‘किसान आंदोलन का जारी रहना’ ‘सरकार, किसानों और लोगों के लिए हानिकारक’

Edited By ,Updated: 27 Aug, 2024 05:25 AM

continuation of farmer agitation  harmful for the government and farmers

अपनी मांगों को लेकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि के किसानों द्वारा 9 अगस्त, 2020 को शुरू किए गए आंदोलन के दौरान नवम्बर, 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों विवादास्पद कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी थी जिसके बाद किसानों ने...

अपनी मांगों को लेकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि के किसानों द्वारा 9 अगस्त, 2020 को शुरू किए गए आंदोलन के दौरान नवम्बर, 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों विवादास्पद कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी थी जिसके बाद किसानों ने 11 दिसम्बर, 2021 को अपना आंदोलन वापस ले लिया था। परंतु किसान संगठनों के साथ सरकार ने जो वायदे किए थे उन्हें पूरा नहीं किए जाने के कारण किसानों ने फिर से दिल्ली कूच करने की घोषणा कर दी और अब किसानों के आंदोलन के दूसरे चरण में पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू बार्डर पर गत 13 फरवरी से जारी धरने के 31 अगस्त को 200 दिन पूरे हो जाएंगे। इस दौरान समय-समय पर कुछ नेताओं द्वारा आपत्तिजनक बयान देकर वातावरण खराब करने की कोशिशें भी जारी हैं। 

12 अगस्त को पिछली सुनवाई में सुप्रीमकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा की सरकारों को आंशिक रूप से बार्डर खोलने का निर्देश देते हुए कहा था कि वे शंभू बार्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को सड़क से ट्रैक्टर और ट्रालियां हटाने के लिए राजी करें।सुप्रीमकोर्ट के उक्त आदेश के बावजूद 21 अगस्त तथा 25 अगस्त को पटियाला में पंजाब पुलिस, किसानों और हरियाणा के वरिष्ठ अधिकारियों की हुई बैठकें बेनतीजा रहने के कारण बार्डर का खुलना फिलहाल टल गया है। किसान नेताओं जगजीत सिंह डल्लेवाल और सरवण सिंह पंधेर ने इस संबंध में कहा है कि : ‘‘हमने बार्डर बंद नहीं किया है बल्कि हरियाणा और केंद्र सरकारों ने बैरीकेडिंग करके बार्डर बंद किया है। बैठक में हमने मांग रखी थी कि शम्भू और खनौरी बार्डरों पर लगे कंक्रीट बैरीकेड हटाकर हमें दिल्ली जाने दिया जाए। क्योंकि हमारी मांगें सीधे तौर पर केंद्र सरकार से संबंधित हैं। अत: हम दिल्ली जाकर मोर्चा लगाएंगे।’’ 

‘‘केंद्र सरकार हमारी मांगें मानने के मामले में गंभीर नहीं है। सरकार को शंभू बार्डर खोलना चाहिए। हरियाणा चाहता है कि किसान ट्रैक्टर-ट्रालियां लेकर दिल्ली न जाएं परंतु वे ट्रैक्टर-ट्रालियों के बिना दिल्ली नहीं जाएंगे।’’ इन हालात के बीच 22 अगस्त को सुप्रीमकोर्ट ने किसानों की शिकायतों का हमेशा के लिए सौहार्दपूर्ण समाधान करने के उद्देश्य से एक सप्ताह के भीतर एक बहुसदस्यीय समिति का गठन करने की घोषणाके अलावा अगली सुनवाई के लिए 2 सितम्बर की तारीख तय की है। दूसरी ओर किसान नेताओं ने 31 अगस्त को शंभू बार्डर सहित तीन स्थानों पर किए जाने वाले प्रदर्शनों की रणनीति भी बना ली है। उल्लेखनीय है कि शंभू बार्डर पर धरने के दौरान अब तक 26 किसानों की मौत हो चुकी है जबकि कर्ज एवं आॢथक तंगी के कारण देश के किसान लगातार आत्महत्याएं कर रहे हैं। आत्महत्या की नवीनतम घटना में 22 अगस्त को लुधियाना के गांव घुंघराना के एक किसान परिवार के 3 सदस्यों ने लुधियाना-धूरी रेलवे लाइन पर एक रेलगाड़ी के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली। 

इस तरह के हालात के बीच जहां आंदोलनकारी किसानों और केंद्र सरकार के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है, वहीं भाजपा सांसद कंगना रनौत द्वारा किसानों के आंदोलन को लेकर बयान से बवाल मच गया है : 25 अगस्त को कंगना रनौत ने कहा कि ‘‘यदि सरकार ने कड़े कदम न उठाए होते तो किसानों के विरोध प्रदर्शन के समय पंजाब को भी बंगलादेश बना दिया जाता। तब निरस्त किए गए तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध किसानों  के विरोध प्रदर्शन के दौरान लाशें लटक रही थीं और बलात्कार हो रहे थे।’’ कंगना के इस बयान से किनारा करते हुए भाजपा ने कहा है कि कंगना को नीतिगत मुद्दों पर बोलने का अधिकार नहीं है। किसानों का आंदोलन जारी रहने से न सिर्फ उनकी ऊर्जा व्यर्थ में नष्ट हो रही है, बल्कि अपने जिस समय का सदुपयोग वे खेतों में कर सकते थे, वह धरना-प्रदर्शन की भेंट चढ़ रहा है। यही नहीं, धरना-प्रदर्शन के कारण क्षेत्रवासियों को भी भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है और सरकार की प्रतिष्ठा पर भी आंच आ रही है। अत: इस समस्या को यथाशीघ्र सुलझाने में ही सभी पक्षों का हित है। अब जबकि इसी वर्ष हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने जा रहे हैं, यदि सरकार किसानों की भी सुन ले तो उसे इसका लाभ पहुंच सकता है।—विजय कुमार 

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