Edited By ,Updated: 04 Jan, 2025 05:17 AM
मां-बाप की सेवा और देखभाल प्रत्येक संतान की जिम्मेदारी है। हमारी संस्कृति इसे जीवन का महत्वपूर्ण अंग मानती है परंतु आधुनिक समाज में अनेक संतानों ने अपनी इस जिम्मेदारी को भुला दिया है। इसलिए आज चंद माता-पिता अपनी संतानों के हाथों ही उत्पीड़ित और...
मां-बाप की सेवा और देखभाल प्रत्येक संतान की जिम्मेदारी है। हमारी संस्कृति इसे जीवन का महत्वपूर्ण अंग मानती है परंतु आधुनिक समाज में अनेक संतानों ने अपनी इस जिम्मेदारी को भुला दिया है। इसलिए आज चंद माता-पिता अपनी संतानों के हाथों ही उत्पीड़ित और अपमानित हो रहे हैं। अनेक संतानें शादी के बाद अपने माता-पिता की ओर से आंखें ही फेर लेती हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य किसी भी तरह उनकी सम्पत्ति पर कब्जा करना ही रह जाता है तथा इसके बाद वे उन्हें घर से निकालने और उन पर अत्याचार करने में जरा भी संकोच नहीं करतीं।
‘शकीरा बेगम’ नामक महिला ने मद्रास हाईकोर्ट में अपने बेटे ‘मोहम्मद दयान’ के विरुद्ध उसे दान में दी गई सम्पत्ति के हस्तांतरण (इंतकाल) को रद्द करने की अपील करते हुए शिकायत की थी कि उसने अपने बेटे द्वारा पालन-पोषण के वादे पर अपनी सम्पत्ति उसके नाम कर दी थी लेकिन बेटा उसकी देखभाल करने में विफल रहा। 23 सितम्बर, 2023 को न्यायमूर्ति ‘एस.एम. सुब्रामण्यम’ ने ‘शकीरा बेगम’ के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि,‘‘यदि कोई संतान माता-पिता की देखभाल करने में विफल रहती है तो माता-पिता को अपनी दी हुई सम्पत्ति उनसे वापस लेने तथा हस्तांतरण को रद्द करने का अधिकार है। सम्पत्ति पर पहला अधिकार माता-पिता का ही होता है।’’
इसी प्रकार 7 दिसम्बर, 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अपील कत्र्ता की शिकायत पर उसके पुत्र को आदेश दिया कि,‘‘चूंकि वह अपने पिता का ध्यान नहीं रखता और न ही उसने अपनी मां की मौत पर अंतिम संस्कार किया था, अत: वह पिता द्वारा उसे दी गई सारी चल-अचल सम्पत्ति वापस करे।’’ और अब 2 जनवरी, 2025 को सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस ‘सी.टी. रवि कुमार’ और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने ‘वरिष्ठ नागरिक संरक्षण कानून’ के अंतर्गत आदेश देते हुए कहा है कि :
‘‘यदि संतानें अपने माता-पिता द्वारा उन्हें उपहार में दी गई सम्पत्ति प्राप्त करने के बाद उनकी देख-भाल के प्रति अपनी जिम्मेदारियां न निभाएं तो ‘माता -पिता तथा वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम-2007’ के अंतर्गत गठित ट्रिब्यूनल को वह सम्पत्ति उनसे वापस लेकर ऐसी संतानों के माता-पिता को सौंपने तथा संतान को उससे बेदखल करने का अधिकार है। इससे भिन्न निर्णय लेने से कानून का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा।’’ न्यायाधीशों ने उक्त फैसला एक पीड़ित महिला ‘उर्मिला दीक्षित’ द्वारा अपने बेटे ‘सुनील शरण’ तथा अन्य को दी गई सम्पत्ति का हस्तांतरण रद्द करते हुए और उन्हें उनकी सम्पत्ति 28 फरवरी, 2025 तक वापस दिलाने का आदेश देते हुए सुनाया। ‘उर्मिला दीक्षित’ ने दावा किया था कि उसकी संतान ने जीवन के अंत तक उनकी देखभाल करने का वचन नहीं निभाया। उक्त फैसले आज की संतानों के लिए एक संदेश हैं कि यदि वे अपने माता-पिता की सम्पत्ति लेकर उनकी देखभाल नहीं करेंगी तो उन्हें भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
इसीलिए हम अपने लेखों में बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत अपने बच्चों के नाम तो अवश्य कर दें परंतु उनके नाम पर ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं परंतु अधिकांश माता-पिता यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें जिंदगी भर भुगतना पड़ता है। संतानों द्वारा अपने बुजुर्गों की उपेक्षा को रोकने व उनके ‘जीवन की संध्या’ को सुखमय बनाना सुनिश्चित करने के लिए सर्वप्रथम हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था। बाद में केंद्र सरकार व कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी इसी तरह के कानून बनाए हैं परंतु बुजुर्गों को उनकी जानकारी न होने के कारण इनका लाभ उन्हें नहीं मिल रहा। अत: इन कानूनों के बारे में बुजुर्गों को जानकारी प्रदान करने के लिए इनका समुचित प्रचार करने की आवश्यकता है।—विजय कुमार