Edited By ,Updated: 30 Dec, 2024 05:32 AM
चीन ने भारतीय सीमा के निकट तिब्बत पठार के पूर्वी छोर पर ब्रह्मïपुत्र नदी, जिसे तिब्बत में ‘यारलुंग जंगबो’ नदी के नाम से जाना जाता है, की निचली पहुंच में 137 बिलियन डालर से अधिक की लागत वाली दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण की परियोजना को स्वीकृति...
चीन ने भारतीय सीमा के निकट तिब्बत पठार के पूर्वी छोर पर ब्रह्मïपुत्र नदी, जिसे तिब्बत में ‘यारलुंग जंगबो’ नदी के नाम से जाना जाता है, की निचली पहुंच में 137 बिलियन डालर से अधिक की लागत वाली दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण की परियोजना को स्वीकृति दे दी है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी इंफ्रा परियोजना कहा जा रहा है। यह बांध हिमालय की पहुंच (रिचेस) में एक विशाल घाटी में बनाया जाना है। जहां ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश और फिर बंगलादेश में बहने के लिए एक बड़ा यू-टर्न लेती है। बंगलादेश में इसे जमुना कहते हैं और यह फिर गंगा नदी में मिल जाती है।
‘यारलुंग’ नदी लगभग 50 किलोमीटर के एक हिस्से में लगभग 2000 मीटर की ऊंचाई से गिरती है। इस ढलान की सहायता से जल विद्युत उत्पादन में सहायता मिलती है। इसके सामने दुनिया में सबसे बड़ी मानी जाने वाली चीन की अपनी ‘थ्री गोर्जेस डैम’ सहित पृथ्वी पर मौजूद कोई भी अन्य एकल बुनियादी ढांचे की परियोजना छोटी पड़ जाएगी। अभी दुनिया का सबसे बड़ा जल विद्युत पावर स्टेशन ‘थ्री गोर्जेस डैम’ मध्य चीन के हुबेई प्रांत में यांगची नदी पर बना है।
भारत और चीन ने सीमा पार नदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए वर्ष 2006 में विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ई.एल.एम.) की स्थापना की थी जिसके तहत चीन बाढ़ के मौसम के दौरान भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदी पर जल विज्ञान संबंधी जानकारी प्रदान करता है मगर इस मामले में चीन ने भारत को कोई सूचना प्रदान नहीं की। सीमा मुद्दे पर भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.) अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच 18 दिसम्बर को हुई वार्ता में सीमा पार की नदियों के आंकड़ों को सांझा करने का मुद्दा उठा था। विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि विशेष प्रतिनिधियों ने सीमा पार नदियों पर डाटा सांझा करने सहित सीमा पार सहयोग और आदान-प्रदान के लिए सकारात्मक दिशा-निर्देश प्रदान किए।
ब्रह्मपुत्र पर यह बांध इंजीनियरिंग संबंधी भारी चुनौतियां पेश करता है टैक्टोनिक प्लेटों के ऊपर स्थित होने के कारण दुनिया की छत माने जाने वाले तिब्बती पठार में अक्सर भूकंप आते रहते हैं। वैसे चीन ने अपने आधिकारिक बयान में भूकंप संबंधी चिंताओं को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा है कि यह जल विद्युत परियोजना सुरक्षित है और इसमें पर्यावरण के संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ ङ्क्षनग ने कहा है कि सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण को यकीनी बनाने के लिए दशकों से व्यापक अध्ययन किए गए हैं। माओ ने भरोसा दिलाया है कि इस परियोजना का भारत और बंगलादेश पर किसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा इसका उद्देश्य नदी के किनारे रहने वाले समुदायों को लाभ पहुंचाना है परंतु मानवाधिकार समूहों और जानकारों ने इस घटनाक्रम के दुष्परिणामों को लेकर चिंता जताई है। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी पर अपने बांध का निर्माण कर रहा है तथा 18 दिसम्बर को हुई भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों की बैठक में आंकड़ों को सांझा करने पर चर्चा हुई थी।
चीन द्वारा परियोजना के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं देने के कारण यह परियोजना भारत के लिए अधिक चिंताजनक विषय है क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध का निर्माण इस क्षेत्र के ईको सिस्टम पर दबाव डाल कर अधिक विनाशकारी घटनाओं का कारण बन सकता है। इस बांध के आकार एवं पैमाने के कारण चीन को ब्रह्मïपुत्र के जल बहाव को नियंत्रित करने का अधिकार मिलने के अलावा शत्रुता अथवा युद्ध के समय सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत में बाढ़ लाने के लिए पानी छोडऩे में भी यह सक्षम हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह बांध ब्रह्मपुत्र नदी पर बनेगा जो अरुणाचल प्रदेश की ओर मुड़ती है। इससे भारत में पानी की आपूर्ति की समस्या पैदा हो सकती है। इस बांध को लेकर नई दिल्ली की ङ्क्षचता का एक कारण यह भी है कि इस बांध के बनने की स्थिति में भारत को पानी के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ सकता है जिससे चीन को भारत पर दबाव बनाने का मौका मिलेगा।
यही नहीं चीन इस बांध के कारण नदी के पानी पर नियंत्रण रखेगा जिससे निचले इलाकों में पानी की कमी हो सकती है। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार यह परियोजना भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा कर दोनों देशों के बीच ‘जलयुद्ध’ को जन्म दे सकती है। इन्हीं कारणों से इस परियोजना से भारत और बंगलादेश में ङ्क्षचता बढ़ गई है। भारत के उत्तर पूर्वी राज्य तथा बंगलादेश पहले से ही भयंकर बाढ़ की स्थितियों का सामना कर रहे हैं तथा जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ आदि और अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है जबकि अरुणाचल प्रदेश तो भूस्खलन के लिहाज से पहले ही अधिक संवेदनशील है और अक्सर वहां भूकंप का खतरा भी बना रहता है।