देश में ‘डिजीटल अरैस्ट’ और ‘साइबर स्लेवरी’ द्वारा लोगों को लूट रहे ‘साइबर अपराधी’

Edited By ,Updated: 25 Dec, 2024 05:02 AM

cyber  criminals  are robbing people through  cyber slavery

देश में ‘डिजीटल अरैस्ट’, ‘साइबर स्लेवरी’ आदि ‘साइबर अपराध’ तेजी से बढ़ रहे हैं।

देश में ‘डिजीटल अरैस्ट’, ‘साइबर स्लेवरी’ आदि ‘साइबर अपराध’ तेजी से बढ़ रहे हैं। ‘डिजीटल अरैस्ट’ के मामलों में अपराधी स्वयं को पुलिस, सी.बी.आई., इंकम टैक्स अधिकारी आदि बता कर लोगों से व्हाट्सऐप, स्काइप आदि प्लेटफार्मों पर वीडियो कॉल द्वारा सम्पर्क करके उन्हें आर्थिक धोखाधड़ी, टैक्स चोरी या अन्य कानूनों के उल्लंघन का हवाला देकर डिजीटल गिरफ्तारी की धमकी देते हैं। ये जालसाज लोगों पर गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने किसी बैंक खाते में बड़ी रकम भेजने का दबाव बनाते हैं और उन्हें ठगने के बाद गायब हो जाते हैं। ऐसी ही ठगी के चंद ताजा उदाहरण निम्न में दर्ज हैं :

* 18 दिसम्बर को बेंगलुरू में जालसाजों ने स्वयं को सी.बी.आई. अधिकारी बता कर मनी लांङ्क्षड्रग का केस दर्ज करनेे का भय दिखाकर एक महिला को ‘डिजीटल अरैस्ट’ करके उसके बैंक खाते का विवरण हासिल कर लिया और जांच-प्रक्रिया के नाम पर उससे 1.24 करोड़ रुपए ठग लिए। 
* 19 दिसम्बर को इंदौर में एक साफ्टवेयर इंजीनियर को साइबर अपराधियों का एक ऑनलाइन कॉल आया जिसमें उससे कहा गया कि कस्टम द्वारा रोके गए उसके नाम पर आए पार्सल में ड्रग्स और कई संदिग्ध वस्तुएं मिली हैं। साइबर ठगों ने उसे 3 दिनों तक ‘ऑनलाइन अरैस्ट’ रख कर उससे लगभग एक लाख रुपए ठग लिए।
* 20 दिसम्बर को देहरादून में साइबर ठगों ने एक रिटायर्ड महिला बैंक कर्मचारी को 5 दिनों तक ‘डिजीटल अरैस्ट’ कर उससे 31 लाख 31 हजार रुपए ट्रांसफर करवा लिए। ठगों ने उसे डराया कि उसके खाते में 2 करोड़ रुपए का अवैध रूप से लेन-देन हुआ है। 

* 23 दिसम्बर को बेंगलुरू में एक साफ्टवेयर इंजीनियर ‘डिजीटल अरैस्ट’ का शिकार हो गया। जालसाजों ने पहले स्वयं को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) और फिर पुलिस अधिकारी बता कर दावा किया कि आधार कार्ड से जुड़े उसके सिम कार्ड का इस्तेमाल अवैध विज्ञापनों और अभद्र संदेश भेजने के लिए किया गया था। 
जालसाजों ने मामला गोपनीय रखने की हिदायत के साथ ही डिजीटल तरीके से जांच में सहयोग न करने पर उसे गिरफ्तार कर लेने की धमकी भी दी और इसके बाद इसी तरह के बहानों से उसके बैंक खातों से 11.8 करोड़ रुपए ट्रांसफर करवा लिए। जब जालसाजों ने और रकम की मांग की तब कहीं जाकर इंजीनियर को धोखाधड़ी का शिकार होने का एहसास हुआ और उसने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। 

* 23 दिसम्बर को ही कानपुर में साइबर ठगों ने स्वयं को सी.बी.आई. अधिकारी बता कर एक व्यक्ति को कई नंबरों से व्हट्सऐप और मोबाइल पर फोन करके उसका रिश्वतखोरी का वीडियो वायरल होने की धमकी देकर गिरफ्तारी से बचाने के लिए बार-बार रुपए मांग कर उससे लगभग 1.25 लाख रुपए ठग लिए।  
* और अब 24 दिसम्बर को जयपुर में एक मल्टीनैशनल कंपनी के इंजीनियर को 3 दिनों तक डिजीटल अरैस्ट रख कर उससे 1.35 लाख रुपए की ठगी करने के आरोप में एक छात्र को गिरफ्तार किया गया है। 
‘डिजीटल अरैस्ट’ के साथ-साथ अब ‘साइबर स्लेवरी’ के मामले भी सामने आने लगे हैं।  इनमें साइबर अपराधियों द्वारा पढ़े-लिखे और तकनीकी प्रशिक्षित युवाओं को आई.टी. क्षेत्र में रोजगार के लुभावने अवसरों का झांसा देकर दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में ले जाकर उनके पासपोर्ट व अन्य परिचय पत्र छीन कर तथा साइबर गुलाम बनाकर भारतीय नागरिकों के साथ साइबर धोखाधड़ी करने के लिए विवश किया जाने लगा है। 
हालांकि सरकार द्वारा ‘साइबर क्राइम’ से बचने के लिए अखबारों में विज्ञापन देकर और सरकार के निर्देश पर टैलीकॉम आप्रेटरों द्वारा ‘साइबर क्राइम जागरूकता कॉलर ट्यून’ बजा कर लोगों को सचेत किया जा रहा है परन्तु इसके बावजूद लोग ‘डिजीटल अरैस्ट’ का शिकार हो रहे हैं। वैसे तो ऑनलाइन ठगी के मामले विश्व भर में तेजी से बढ़ रहे हैं परंतु ऐसी ठगी का शिकार होने वालों में भारतीय सबसे अधिक हैं। अत: यदि इस माडर्न लूट को रोकने के लिए और प्रभावी कदम न उठाए गए तो कहना मुश्किल है कि यह सिलसिला कहां जाकर रुकेगा।—विजय कुमार

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