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भारत की जनगणना में देरी से  प्रभावित हो रहीं अनेक योजनाएं

Edited By ,Updated: 17 Feb, 2025 05:17 AM

many schemes are being affected due to delay in india s census

भारत की जनगणना हर 10 वर्ष के बाद होती है। जनगणना भारत की जनसंख्या की गतिशीलता और प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। यह भारत की जनसंख्या की विविधता तथा कई चीजों को जानने में मदद करती है।

भारत की जनगणना हर 10 वर्ष के बाद होती है। जनगणना भारत की जनसंख्या की गतिशीलता और प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। यह भारत की जनसंख्या की विविधता तथा कई चीजों को जानने में मदद करती है। इसमें देश में शिक्षा के स्तर, पुरुषों तथा महिलाओं के अनुपात, आर्थिक स्थिति और रोजगार आदि की स्थिति के बारे में बुनियादी आंकड़े प्रदान करना शामिल है। जनगणना के आंकड़ों से ही पता चलता है कि देश में कितने अमीर और गरीब या कितने मध्यवर्ग के लोग हैं। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के रजिस्ट्रार जनरल तथा जनगणना आयुक्त पर जनगणना करवाने की जिम्मेदारी है। इसमें सामाजिक, आॢथक तथा जाति जनगणना (एस.ई.सी.सी.) भी शामिल है। एस.ई.सी.सी. का उपयोग राज्यों की सहायता करने के उद्देश्य से लाभार्थियों की पहचान करने के लिए किया जाता है। 

भारत में 1872 में हुई पहली जनगणना के बाद से अब तक 15 बार जनगणना करवाई जा चुकी है। अंतिम जनगणना 2011 में हुई थी तथा अगली जनगणना निर्धारित नियमों के अनुसार 2021 में करवाई जानी थी परंतु इसी बीच कोविड19 महामारी ने विश्व को अपनी चपेट में ले लिया जिसके कारण भारत सहित अनेक देशों में जनगणना सहित अनेक गतिविधियों को स्थगित कर देना पड़ा। हालांकि सरकार ने अपने स्पष्टकरण में कोविड-19 महामारी को जनगणना में देरी का कारण बताया। 2020 तक 233 देशों में से 143 देशों ने जनगणना करवा ली है।
उल्लेखनीय है कि देश में कोविड के बाद आम चुनावों के अलावा कई अन्य चुनाव हो चुके हैं परंतु भारत में जनगणना नहीं हुई। यमन, सीरिया, अफगानिस्तान, म्यांमार, यूक्रेन, श्रीलंका और उप-सहारा अफ्रीका के देशों के साथ भारत भी उन 44 देशों में से एक है, जिन्होंने इस दशक में जनगणना नहीं करवाई थी। 

सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी नीतियां जनसंख्या के नवीनतम आंकड़ों के आधार पर तय की जाती हैं, परंतु नवीनतम आंकड़े न होने के कारण इसमें देरी हो रही है। हमारे पास देश की जनगणना संबंधी डाटा वर्ष 2011 का है जिसने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है।128वां संवैधानिक संशोधन विधेयक 2023 या नारी शक्ति वंदन अधिनियम नवीनतम जनगणना को ध्यान में रखते हुए 2026 के परिसीमन के बाद ही इसे लागू किया जाएगा। इससे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण मिल सकेगा। इसी कारण संसद एवं विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्सीमांकन भी रुका पड़ा है। यह परिसीमन आयोग अधिनियम-2002 के अंतर्गत 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया है जबकि अब 2025 चल रहा है और चुनाव नवीनतम परिसीमन के बिना ही हो रहे हैं। 

हालांकि परिसीमन की बात आते ही इस बात का खतरा बढ़ जाता है कि जिस प्रकार यू.पी., बिहार और मध्य प्रदेश में जनसंख्या बढ़ रही है उससे इन राज्यों की सीटें लोकसभा में बढ़ जाएंगी (यू.पी. की 80 से बढ़कर 91, बिहार की सीटें 40 से बढ़कर 50 और मध्य प्रदेश की 29 से बढ़कर 33 सीटें) और दक्षिण राज्यों की सीटें घट जाएंगी (तमिलनाडु की 39 से घटकर 31, आंध्र और तेलंगाना की 42 से घट कर 34, केरल की 20 से घटकर 12 और कर्नाटक की 28 से घटकर 26) क्योंकि दक्षिण राज्यों की जनसंख्या उत्तरी राज्यों के अनुपात से नहीं बढ़ रही। ऐसा होने से देश का संघीय ढांचा प्रभावित होगा। यदि परिसीमन न भी हो तो भी जानना जरूरी है कि कौन से राज्य की जनसंख्या बढ़ रही है और किस राज्य की जनसंख्या घट रही है। विकास की योजनाएं बनाने और इन्हें आम लोगों तक पहुंचाने के लिए तय समय पर जनगणना का होना अत्यंत जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर करोड़ों लोग कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। 

उदाहरण के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर वर्ष 2013 में 80 करोड़ लोग मुफ्त में राशन लेने के योग्य थे, जबकि जनसंख्या में अनुमानित वृद्धि के साथ 2020 में यह आंकड़ा 92.2 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान था जो अब तक और भी बढ़ गया होगा। यदि कोई नीति बनानी है तो हम 2011 के डाटा के हिसाब से नहीं बना सकते। परंतु आज भी यह माना जाता है कि चीन से भिन्न हमारे आंकड़े और संख्याएं बिल्कुल सही हैं। साथ ही यदि हमने अब जाति आधारित सर्वे करवाना है तो उसके लिए अभी से तैयारी करनी होगी।

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