताधारियों पर एक फालतू बोझ था। 

जब मैंने मनमोहन सिंह जी से मिल कर इस बारे में बताया तो उन्होंने फौरन एक्शन लेते हुए चेयरमैन से कहा कि यह गलत हुआ है और इस गलती को तुरंत सुधारा जाए जिसके बाद सब ठीक हो गया। बैंक के चेयरमैन ने स्वयं मुझे बुलाकर यह बात बताई और अपनी गलती मानी। आज जब मनमोहन सिंह जी हमारे बीच नहीं रहे, मैंने उनकी कुछ यादें पाठकों के साथ सांझा की हैं। उन जैसी विनम्रता, सादगी और ईमानदारी मैंने कम ही लोगों में देखी है। उनके प्रधानमंत्री पद से मुक्त होने के बाद भी दिल्ली जाने पर मैं जब भी उनसे मिलने उनके आवास पर जाता तो वह दरवाजे तक मुझे छोडऩे आते। हालांकि मनमोहन सिंह जी को उनके जीवन में अनेक सम्मान मिले परंतु उनकी योग्यता और ईमानदारी को देखते हुए वे बहुत कम हैं। उन्हें जितना सम्मान दिया गया, वह उससे कहीं अधिक के हकदार थे।-विजय कुमार

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!