Edited By ,Updated: 04 Sep, 2024 05:22 AM
गत सप्ताह उत्तर प्रदेश के बरेली में आयोजित ‘आला हजरत’ के उर्स के मौके पर बेटियों को लेकर कई बड़े पैगाम दिए गए तथा देश-विदेश से आए बरेलवी सुन्नी मुसलमानों को ‘दहेज हटाओ-बेटी बचाओ’ का संदेश दिया गया। ‘मुफ्ती सलीम नूरी बरेलवी’ ने अपने पैगाम में दहेज को...
गत सप्ताह उत्तर प्रदेश के बरेली में आयोजित ‘आला हजरत’ के उर्स के मौके पर बेटियों को लेकर कई बड़े पैगाम दिए गए तथा देश-विदेश से आए बरेलवी सुन्नी मुसलमानों को ‘दहेज हटाओ-बेटी बचाओ’ का संदेश दिया गया। ‘मुफ्ती सलीम नूरी बरेलवी’ ने अपने पैगाम में दहेज को एक सामाजिक बुराई करार देते हुए कहा कि ‘‘इसके कारण कुछ बेटियों के कदम बहकने के मामले भी हुए। दहेज की बजाय बेटियों को विरासत में हिस्सा दें। माता-पिता और भाई उनका विशेष ध्यान रखें और सही उम्र में निकाह (विवाह) करें।’’
‘मदरसा जामिया तुर रजा’ में एक अन्य कांफ्रैंस में उलेमाओं (मुस्लिम विद्वानों) ‘आला हजरत दरगाह’ के सज्जादा नशीन ‘मुफ्ती अहसन रजा कादरी’, ‘मुफ्ती सलीम नूरी’ आदि ने बेटियों की शिक्षा पर जोर देते हुए अपील की, ‘‘भले ही आधी रोटी कम खाएं पर बेटियों को अवश्य पढ़ाएं।’’ बरेली के ‘उलेमाओं’ की भांति ही उत्तर प्रदेश में ‘जाजमऊ’ स्थित ‘हजरत मखदूम शाह आला के मजार शरीफ’ पर आयोजित धार्मिक समारोह में हजरत मखदूम शाह आला दरगाह कमेटी के अध्यक्ष इरशाद आलम ने भी कुछ इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा :
‘‘तालीम वह नायाब चीज है जिसे न तो कोई छीन सकता है और न ही कोई चुरा सकता है। लिहाजा चाहे आधी रोटी खाएं, परन्तु अपने बच्चों को तालीम जरूर दिलाएं, विशेषकर बेटियों को शिक्षा से वंचित न करें।’’मुस्लिम भाईचारे में उठी बदलाव की ये आवाजें किसी एक जाति या धर्म के लिए नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोगों पर लागू होती हैं। इन्हें अपनाने में अपना ही नहीं पूरे देश व समाज का भला है। जिस समाज में महिलाओं को समानता व सम्मान का दर्जा दिया जाता है वही उन्नति करता है। ‘आर्य समाज’ के संस्थापक स्वामी दयानंद जी ने भी देश के पतन का कारण नारी का अपमान माना था। इसीलिए उन्होंने महिलाओं को सर्वप्रथम नारी शिक्षा का अधिकार दिलाया। वहीं महात्मा ज्योतिबा फुले ने सर्वप्रथम महिला शिक्षा पर काम करते हुए पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला विद्यालय स्थापित किया था।—विजय कुमार