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महिला पंचों के स्थान पर शपथ ले रहे उनके पति!

Edited By ,Updated: 10 Mar, 2025 08:22 AM

instead of women panchas their husbands are taking oath

हाल ही में छत्तीसगढ़ के ‘परसवाड़ा’ गांव से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया। इस गांव का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें गांव की पंच चुनी गईं 6 महिलाओं के स्थान पर उनके पति पंचायत सदस्य के रूप में शपथ लेते हुए दिखाई दे रहे हैं।

हाल ही में छत्तीसगढ़ के ‘परसवाड़ा’ गांव से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया। इस गांव का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें गांव की पंच चुनी गईं 6 महिलाओं के स्थान पर उनके पति पंचायत सदस्य के रूप में शपथ लेते हुए दिखाई दे रहे हैं। सरपंच निर्वाचित ‘रत्न लाल चंद्रवंशी’ के अनुसार पंच निर्वाचित 6 महिलाओं में से 4 किसी के अंतिम संस्कार में गई हुई थीं जबकि 2 अन्य महिलाएं 100 से अधिक पुरुषों की उपस्थिति की वजह से शपथ ग्रहण कार्यक्रम में हिस्सा लेने में शर्म महसूस करने के मारे नहीं आईं। उसने इन महिलाओं के लिए बाद में अलग से शपथ ग्रहण कार्यक्रम रखने की बात भी कही। सरपंच रत्न लाल चंद्रवंशी ने इस बात पर जोर दिया कि पुरुष अपनी पत्नियों की जीत का जश्न मनाने और सर्टीफिकेट लेने के लिए मौजूद थे। सचिव प्रवीण सिंह ठाकुर ने भी यह दावा किया परंतु जिला प्रशासन इस बात को नहीं मान रहा है और इसने सचिव प्रवीण को 5 मार्च को सस्पैंड कर दिया। छत्तीसगढ़ में 50 प्रतिशत आरक्षण के कारण वहां पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों को चुनाव में उतारना आम बात है।

उल्लेखनीय है कि 1700 की जनसंख्या वाले इस गांव के 12 वार्डों में से 6 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। 3 मार्च को नवनियुक्त सरपंच रत्न लाल चंद्रवंशी तथा 12 पंचों को पहली पंचायत की बैठक में आमंत्रित किया गया था, जहां उन्हें रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद औपचारिक रूप से काम शुरू करना था। शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए न आने वाली महिला पंचों में से एक ने संवाददाता द्वारा बात करने पर दिलचस्प जवाब दिए। 8वीं कक्षा तक पढ़ी ‘सरिता साहू’ ने अपने घर के पर्दे के पीछे खड़ी होकर कहा कि वह अब से पंचायत की बैठकों में भाग लेगी।

इसी प्रकार विद्याबाई यादव ने कहा कि वह उस दिन बीमार थी और 10वीं कक्षा तक पढ़े उसके पति चंद्रकुमार ने कहा ‘‘वह पढ़ नहीं सकती। मैं उसे प्रस्ताव समझाऊंगा और उसकी सहमति लूंगा।’’ एक अन्य महिला पंच ‘नीरा चंद्रवंशी’ के पति शोभा राम ने कहा कि नीरा अपने एक रिश्तेदार के अंतिम संस्कार में गई थी। जब शोभा राम ने यह बात कही तो नीरा ने सिर हिलाकर उसकी हां में हां मिलाई। एक अन्य पंच गायत्री चंद्रवंशी के अनुसार उसके पति ने उसे चुनाव लडऩे के लिए कहा था। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि मतदान का अधिकार और चुने जाने का अधिकार दो अलग-अलग चीजें हैं। महिलाओं को मतदान तथा चुनाव लडऩे का अधिकार 1945 और 1947 में संविधान सभा, जिसमें 30 महिलाएं थीं, के फैसले के बाद पुरुषों के साथ ही मिल गया था। 

भारत के अलावा न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने 1893 में महिलाओं को मताधिकार दिया, इसके बाद फिनलैंड और हवाई के कुछ हिस्सों में महिलाओं को मताधिकार मिला। इंगलैंड सभी महिलाओं को 1945 तक मताधिकार नहीं दे पाया था तथा वहां की महिलाओं को 30-35 वर्ष की आयु के बाद ही यह अधिकार मिल पाया था। सभी महिलाओं को यह अधिकार 1950 में दिया गया। अमरीका मेें महिलाओं को मतदान तथा चुनावों में खड़े होने का अधिकार और भी देर से 1965 में दिया गया। महिलाओं को मताधिकार देने वाले अन्य देशों में स्वीडन ने आठवें दशक में तथा सऊदी अरब आदि देशों ने तो 2011 में महिलाओं को मताधिकार दिया है। कहने का मतलब यह कि शायद हमें यह अधिकार 1947 में आसानी से मिल गया तभी हम अभी तक उसका प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे। कई लोगों का कहना है कि यदि निर्वाचित होने वाली 6 महिलाओं में से 2 भी काम करती हैं तो उनसे दूसरी महिलाओं को प्रेरणा मिलेगी परंतु हमारी वह स्टेज अब निकल चुकी है। 

हम यह बात 1947 में कह सकते थेे, पांचवें और छठे दशक में भी कह सकते थे, अब इतने वर्ष बाद यदि चुने जाने का अधिकार हमारे पास है और हम चुनाव में खड़े होकर उस अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाए। इसके लिए स्वयं महिलाओं को अपने अधिकारों के इस्तेमाल के लिए खड़ी होना होगा। इसे देखना पुरुषों का कत्र्तव्य तो है ही क्योंकि वे अपनी पत्नियों के नाम पर अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं परंतु यदि महिलाएं इसके विरुद्ध खड़ी न हुईं तो फिर यह अधिकार व्यर्थ चला जाएगा। एक ओर तो हम संसद तथा विधानसभाओं के चुनावों में महिलाओं के आरक्षण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं परंतु यदि इन संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी इस स्तर की होगी तो फिर इसका क्या लाभ? अभी एक दिन पहले ही हमने ‘महिला दिवस’ मनाया है परंतु क्या हम वास्तव में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए तैयार हैं? क्या हम उन्हें शिक्षा तथा फैसला लेने की शक्ति देने को तैयार हैं? क्या समय आ गया जब हम चुनाव लडऩे के लिए शिक्षा का मापदंड भी रखें? 

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