Edited By ,Updated: 17 Jun, 2024 05:15 AM
इन दिनों जहां एक ओर देश के अधिकांश हिस्सों में भारी गर्मी पड़ रही है, वहीं राजधानी दिल्ली के अलावा पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक,महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलगांना, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा आदि...
इन दिनों जहां एक ओर देश के अधिकांश हिस्सों में भारी गर्मी पड़ रही है, वहीं राजधानी दिल्ली के अलावा पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक,महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलगांना, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा आदि राज्य पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं। दिल्ली सरकार द्वारा पड़ोसी राज्यों से पानी की गुहार लगाई जा रही है वहीं स्वयं पानी की कमी से जूझ रहे हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा है कि हिमाचल की जरूरत को पूरा करने के बाद राज्य सरकार, चाहे दिल्ली हो या कोई अन्य राज्य, सभी को पानी देने के लिए तैयार है। पानी की कमी का एक बड़ा कारण जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि भी है। शहरीकरण के बढ़ते दबाव के कारण घरों में पानी की खपत बढ़ गई है। कृषि व उद्योगों में भी भूजल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है।
भारत में जल संकट के कारण आपस में जुड़े हुए हैं और मिल कर देश में पानी की कमी को बढ़ावा दे रहे हैं। पानी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ कृषि में इस्तेमाल हो जाता है। कुएं व बोरवैल सूखते जा रहे हैं। औद्योगिक कचरा, तरह-तरह के कैमिकल, सीवेज, घरेलू अपशिष्ट, जल स्रोतों में अथवा उनके आसपास डम्प किए जाने से न केवल पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है बल्कि वहां से मिलने वाला पानी भी घट रहा है। इसके लिए जहां रसोई घर और बाथरूम के पानी का फिर से इस्तेमाल करने और वाटर रीसाइकिं्लग के लिए ट्रीटमैंट प्लांटों का निर्माण करना जरूरी है वहीं वृक्षारोपण और वन संरक्षण के अलावा वाटर हार्वैसिं्टग भी बहुत जरूरी है।
पानी के भंडारण और वाटर हार्वेस्टिंग में ब्राजील दुनिया में सबसे आगे है। इसके बाद सिंगापुर, चीन, जर्मनी और आस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों का स्थान है, जहां घरों से लेकर जलाशयों तक वर्षा के पानी का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है।
जापान या जर्मनी आदि देशों में अनिवार्य रूप से प्रत्येक घर के बाहर पानी की हार्वेस्टिंग करने का नियम लागू है जबकि इसके विपरीत हमारे देश में कहीं भी घरों में पानी की हार्वेस्टिंग की व्यवस्था नहीं है। किसी भी घर में वर्षा के पानी के संग्रहण के लिए मकान का कुछ हिस्सा खुला नहीं छोड़ा गया है जो पानी धरती के नीचे जाकर पानी का स्तर ऊंचा उठाने में सहायता करे। अत: पानी की हार्वेस्टिंग नीति बनानी होगी। जल संकट का सबसे बड़ा कारण तो देश में नदी जल बंटवारे की सही नीति का न होना है जिसमें संशोधन करने की आवश्यकता है। हरियाणा और पंजाब में भूजल स्तर मुख्यत: धान की खेती के कारण ङ्क्षचताजनक हद तक गिरता जा रहा है। अत: इन राज्यों में धान की फसल की बुवाई के रुझान को बदलना होगा। पंजाब और हरियाणा भौगोलिक दृष्टि से धान की खेती के लिए उपयुक्त राज्य नहीं हैं।
धान की खेती की शुरुआत 60 के दशक में कर तो दी गई परंतु बुनियादी तौर पर जो समुद्र से लगते सीमावर्ती क्षेत्र हैं वहां तो धान की खेती करना बनता है परंतु पंजाब और हरियाणा में तो पानी ही नहीं होने के कारण यहां धान की खेती करने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता। अत: इन दोनों ही राज्यों के किसानों को धान की बजाय अन्य कम पानी पीने वाली फसलों की खेती करने के विकल्पों को चुनना चाहिए। पंजाब में अधिक उद्योगों को आकॢषत करने की आवश्यकता है ताकि किसानों की कृषि पर निर्भरता कम होने से पानी के संकट को कम करने में कुछ सहायता मिल सके। ऐसा न करने पर वह दिन दूर नहीं जब लोगों को पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसने की नौबत आ जाएगी।