Edited By ,Updated: 30 May, 2024 05:23 AM
जब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने देखा कि भारत के विरुद्ध सारे हथकंडे आजमा कर भी पाकिस्तान कुछ हासिल नहीं कर सका तो उन्होंने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाहौर बुलाकर दोनों ने आपसी...
जब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने देखा कि भारत के विरुद्ध सारे हथकंडे आजमा कर भी पाकिस्तान कुछ हासिल नहीं कर सका तो उन्होंने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाहौर बुलाकर दोनों ने आपसी मैत्री व शांति के लिए 21 फरवरी, 1999 को ‘लाहौर घोषणा पत्र’ पर हस्ताक्षर किए थे।
उल्लेखनीय है कि इस समझौते ने दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक बड़ी सफलता का संकेत दिया था और तब आशा बंधी थी कि अब इस क्षेत्र में शांति का नया अध्याय शुरू होगा, परंतु तत्कालीन पाक सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने न तो श्री वाजपेयी को सलामी दी और न ही शरीफ द्वारा श्री वाजपेयी के सम्मान में दिए भोज में शामिल हुआ।
यही नहीं, कुछ ही महीने बाद मई, 1999 में कारगिल पर हमला करके 527 भारतीय सैनिकों को शहीद करवाने व पाकिस्तान के 700 सैनिकों को मरवाने के पीछे भी परवेज मुशर्रफ का ही हाथ था। कारगिल युद्ध का विरोध करने तथा भारत के साथ बेहतर संबंधों का पक्ष लेने के कारण नवाज शरीफ को परवेज मुशर्रफ ने 1999 में सत्ताच्युत करके देश निकाला दे दिया था। उसके बाद से कई उतार-चढ़ावों से गुजर चुके नवाज शरीफ इन दिनों एक बार फिर पाकिस्तान की राजनीति के केंद्र में हैं। इसी सिलसिले में 9 दिसम्बर, 2023 को उन्होंने कहा था कि ‘‘जब मैंने कारगिल योजना का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए तो मुझे (परवेज मुशर्रफ ने) सरकार से बाहर कर दिया था।’’ फिर पाकिस्तान में संसद के लिए चुनाव प्रचार के दौरान 19 दिसम्बर, 2023 को उन्होंने भारत की प्रशंसा करते हुए कहा,‘‘आसपास के देश चांद पर पहुंच गए हैं और पाकिस्तान अभी तक धरती से ही उठ नहीं पाया है। हमारे देश की समस्याओं के लिए न तो भारत जिम्मेदार है और न अमरीका। हमने अपने पैरों पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मारी है।’’
हालांकि इस वर्ष पाकिस्तान में चुनावों में नवाज शरीफ के ही एक बार फिर प्रधानमंत्री चुने जाने की आशा थी परंतु सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल दलों में उनके नाम पर सहमति न हो पाने के कारण उनके छोटे भाई शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री चुना गया है। इसके बावजूद पाकिस्तान की राजनीति में नवाज शरीफ की महत्ता कम नहीं हुई है। यह इसी से स्पष्ट है कि 6 वर्ष बाद दोबारा उन्हें अपनी पार्टी ‘पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन)’ का निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया है। इस अवसर पर 28 मई को पार्टी की बैठक में बोलते हुए नवाज शरीफ ने स्वीकार किया कि ‘‘इस्लामाबाद ने 1999 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मेरे बीच हस्ताक्षरित समझौते का उल्लंघन किया है।’’
उन्होंने तत्कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ को कारगिल पर किए गए हमले के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए एक बार फिर दोहराया कि ‘‘28 मई, 1998 को पाकिस्तान ने 5 परमाणु परीक्षण किए। उसके बाद वाजपेयी साहिब यहां आए और हमारे साथ एक समझौता किया लेकिन हमने उस समझौते का उल्लंघन किया यह हमारी गलती थी।’’ नवाज शरीफ के उक्त बयानों से स्पष्ट है कि समस्याओं से घिरे पाकिस्तान में अभी ऐसे नेता (नवाज शरीफ) मौजूद हैं जो देश को वर्तमान संकट से निकाल कर खुशहाल बनाना चाहते हैं। परंतु इसके साथ ही हमारा यह भी मानना है कि जो बातें नवाज शरीफ अपने बयानों में कहते आ रहे हैं वे बातें उन्हें अपने देश के सत्ताधारियों, जिनके मुखिया उनके छोटे भाई शहबाज शरीफ हैं, को भी समझानी चाहिएं, तभी इस तरह की बातों का कोई लाभ होगा।
नवाज शरीफ ने जिस भूल को स्वीकार किया है, अब उसे सुधारने का समय आ गया है क्योंकि अच्छा काम शुरू करने के लिए कोई भी समय ‘बुरा’ नहीं होता। हालांकि यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि एक ओर तो नवाज शरीफ भारत के साथ संबंध बेहतर बनाने की बातें कर रहे हैं परंतु दूसरी ओर शहबाज शरीफ ने अपने तेवर पूरी तरह नरम नहीं किए हैं, अत: उन्हें भी इस मामले में पहल करने की जरूरत है।—विजय कुमार