Edited By ,Updated: 09 Aug, 2024 04:59 AM
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ 13 मई, 2016 को सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश बनने के बाद 9 नवम्बर, 2022 को भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। न्यायctत चंद्रचूड़ के नाम पर सुप्रीमकोर्ट के वर्तमान जजों में सर्वाधिक लोक हितकारी फैसले सुनाने और टिप्पणियां करने का...
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ 13 मई, 2016 को सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश बनने के बाद 9 नवम्बर, 2022 को भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। न्यायctत चंद्रचूड़ के नाम पर सुप्रीमकोर्ट के वर्तमान जजों में सर्वाधिक लोक हितकारी फैसले सुनाने और टिप्पणियां करने का रिकार्ड दर्ज है। इनकी मात्र एक सप्ताह में की गई महत्वपूर्ण टिप्पणियां निम्न में दर्ज हैं :
* 2 अगस्त को श्री चंद्रचूड़ ने ‘वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र’ के रूप में लोक अदालतों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि :
‘‘लोक अदालतों में लम्बे समय से लटकते आ रहे मामलों का दोनों पक्षों की आपसी सहमति से निपटारा हो जाता है। इसी कारण लोक अदालतें लोकप्रिय हो रही हैं। लोग लम्बी चलने वाली अदालती कार्रवाई में नष्ट होने वाले समय से इतना तंग आ गए हैं कि वे चाहते हैं कि बस किसी तरह उनकी इस अदालती कार्रवाई से मुक्ति हो जाए क्योंकि लम्बी अदालती प्रक्रिया किसी सजा से कम नहीं है और इसी कारण यह न्यायाधीशों के लिए चिंता का विषय है।’’ ‘‘लोक अदालत का उद्देश्य लोगों के घरों तक न्याय पहुंचाना और लोगों को यह भरोसा दिलाना है कि हम उनके जीवन में निरंतर मौजूद हैं। आपसी समझौते से हुए फैसले के विरुद्ध कोई अपील भी नहीं की जा सकती।’’ उल्लेखनीय है कि लोक अदालतों में नागरिकों से संबंधित मामलों को पूरी तरह से स्वैच्छिक और सहमतिपूर्ण तरीके से दोनों पक्षों की संतुष्टि के अनुसार हल किया जाता है तथा दोनों पक्षों के अदालती खर्च में भी कमी आती है।
* 6 अगस्त को वकीलों द्वारा न्यायाधीशों पर मामले की शीघ्र सुनवाई के लिए जोर देने के रुझान से नाराज श्री चंद्रचूड़ ने उन पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘‘कृपया अदालत को निर्देश न दें। आप एक दिन के लिए यहां आकर बैठ क्यों नहीं जाते? तब आप अदालत को बताएं कि आप कौन सी तारीख चाहते हैं?’’
‘‘आप महसूस करेंगे कि अदालत में काम का कितना दबाव होता है। कृपया यहां आइए और एक दिन के लिए बैठिए। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि आप अपनी जान छुड़वा कर भागेंगे।’’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जहां वकीलों को उक्त नसीहत दी है वहीं उन्होंने जजों के फैसलों और टिप्पणियों पर भी बेबाक राय व्यक्त की है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजबीर सेहरावत ने सुप्रीमकोर्ट के विरुद्ध टिप्पणी करते हुए कहा था कि ‘‘सुप्रीमकोर्ट में यह मान लेने की प्रवृत्ति है कि वह अधिक सर्वोच्च है।’’
* 7 अगस्त को उक्त टिप्पणियों का स्वत: संज्ञान लेकर इन्हें हटाते हुए श्री चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने कहा :
‘‘पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश राजबीर सेहरावत की टिप्पणियां घोर ङ्क्षचता का विषय हैं। न तो सुप्रीमकोर्ट सर्वोच्च है और न ही हाईकोर्ट। वास्तव में भारत का संविधान सर्वोच्च है। हाईकोर्ट में कार्रवाई के संचालन के लिए ऐसी टिप्पणियां पूरी तरह अनावश्यक थीं।’’ सुप्रीमकोर्ट ने न्यायाधीश को चेतावनी देते हुए कहा कि ‘‘भविष्य में सुप्रीमकोर्ट तथा हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा पारित आदेशों पर विचार करते समय उनसे और अधिक सावधानी बरतने की उम्मीद की जाती है।’’
* 7 अगस्त को ही न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा,‘‘जज बन कर रिटायर होने वाले व्यक्ति को राजनीति में आने से पहले थोड़ा समय देना चाहिए और इसमें पर्याप्त अंतराल होना चाहिए।’’
‘‘जिन्हें लोग अदालतों की लम्बी छुट्टियां कहते हैं उनमें भी जज तैयारी करते हैं। जजों को समय नहीं देंगे तो वे काम कैसे करेंगे?’’
‘‘केंद्र और राज्य सरकारें छोटे-छोटे मामले भी सुप्रीमकोर्ट में ले आती हैं इससे बोझ बढ़ता है।’’ ‘‘लोग अदालतों में जाने से इसलिए डरते हैं क्योंकि अदालतों की भाषा, शैली और प्रक्रिया आम नहीं है। इसे आसान तथा आम आदमी के हिसाब से बनाया जाए तो काफी सुधार हो सकता है।’’ इस समय जबकि विधायिका और कार्यपालिका लगभग निष्क्रय हो चुकी हैं, न्यायपालिका महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनेक जनहितकारी निर्णय ले रही है। ऐसे में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की उक्त टिप्पणियां एक प्रकाश स्तम्भ के समान ही हैं।—विजय कुमार