Edited By ,Updated: 24 Mar, 2025 05:24 AM

जैसे इंगलैंड, जापान, भूटान, स्वीडन, नार्वे आदि आज भी दुनिया में ऐसे 17 देश हैं जहां संवैधानिक राजतंत्र है। जहां राजा तो होता है परंतु राजनीतिक शक्तियां निर्वाचित सरकार के हाथों में हैं जबकि संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, वैटिकन सिटी, ओमान, बु्रनेई और...
जैसे इंगलैंड, जापान, भूटान, स्वीडन, नार्वे आदि आज भी दुनिया में ऐसे 17 देश हैं जहां संवैधानिक राजतंत्र है। जहां राजा तो होता है परंतु राजनीतिक शक्तियां निर्वाचित सरकार के हाथों में हैं जबकि संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, वैटिकन सिटी, ओमान, बु्रनेई और किंगडम ऑफ एस्वातीनी जैसे 6 देश हैं जहां पूर्ण राजतंत्र है। शायद ऐसा एक ही देश नेपाल है जहां लोग लोकतंत्र आने के बाद उसे हटा कर फिर से राजतंत्र चाहते हैं।
5 मार्च, 2025 को राजशाही के समर्थकों द्वारा जहां संसद में प्रदर्शन मुख्यत: प्रधानमंत्री ‘के.पी. शर्मा ओली’ और उनकी सरकार के तानाशाहीपूर्ण एवं दमनकारी रवैये पर केंद्रित रहा, वहीं काठमांडू में राजशाही की वापसी की मांग पर बल देने के लिए विशाल मोटरसाइकिल रैली निकाली गई। इसमें भाग लेने वाले प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे ‘नारायणहिती खाली गारा हमरा राजा अऊदै छान’ (शाही महल ‘नारायणहिती’ खाली करो, हम अपने राजा को वापस ला रहे हैं)। नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ‘ओली’ ने इन प्रदर्शनों के पीछे ‘बाहरी शक्तियों’ की ओर इशारा किया है। देखने की बात है नेपाल में राजशाही की समाप्ति की मांग के बीच 1 जून, 2001 को भीषण गोलीबारी हुई थी जिसमें शाही परिवार के एक सदस्य ‘पिं्रस दीपेंद्र’, जो भविष्य में नेपाल के राजा बनने वाले थे, ने महाराजा ‘वीरेंद्र’ और ‘महारानी ऐश्वर्य’ सहित शाही परिवार के 9 सदस्यों की गोली मार कर हत्या करने के बाद स्वयं को भी गोली मार ली थी।
2006 में नेपाल ने सदियों पुरानी संवैधानिक राजशाही को समाप्त कर दिया जिसके बाद ‘राजा ज्ञानेंद्र’ ने सत्ता पर कब्जा करके और आपातकाल लगाकर सभी नेताओं को नजरबंद कर दिया था। 2008 में राजशाही की समाप्ति के साथ ही भंग संसद को बहाल कर दिया। ‘शाह राजवंश’ के हाथ से सत्ता जाती रही और देश की राजनीति की मुख्यधारा में माओवादी शामिल हो गए। मई, 2008 में नेपाल के वामपंथी दलों को चुनाव में मिली जीत के बाद तत्कालीन ‘नरेश ज्ञानेंद्र’ को अपदस्थ करके राष्ट्रपति को राज्य के प्रमुख के रूप में आसीन कर देश को गणतंत्र घोषित कर दिया गया। तब से अब तक अधिकांशत: चीन समर्थक शासकों के प्रभावाधीन शासन चला रहे राजनेताओं के भ्रष्टï आचरण के कारण नेपाल की जनता पीड़ित है। चीन का हस्तक्षेप बढ़ा है और वह नेपाल में अपनी मनमानी चलाना चाहता है। चीन की ही कूटनीति के कारण नेपाल में हमेशा सरकारें बदलती रहती हैं। चीन समर्थक सरकारों ने हवाई अड्डïे और राजमार्ग चीन को बेच दिए हैं।
नेपाल की अर्थव्यवस्था कमजोर पडऩे के कारण चीन हमेशा इसका लाभ उठाने और भारत से नेपाल के रिश्ते बिगाडऩे की कोशिश करता आया है। यही कारण है कि चीन समर्थक शासकों और चीन की चालों से दुखी नेपाल की जनता का एक वर्ग चीन को अपने देश से निकाल बाहर करना चाहता है। इसी सिलसिले में गत वर्ष 10 अप्रैल को देश में नेपाल नरेश के हजारों समर्थकों ने दक्षिणपंथी समर्थक ‘राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी’ (आर.पी.पी.) के हजारों कार्यकत्र्ताओं और राजशाही के समर्थकों के साथ मिल कर ‘राजशाही वापस लाओ और गणतंत्र को खत्म करो’ के नारे लगाते हुए राजधानी काठमांडू में प्रदर्शन किया। इसका नेतृत्व आर.पी.पी. के अध्यक्ष और पूर्व उप-प्रधानमंत्री ‘राजेंद्र लिंगदेन’ कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि नेपाल को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए देश का संविधान बदलने की जरूरत है। इसी से देश को बचाया जा सकता है वर्ना इसकी और भी दुर्गति हो जाएगी।
अब एक बार फिर नेपाल में राजशाही की बहाली के लिए ‘राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी’ (आर.पी.पी.) तथा ‘देश संस्कृति और धर्म बचाओ अभियान’ के संयुक्त नेतृत्व में अनेक रैलियां व प्रदर्शन किए जा रहे हैं। हालांकि नेपाल में राजशाही की वापसी की कोई संभावना तो नहीं है परंतु हाल ही में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के पोखरा से काठमांडू पहुंचने पर उनके स्वागत में उमड़ी हजारों लोगों की भीड़ वर्तमान सरकार से आम जनता की निराशा की अभिव्यक्ति मानी जा रही है। जैसे लोग कह रहे हों कि ‘सिंहासन खाली करो, कि राजा आते हैं।’