अध्यापकों द्वारा छात्र-छात्राओं का उत्पीड़न तथा उन पर अत्याचार

Edited By ,Updated: 27 May, 2024 05:21 AM

harassment and oppression of students by teachers

जीवन में माता-पिता के बाद अध्यापक का ही सर्वोच्च स्थान माना गया है। अध्यापक ही बच्चों को सही शिक्षा देकर ज्ञानवान बनाता है परंतु आज चंद अध्यापक अपनी मर्यादा को भूल कर बच्चों पर अमानवीय अत्याचार कर रहे हैं जो निम्न उदाहरणों से स्पष्ट है :

जीवन में माता-पिता के बाद अध्यापक का ही सर्वोच्च स्थान माना गया है। अध्यापक ही बच्चों को सही शिक्षा देकर ज्ञानवान बनाता है परंतु आज चंद अध्यापक अपनी मर्यादा को भूल कर बच्चों पर अमानवीय अत्याचार कर रहे हैं जो निम्न उदाहरणों से स्पष्ट है : 

* 21 अप्रैल को ग्रेटर नोयडा के सूरज कोतवाली क्षेत्र में ‘खेड़ी बनौता’ गांव स्थित एक इंटर कालेज के निदेशक ने चौथी कक्षा में पढऩे वाले एक छात्र के सिर के बाल खड़े होने पर उसकी बुरी तरह पिटाई कर दी जिससे उसके पूरे शरीर पर नील पड़ गए। 
* 30 अप्रैल को लुधियाना में स्थित एक निजी स्कूल की अध्यापिका की पिटाई से दूसरी कक्षा में पढऩे वाले एक बच्चे की आंख में गहरी चोट आ गई जिसे इलाज के लिए सिविल अस्पताल ले जाना पड़ा।  
* 1 मई को राजस्थान में बाड़मेर के ‘हेबतका’ स्थित सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल में परीक्षा देने गए तीसरी कक्षा में पढऩे वाले अल्तमश नामक छात्र द्वारा अपनी उत्तर पुस्तिका पर गलती से अपना नाम और रोल नम्बर न लिखने के कारण उसके अध्यापक ‘गणपत पतालिया’ ने मासूम को लोहे की छड़ से बेरहमी से पीट डाला जिससे वह बेहोश हो गया।
बच्चे के अभिभावकों द्वारा शिकायत करने पर उल्टे अध्यापक उन्हीं को यह कह कर धमकाने लगा कि उसका रिश्तेदार डी.एस.पी. है। 

* 7 मई को उत्तर प्रदेश में खतौली के एक निजी स्कूल में एक अध्यापक पर नर्सरी तथा एल.के.जी. कक्षाओं के 2 छोटे बच्चों को पीटने का आरोप लगाते हुए बच्चों के माता-पिता ने भारी प्रोटैस्ट किया।
* 23 मई को पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के ‘भगवान गोला’ के सरकारी हाई स्कूल में स्कूल की यूनीफॉर्म पहन कर न आने पर स्कूल के प्रधानाध्यापक ने छठी कक्षा के छात्र को डंडे से बुरी तरह पीट डाला जिससे कमर टूट जाने पर उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।  
* 24 मई को हरियाणा के समालखा में 5 वर्षीय एक बच्ची को ट्यूशन पढ़ाने के दौरान उसकी टीचर ने गुस्से में आकर उसकी आंख पर कापी दे मारी जिसके परिणामस्वरूप बच्ची को दिखाई देना बंद हो गया। बच्ची के परिजन पहले उसे इलाज के लिए रोहतक पी.जी.आई. ले गए और वहां से उसे एम्स दिल्ली में रैफर कर दिया गया। छात्र-छात्राओं पर अध्यापकों द्वारा मारपीट के ये तो चंद उदाहरण मात्र हैं जो इस आदर्श व्यवसाय पर एक घिनौना धब्बा व अध्यापक वर्ग में भी बढ़ रही नैतिक गिरावट का परिणाम है। 

टीचर द्वारा किसी छात्र को मानसिक या शारीरिक यातना देने पर उसके विरुद्ध शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 17 के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के अलावा उन्हें नौकरी तक से बर्खास्त किया जा सकता है। 
लेकिन उक्त प्रावधानों के बावजूद अध्यापकों का एक वर्ग सारे कायदे-कानून भूल कर और परिणाम पर विचार किए बिना मासूम बच्चे-बच्चियों पर इस तरह के अत्याचार कर रहा है। ऐसे अध्यापकों को शिक्षाप्रद सजा दी जाए ताकि उनके द्वारा छात्र-छात्राओं के उत्पीडऩ का यह दुष्चक्र रुके। अध्यापकों को नौकरी देते  समय उनका इंटरव्यू लेने के साथ-साथ उनका मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी करने के अलावा नौकरी देने के बाद भी नियमित रूप से अध्यापकों की काऊंसलिंग की जानी चाहिए।

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