Edited By ,Updated: 13 Sep, 2024 05:25 AM
लोगों को सस्ती और उच्च स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु सरकारें इसमें विफल हो रही हैं।
लोगों को सस्ती और उच्च स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल और लगातार बिजली उपलब्ध करवाना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु सरकारें इसमें विफल हो रही हैं। इसी कारण लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने से संकोच करते हैं। सरकारी अस्पतालों के चिकित्सा स्टाफ में किस कदर लापरवाही व्याप्त है, इसका अनुमान हाल ही के निम्न उदाहरणों से लगाया जा सकता है :
- 16 मई को केरल में कोझिकोड स्थित सरकारी अस्पताल में डाक्टरों ने एक 4 वर्षीय बच्ची की छठी उंगली हटाने के लिए आप्रेशन करने की बजाय उसकी जीभ का आप्रेशन कर दिया।
- 19 मई को उक्त अस्पताल में ही सड़क दुर्घटना में घायल एक मरीज के टूटे हुए हाथ के आप्रेशन के दौरान दूसरे मरीज के हाथ के आप्रेशन में इस्तेमाल की जाने वाली गलत रॉड इम्प्लांट कर दी गई।
- 25 जून को महाराष्ट्र में ठाणे के ‘शाहपुर’ स्थित सरकारी उप जिला अस्पताल में डाक्टरों ने एक बच्चे के चोटिल पैर का आप्रेशन करने की बजाय उसके प्राइवेट पार्ट का ही आप्रेशन कर दिया।
- 24 अगस्त को मध्य प्रदेश में मंदसौर के सरकारी अस्पताल के डाक्टरों द्वारा एक महिला के नसबंदी आप्रेशन के बाद कैंची उसके पेट में ही छोड़ देने का मामला सामने आया। इस कारण वह काफी समय पेट दर्द से परेशान रही।
- 11 सितम्बर को महाराष्टï्र के लातूर जिले में ‘औसा’ स्थित सरकारी अस्पताल में प्रसव के लिए दाखिल एक महिला के आप्रेशन के दौरान डाक्टरों ने ब्लड साफ करने वाला कपड़ा उसके पेट में ही छोड़ दिया।आप्रेशन के बाद महिला के पेट में तेज दर्द रहने लगा जिसके बाद सीटी स्कैन के दौरान डाक्टरों की गंभीर लापरवाही का पता चला।
करोड़ों रुपयों की लागत से निर्मित सरकारी अस्पतालों में प्रशिक्षित चिकित्सा स्टाफ की कमी और लापरवाही निश्चय ही एक ज्वलंत समस्या है जिसका परिणाम इस तरह की दुखद घटनाओं में निकल रहा है। इस समस्या का समाधान यथाशीघ्र ढूंढा जाना चाहिए, नहीं तो इसी प्रकार अस्पतालों में असुखद घटनाएं होती ही रहेंगी। -विजय कुमार