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‘हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चुनावों के’ ‘अचम्भित करने वाले नतीजे’

Edited By ,Updated: 09 Oct, 2024 05:06 AM

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लगभग सभी एग्जिट पोल में इस बार हरियाणा में कांग्रेस की भारी बहुमत से विजय की स्पष्ट भविष्यवाणी की गई थी परन्तु जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं थी कि वहां कौन जीतेगा। एग्जिट पोल के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस को हरियाणा में...

लगभग सभी एग्जिट पोल में इस बार हरियाणा में कांग्रेस की भारी बहुमत से विजय की स्पष्ट भविष्यवाणी की गई थी परन्तु जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं थी कि वहां कौन जीतेगा। एग्जिट पोल के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस को हरियाणा में 10 वर्ष बाद सरकार बनाने का भरोसा था परन्तु परिणाम एग्जिट पोल के विपरीत रहे। इन चुनावों में जहां भाजपा 48 सीटें जीत कर तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है, वहीं कांग्रेस 37 सीटों पर ही सिमट गई है। 

चुनावों के दौरान भाजपा को सत्ता विरोधी लहर के अलावा कांग्रेस व अन्य दलों द्वारा बेरोजगारी और किसान आंदोलन आदि को लेकर आरोपों का सामना करना पड़ा। दूसरी ओर भाजपा ने कांग्रेस के शासनकाल में भ्रष्टाचार, भूमि स्कैंडलों और सरकारी नौकरियों में पक्षपात आदि का मुद्दा उठाया। कांग्रेस में हाल ही के लोकसभा चुनावों में अच्छे प्रदर्शन के चलते अति आत्मविश्वास, मुख्यमंत्री को लेकर कलह, कुमारी शैलजा की नाराजगी के प्रति हाईकमान की उदासीनता और ‘आप’ तथा अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी गठबंधन न होना कांग्रेस पार्टी के पिछड़ जाने का कारण भी रहा। जहां तक जम्मू-कश्मीर का संबंध है, कश्मीर में नैशनल कान्फ्रैंस और जम्मू में भाजपा को अधिक सीटें मिली हैं। कश्मीर में नैशनल कान्फ्रैंस (42) तथा  सहयोगी कांग्रेस (6) को 48 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला हैै। अतीत में कांग्रेस पार्टी का जम्मू क्षेत्र में मजबूत आधार रहा है परन्तु इस बार उसका आधार खिसक गया और वह जम्मू क्षेत्र मेंं एक ही सीट जीत पाई। सबसे बड़ा झटका पी.डी.पी. को लगा है जिसे 3 सीटें ही मिली हैं। 

जम्मू-कश्मीर के चुनावों में भाजपा को बड़े करिश्मे की उम्मीद थी परन्तु उसे 29 सीटों पर संतोष करना पड़ा। भाजपा नेताओं का अनुमान था कि कुल 35 के लगभग सीटें आने पर वे 5 नामांकित सीटों और निर्दलीयों के सहयोग से सरकार बनाने में सफल हो जाएंगे परन्तु ऐसा नहीं हो रहा। सरकार बनाने की कोशिश में पहाड़ी भाषी समुदाय को पिछड़़ी जनजाति का दर्जा देने, धारा 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की समाप्ति तथा पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के विरुद्ध चलाए गए ‘आल आऊट’ अभियान तथा मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट देने का भी इसे कोई विशेष लाभ नहीं मिला। अलबत्ता जम्मू-कश्मीर में ‘आप’ को एक सफलता अवश्य मिली है जहां उसका एक उम्मीदवार चुनाव जीत गया है। नैकां-कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलने पर सरकार बनाने की राह आसान हो गई है और नैशनल कान्फ्रैंस अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला ने उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा भी कर दी है। 

पी.डी.पी. सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती ने कांग्रेस और नैशनल कांफ्रैंस की विजय पर कहा है कि ‘‘केंद्र को जम्मू-कश्मीर के निर्णायक फैसले से सबक लेना चाहिए और नैकां-कांग्रेस सरकार के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यदि वे ऐसा करते हैं तो यह विनाशकारी होगा। मैं जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी स्थिर सरकार को वोट देने के लिए बधाई देती हूं।’’ नैकां सुप्रीमो फारूक अब्दुल्ला ने भी बड़ा दिल दिखाते हुए कहा है कि, ‘‘गठबंधन सरकार में पी.डी.पी. को भी शामिल किया जाएगा।’’बहरहाल, अब जबकि भाजपा द्वारा हरियाणा में और नैकां-कांग्रेस गठबंधन द्वारा जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने की कवायद शुरू होने जा रही है, ये चुनाव एक सबक हैं, सभी राजनीतिक दलों के लिए कि एकता में ही बल है और फूट का नतीजा हमेशा हानि में ही निकलता है। 

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में 2014 में अंतिम बार विधानसभा चुनाव हुए थे जिनमें पी.डी.पी. ने सर्वाधिक 28 सीटें जीती थीं तथा 25 सीटें जीतने वाली भाजपा से गठबंधन करके सरकार बनाई थी जो दोनों पार्टियों के बीच नीतिगत मतभेदों के कारण कायम न रह सकी। 2018 में महबूबा के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र के बाद से ही जम्मू-कश्मीर का प्रशासन बिना चुनी हुई सरकार के उप-राज्यपाल द्वारा ही चलाया जा रहा था। अब जबकि राज्य में नैकां और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है, आशा करनी चाहिए कि दोनों पार्टियां मिलकर बेहतर ढंग से राज्य का प्रशासन चलाकर इसे खुशहाली की ओर ले जाएंगी।—विजय कुमार

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