Edited By ,Updated: 02 Dec, 2024 04:50 AM
3 मई, 2023 के एक फैसले में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मणिपुर हाईकोर्ट की सिफारिश के विरुद्ध छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद मैतेई और कुकी समुदायों में शुरू हुई जातीय ङ्क्षहसा 577 से अधिक दिनों के बाद भी जारी है।
3 मई, 2023 के एक फैसले में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मणिपुर हाईकोर्ट की सिफारिश के विरुद्ध छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद मैतेई और कुकी समुदायों में शुरू हुई जातीय ङ्क्षहसा 577 से अधिक दिनों के बाद भी जारी है। इस दौरान लगभग 250 लोगों की मौत के अलावा 2000 लोग घायल हो चुके हैं जबकि 60,000 से अधिक लोग अपना घर-बार छोड़ कर राहत शिविरों में रहने को विवश हो गए हैं। इस वर्ष 10 जुलाई को गृह मंत्री अमित शाह द्वारा मणिपुर की यात्रा के दौरान राज्य में शांति बहाली के लिए किए गए अनेक महत्वपूर्ण निर्णयों तथा राहत पैकेज के बावजूद राज्य की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
इस तरह के हालात के बीच 17 अक्तूबर, 2024 को मणिपुर में भाजपा के 19 विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाने की मांग भी की थी तथा कहा था कि ‘‘यदि मैतेई समुदाय से ही मुख्यमंत्री बनाना है तो किसी अन्य को मुख्यमंत्री बना दिया जाए और या फिर राज्य में राष्ट्रपति राज लागू कर दिया जाए।’’
वहां हिंसा की ताजा घटना में 16 नवम्बर को कुकी उग्रवादियों द्वारा अपहृत 6 महिलाओं और बच्चों, जिनका कुकी उग्रवादियों ने 11 नवम्बर को जिरीबाम जिले में सेना के साथ मुठभेड़ के दौरान 10 कुकी विद्रोहियों के मारे जाने के बाद अपहरण कर लिया था, के शव इम्फाल की नदी में बहते पाए जाने पर आक्रोषित लोगों ने अनेक विधायकों के मकानों पर धावा बोल दिया और आगजनी तथा तोडफ़ोड़ की। इस सिलसिले में 8 लोगों को गिरफ्तार करने के अलावा विधायकों की सम्पत्तियां तोडफ़ोड़ करने के आरोप में 4 लोगों की रिहाई की मांग को लेकर 27 नवम्बर को काकचिंग थाने तथा जवानों पर हमला करने के मामले में 7 और लोगों को गिरफ्तार किया गया।
इस बीच मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के विरुद्ध रोषस्वरूप भाजपा के गठबंधन सहयोगी मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की ‘नैशनल पीपुल्स पार्टी’ ने 18 नवम्बर को राज्य की भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया, परंतु भाजपा नेताओं का कहना है कि इससे राज्य की सरकार को कोई खतरा नहीं है और उन्होंने इस बात से भी इंकार किया कि इस मुद्दे पर भाजपा विधायकों का एक दल त्यागपत्र दे देगा। इस बीच 28 नवम्बर को मणिपुर के पड़ोसी राज्य मिजोरम के मुख्यमंत्री तथा ‘जोराम पीपुल्स मूवमैंट’ के प्रमुख लालडुहोमा ने एक साक्षात्कार में एन. बीरेन सिंह की आलोचना करते हुए कहा है कि :
‘‘एन. बीरेन सिंह मणिपुर राज्य, इसकी जनता और स्वयं भाजपा पर एक बोझ हैं और राज्य में उनकी सरकार की बजाय यहां राष्ट्रपति राज लागू कर देना बेहतर होगा परंतु यदि किसी एक अन्य मैतेई नेता के नेतृत्व में निर्वाचित सरकार लाई जा सके जो इस देश के स्वतंत्रता संग्राम में कबायली लोगों के योगदान और उन्हें भारत के अभिन्न अंग तथा देश के वास्तविक नागरिकों के रूप में मान्यता दे सके तो ऐसा मुख्यमंत्री नियुक्त करना ठीक हो सकता है।’’ भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का विरोध करते हुए लालडुहोमा ने कहा कि राज्य में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए मणिपुर में सक्रिय सभी सशस्त्र समूहों को हथियारों से रहित करना जरूरी है। भाजपा नेतृत्व ने मिजोरम के मुख्यमंत्री के उक्त बयान के जवाब में उलटे उसी पर आरोप लगाए हैं। कुल मिला कर जहां मणिपुर की समस्या को सुलझाने की बजाय आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है, वहीं राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के विरुद्ध भाजपा में रोष उत्पन्न हो रहा है, वहीं इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार की चुप्पी कई प्रश्न खड़े कर रही है।
राज्य के भाजपा नेताओं का कहना है कि शायद बीरेन सिंह के स्थान पर कोई अन्य मुख्यमंत्री कुकी समुदाय के लोगों का टूटा हुआ विश्वास बहाल कर सके लेकिन दिल्ली में एक वर्ग द्वारा पार्टी नेतृत्व को यही भरोसा दिलाया जा रहा है कि बीरेन सिंह कुकी और मैतेई समुदायों के बीच शांति बहाल करने में सफल हो जाएंगे। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में काफी देर तक राष्ट्रपति शासन रहा। इसके अलावा अन्य राज्यों में भी ऐसी मिसालें देखने को मिलती हैं लेकिन एक बात समझ में आती है कि हर राजनीतिक समस्या का समाधान राष्ट्रपति शासन नहीं है। इसका असली समाधान लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार ही है जो राज्य की व्यवस्था केंद्र के साथ मिलकर बेहतर ढंग से चला सकती है।