Edited By ,Updated: 09 Dec, 2024 03:49 AM
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रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपनी अर्थव्यवस्था तेजी से बढऩे की बात कही है जो सही है और इसमें हमारे खनन उद्योगों का भी महत्वपूर्ण योगदान है, परंतु उसका एक नकारात्मक पहलू भी है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपनी अर्थव्यवस्था तेजी से बढऩे की बात कही है जो सही है और इसमें हमारे खनन उद्योगों का भी महत्वपूर्ण योगदान है, परंतु उसका एक नकारात्मक पहलू भी है। अपनी विकास सम्बन्धी जरूरतें पूरी करने के लिए निर्माण कार्यों में इस्तेमाल के लिए खनन उद्योग अधिक से अधिक खनिज पदार्थों का खनन कर रहा है। ऐसा ही एक खनिज पदार्थ रेत और पत्थर का महत्वपूर्ण घटक ‘सिलीकोन डाईआक्साइड’ या सिलिका है।
भारत में लाखों मजदूर जीवन-यापन के लिए प्रतिदिन ‘सिलिका धूल’ के संपर्क में आते हैं जो सांस के रास्ते शरीर में पहुंच कर उन्हें मौत की ओर खींच ले जाती हैं क्योंकि इसके परिणामस्वरूप सिलिका के कण फेफड़ों में फंस जाने के कारण श्रमिकों में जानलेवा ‘सिलकोसिस’ नामक रोग होने का जोखिम बढ़ जाता है और श्रमिकों के प्राणों के लिए खतरा पैदा हो जाता है। इस धूल के सांस के जरिए शरीर में पहुंचने पर व्यक्ति फेफड़ों की जानलेवा बीमारी ‘सिलिकोसिस’ से पीड़ित हो सकता है।
एक अध्ययन के अनुसार श्रमिकों के जीवन पर सिलिका धूल के स्वीकार्य स्तर के संपर्क में रहने के बावजूद सिलिकोसिस विकसित होने का जोखिम अत्यंत अधिक होता है तथा इस संपर्क को घटाकर बड़ी संख्या में मौतों को टाला जा सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार देमा में 80 लाख से अधिक लोग इस धूल के कारण स्वास्थ्य के जोखिम पर हैं। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि ऐसा न करने पर ‘सिलिकोसिस’ भी वैसी ही बड़ी समस्या बन सकती है जैसा कि बेहद जहरीले रसायन एस्बेस्टस के संपर्क में आने पर हुआ था।
इसी को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सिलिका खनन संयंत्रों को अनुमति देने के विषय में नए दिशा-निर्देश तैयार करने का 29 नवम्बर को निर्देश दिया है। अत: विशेषज्ञों का सुझाव है कि वर्तमान में इसके संपर्क में आने की स्वीकार्य सीमा को घटाकर आधा कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे न केवल टी.बी. बल्कि कैंसर होने का खतरा है। इसलिए कर्मचारियों की नियमित स्वास्थ्य जांच को अनिवार्य बनाना चाहिए।