Edited By ,Updated: 07 Oct, 2024 05:10 AM
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आज सारी दुनिया एक ‘ग्लोबल विलेज’ का रूप धारण कर गई है और व्यापार, शिक्षा, नौकरी आदि के लिए बड़ी संख्या में लोग एक देश से दूसरे देश में जा रहे हैं।
आज सारी दुनिया एक ‘ग्लोबल विलेज’ का रूप धारण कर गई है और व्यापार, शिक्षा, नौकरी आदि के लिए बड़ी संख्या में लोग एक देश से दूसरे देश में जा रहे हैं। भारतीय भी विश्व भर में फैल गए हैं जिनमें शिक्षा प्राप्ति के लिए दूसरे देशों में गए हुए युवा भी शामिल हैं। इनमें युद्ध ग्रस्त यूक्रेन, रूस, ईरान, लेबनान और इसराईल आदि देश भी शामिल हैं।
यूक्रेन में मैडीकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भारत ले आया गया है जबकि ईरान, लेबनान और इसराईल आदि में अभी भी बड़ी संख्या में भारतीय छात्र रुके हुए हैं जो जारी युद्ध के कारण मिसाइलों की बौछार के बीच रहने को मजबूर भयभीत छात्र अपने देश लौटने को बेचैन हैं और विदेश मंत्रालय से निकासी मार्गदर्शन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
विदेश मंत्रालय के अनुसार लेबनान में हमारे लगभग 4000, ईरान में लगभग 10,000 और इसराईल में 6,000 छात्र फंसे हुए हैं जबकि अन्य लोगों की संख्या इसके अलावा है। बड़ी अच्छी बात है कि विदेशों में हमारे युवा पढऩे के लिए और अन्य लोग कमाई करने के लिए जा रहे हैं।
परंतु जिस तरह की टकरावपूर्ण स्थिति से आज उपरोक्त देशों के अलावा विश्व के अन्य अनेक देश गुजर रहे हैं, ऐसे में क्या समय नहीं आ गया है कि हमारे देश के कर्ताधर्ता एक ऐसी नीति बनाने पर गंभीरतापूर्वक विचार करें कि इस तरह के हालात में विदेशों में फंसे भारतीयों को वहां से किस प्रकार समय रहते सुरक्षित निकालना है। रूस का उदाहरण हमारे सामने है, जहां धोखे से रूसी सेना में यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध लडऩे के लिए भर्ती किए गए अनेक युवा मारे जा चुके हैं।