‘पंजाब में नगर निगम चुनाव सम्पन्न’‘सिर से एक बोझ उतरा’ ‘अब कंधों पर नई जिम्मेदारी’

Edited By ,Updated: 24 Dec, 2024 05:19 AM

municipal elections completed in punjab

पिछले काफी समय से पंजाब में लटकते आ रहे 5 नगर निगमों आदि के चुनावों को लेकर शोर मच रहा था जिसे देखते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 19 अक्तूबर, 2024 को पंजाब सरकार को इनका चुनाव कार्यक्रम अधिसूचित करके चुनावों की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश...

पिछले काफी समय से पंजाब में लटकते आ रहे 5 नगर निगमों आदि के चुनावों को लेकर शोर मच रहा था जिसे देखते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 19 अक्तूबर, 2024 को पंजाब सरकार को इनका चुनाव कार्यक्रम अधिसूचित करके चुनावों की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। इसके बाद सुप्रीमकोर्ट ने भी 12 नवम्बर को उक्त आदेश को बरकरार रखते हुए इस संबंध में दायर याचिकाओं के आधार पर राज्य चुनाव आयोग को 15 दिनों के भीतर इनका चुनाव कार्यक्रम घोषित करने के निर्देश दिए थे। इसी के अनुरूप 21 दिसम्बर को फगवाड़ा, लुधियाना, पटियाला, अमृतसर और जालंधर नगर निगमों के चुनावों के लिए मतदान करवाया गया। इन चुनावों में भाग लेने वाले मुख्य दलों में पंजाब में सत्तारूढ़ ‘आम आदमी पार्टी’ के अलावा भाजपा, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और बसपा के अतिरिक्त चंद निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में उतरे। 

हालांकि अपने काम-धंधों में व्यस्त होने के कारण आम लोगों ने इन चुनावों में अधिक दिलचस्पी नहीं ली, परंतु चुनाव सम्पन्न हुए और उसी दिन शाम को परिणाम आने शुरू हो गए जो देर रात तक आते रहे। इस दौरान सभी पाॢटयों के उम्मीदवारों का आंकड़ा घटता-बढ़ता रहा और परिणाम जानने को आतुर लोगों के दिलों में हलचल मची रही। संसद और विधानसभाओं के चुनावों की भांति ही इन चुनावों के दौरान भी टिकट प्राप्त करने के चाहवानों ने दलबदली की। यहां तक कि कई टिकट के चाहवानों ने तो तीन-तीन बार दलबदली कर डाली। इनमें से किसी को टिकट मिल गया तो किसी के हाथ निराशा ही लगी और कई दलबदलुओं को टिकट मिल जाने के बावजूद हार का मुंह देखना पड़ा। जो चुनाव जीत गए, उनके सिर से तो एक बड़ा बोझ उतर गया परंतु जो नहीं जीत पाए वे शायद पछता भी रहे होंगे कि ‘न खुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधर के रहे, न उधर के रहे’।

हालांकि इन चुनावों के लिए चुनाव आयोग द्वारा अधिकतम खर्च की सीमा 4 लाख रुपए निर्धारित थी परंतु चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों ने इन पर अपने उचित-अनुचित तरीकों से कमाए हुए धन में से 20 से 25 लाख से ऊपर तक रुपए खर्च किए जो आम मतदाताओं के पास शराब तथा अन्य नशों, नकद रकम तथा अन्य उपहारों आदि के रूप में पहुंचे। लोकतंत्र का एक रूप यह भी है कि अमरीका सहित विश्व के अनेक देशों में राजनीतिक दलों के समर्थक भी उनकी सहायता तथा उनकी चुनावी रैलियों पर खर्च करते हैं और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। लोकतंत्र इस खामी के बावजूद तानाशाही से कहीं बेहतर है क्योंकि इसमें व्यक्ति बिना किसी भय के किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति विशेष के विरुद्ध या पक्ष में बोल सकता है। अब विकास का असली काम शुरू होगा जो अभी तक रुका पड़ा था। इसमें सड़कों, पार्कों, सीवरेज, स्ट्रीट लाइट, सफाई, नालियों-गलियों की मुरम्मत और सुधार, कूड़े की लिङ्क्षफ्टग और डमिं्पग आदि शामिल हैं। इसके साथ ही लोग चुने हुए पार्षदों के पास जाकर अपने मोहल्ले और शहर के रुके हुए छोटे-बड़े काम करवाएंगे और उनका साथ देंगे। 

इस सारी कवायद में वास्तविक लाभ तो सांसदों और विधायकों को हुआ है। अब तक सांसद अपने इलाके के लोगों के काम करवाने के लिए उस क्षेत्र के विधायक को कहते थे और विधायक आगे उनका काम करवाते थे। अब वे सीधे सम्बन्धित पार्षद अथवा नगर निगमों के मेयरों को कह कर जनता की मुश्किलें हल करवाएंगे। चूंकि पार्षद अपने इलाके के लोगों के बीच रहते हैं, इसलिए उनसे मिलना और अपना काम करवाना सांसदों और विधायकों की तुलना में आसान होता है।—विजय कुमार 

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