Edited By ,Updated: 16 Jun, 2024 04:54 AM
वैसे तो लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 13 अगस्त को दुनिया भर में ‘विश्व अंगदान दिवस’ मनाया जाता है परंतु कई देश अपने क्षेत्रीय कैलेंडर के अनुसार भी अंगदान दिवस मनाते हैं। भारत में ‘राष्ट्रीय अंगदान दिवस’ 2010 से 27...
वैसे तो लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 13 अगस्त को दुनिया भर में ‘विश्व अंगदान दिवस’ मनाया जाता है परंतु कई देश अपने क्षेत्रीय कैलेंडर के अनुसार भी अंगदान दिवस मनाते हैं। भारत में ‘राष्ट्रीय अंगदान दिवस’ 2010 से 27 नवम्बर को मनाना शुरू किया गया। जीवित अंगदानी द्वारा दान दिए गए अंग का पहला सफल प्रत्यारोपण 1954 में अमरीका में किया गया था, जब ‘रोनाल्ड ली हैरिक’ नामक व्यक्ति ने अपने जुड़वां भाई ‘रिचर्ड ली हैरिक’ को अपनी एक किडनी दान की थी। यह सफल अंग प्रत्यारोपण डाक्टर ‘जोसेफ मरे’ ने किया था, जिसके लिए उन्हें 1990 में ‘फिजियोलॉजी तथा मैडीसिन’ में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था।
भारत में प्रतिवर्ष दिल, जिगर (लिवर) या किडनी की तकलीफ से पीड़ित 5 लाख लोगों की मौत अंगदानी न मिलने के कारण होती है। कई बार किसी दुर्घटना में व्यक्ति के ‘ब्रेन डैड’ हो जाने पर उसका बचना कठिन होता है। तब ऐसे लोगों के परिजनों द्वारा दान किए उसके अंग मृत्यु किनारे पड़े किसी दूसरे रोगी का जीवन बचा सकते हैं। ‘ब्रेन डैड’ व्यक्ति का लिवर तीन लोगों के काम आ सकता है। दान की गई त्वचा पांच वर्ष तक सुरक्षित रहती है तथा तेजाबी हमले, आतिशबाजी के शिकार या जले लोगों के काम आ सकती है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 2,00,000 रोगियों में किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता के मुकाबले केवल 6000 किडनी प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं। हृदय प्रत्यारोपण की दर तो और भी कम है। अत: हृदय वाल्व दान से हृदय दोष के साथ जन्मे बच्चों के साथ-साथ क्षतिग्रस्त हृदय वाल्व वाले वयस्कों का जीवन भी बचाया जा सकता है। प्रतिवर्ष लगभग 50,000 लोग हृदय फेल हो जाने के कारण मर जाते हैं। 10 से 15 हृदय प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं जबकि इसी तरह प्रति वर्ष 2,00,000 भारतीय लिवर फेलियर या लिवर कैंसर से अपनी जान गंवा देते हैं। लेकिन अब अंग प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे रोगियों को राहत प्रदान करने वाली एक अच्छी खबर आई है। केंद्र सरकार दो परिवारों के बीच ‘आर्गन एक्सचेंज’ की योजना पर काम कर रही है। वर्तमान में अधिकांश अंगदान परिवार के अंदर ही होते हैं। माता, पिता, पुत्र, पुत्री, भाई, बहन और जीवनसाथी जैसे निकट रिश्तेदारों में अदला-बदली की पहले ही अनुमति है।
हालांकि जब दोनों (अंगदानी व प्राप्तकत्र्ता) के ब्लड ग्रुप मेल नहीं खाते तो मरीज को लम्बे समय तक इंतजार करना पड़ता है लेकिन अब अगर मैच उपलब्ध हो तो एक परिवार दूसरे परिवार के साथ आर्गन एक्सचेंज कर सकेगा। इस योजना में अंगदानियों के लिए ‘बीमा स्वास्थ्य कवरेज योजना’ एक अच्छा कदम है। मृतक दानियों में ‘ब्रेन स्टैम डैथ’ से पीड़ित भी शामिल होंगे। सड़क दुर्घटना का शिकार ‘ब्रेन स्टैम डैड’ व्यक्ति खुद सांस नहीं ले सकता परंतु उसे वैंटीलेटर सपोर्ट व तरल पदार्थ पर जीवित रखा जा सकता है ताकि उसका हृदय और अन्य अंग काम करते रहें। अंग प्रत्यारोपण के लिए भारत में दो विकल्प दिए गए हैं। पहला जीवित संबंधी डोनर और दूसरा वह डोनर जिसकी मृृत्यु हो चुकी हो या ब्रेन डैड हो।
निकट रिश्तेदार प्रथम श्रेणी के परिवार के सदस्य होते हैं जिन्हें कानून के अनुसार अंगदान की अनुमति दी जाती है। दोस्तों या किसी दूसरे परिवार को अंगदान के लिए कानून में फिलहाल अनुमति नहीं है, जिसकी जांच के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया है। 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति अपनी उम्र, जाति और धर्म के बावजूद स्वेच्छा से अंगदान कर सकता है, परंतु यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि अंगदान करने वाला एच.आई.वी., कैंसर, हृदय रोग व फेफड़ों की बीमारियों जैसी तकलीफों से पीड़ित न हो तथा स्वस्थ हो। हालांकि अंगदान एक नेक कार्य है परंतु जागरूकता की कमी के कारण संभावित दाताओं के मन में अंगदान के बारे में कई भ्रांतियां और भय हैं। कुछ वर्ष पहले तक लोग खून दान करने से ही घबराते थे, जैसे आज अंगदान करने से घबराते हैं। हालांकि खून दान करने से शरीर में कमजोरी नहीं आती व निकाले गए खून की कमी भी जल्दी ही पूरी हो जाती है।
मृत शरीर को जलाने से वे अंग भी नष्ट हो जाते हैं, जिनमें जान होने के कारण उनसे किसी जरूरतमंद को नवजीवन दिया जा सकता है। अत: लोगों को ब्रेन डैड व्यक्ति या मृत्यु होने पर व्यक्ति के इस्तेमाल करने योग्य अंगों का दान कर देना चाहिए क्योंकि इससे बड़ा कोई दान नहीं है।—विजय कुमार