विश्व शांति के लिए नीतियां बदलने की जरूरत

Edited By ,Updated: 31 Mar, 2025 04:55 AM

policies need to be changed for world peace

जैसा कि दुनिया ने देखा कि रूस 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा था। अमरीका भर में सबसे आम भविष्यवाणी यह  थी कि रूसी सेना कुछ ही समय में यूक्रेनी रक्षकों पर भारी पड़ जाएगी। रूस के 900,000 सक्रिय-ड्यूटी कार्मिक, 2 मिलियन...

जैसा कि दुनिया ने देखा कि रूस 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा था। अमरीका भर में सबसे आम भविष्यवाणी यह  थी कि रूसी सेना कुछ ही समय में यूक्रेनी रक्षकों पर भारी पड़ जाएगी। रूस के 900,000 सक्रिय-ड्यूटी कार्मिक, 2 मिलियन रिजर्व बल, तथा 45 बिलियन डॉलर का रक्षा बजट, यूक्रेन के बजट से बहुत बड़ा था, जिसके पास आक्रमण के समय अनुमानित 196,000 सक्रिय-ड्यूटी सैनिक, 900,000 रिजर्व सैनिक तथा रक्षा व्यय रूस के व्यय का दसवां हिस्सा था। 

एक विवरण के अनुसार, तत्कालीन अमरीका के संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिली ने कांग्रेस के सदस्यों के समक्ष निजी तौर पर भविष्यवाणी की थी कि यूक्रेन 72 घंटों में घुटने टेक देगा। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व किसी यूरोपीय राष्ट्र पर पहली विजय देखेगा। मास्को के गलत आकलन के कारण रूस को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। लाखों रूसी बड़ी संख्या में मारे गए तथा रूसी अर्थव्यवस्था के कई हिस्से तबाह हो गए। यदि पुतिन को उस महत्वपूर्ण संघर्ष का सही अनुमान होता तो शायद उन्होंने हमला न किया होता। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से वियतनाम से लेकर क्यूबा,कोरिया,कोसोवो  तक,प्रमुख युद्धों की समीक्षा  दृढ़ता से सुझाव देती है कि लडऩे के लिए प्रतिद्वंद्वी की इच्छा को गलत समझना अमरीकी सैन्य और राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के उन प्रयासों की विफ लता में एक प्रमुख योगदानकत्र्ता रहा है। कोरिया में, संयुक्त राज्य अमरीका ने अक्तूबर 1950 में जनरल डगलस मैकआर्थर के यालू नदी के पास पहुंचने पर संघर्ष में शामिल होने की चीन की इच्छा का गलत अनुमान लगाया। इसके बाद लगभग तीन साल तक खूनी युद्ध चला। 

राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन के प्रशासन ने 1965 में वियतनाम में अमरीकी सैन्य प्रयासों को नाटकीय रूप से बढ़ा दिया था क्योंकि उन्हें लगा था कि संयुक्त राज्य अमरीका उत्तरी वियतनाम की ‘किसान सेना’ को हरा सकता है जबकि वे लगभग एक दशक तक फ्रांसीसी अभियान को संघर्ष करते हुए देख रहे थे।  हाल ही में, अफ गानिस्तान में अमरीका ने तालिबान की पुन: वापसी और हमले पुन: शुरू करने की क्षमता का कितना गलत आकलन किया था। अमरीका किसी भी मायने में गलत निदान का समाधान करने वाला एकमात्र देश नहीं है। दूसरे चीन-जापान युद्ध में जापान द्वारा चीनी प्रतिरोध को कम आंकने से लेकर 1980 में ईरान पर आक्रमण में सद्दाम हुसैन की गलत गणना से लेकर अफगानिस्तान में सोवियत संघ के दुर्भाग्यपूर्ण प्रयासों तक, कई देशों ने अपने विरोधी की लडऩे की इच्छाशक्ति को कम करके आंका है। 

अमरीका में दरअसल 1939 से लेकर 1945 तक विदेश संबंधी परिषद और राज्य विभाग द्वारा किए गए व्यापक अध्ययनों के परिणामस्वरूप एक नीति बनी जिसे उन्होंने ‘ग्रैंड एरिया’ योजना कहा। ‘ग्रैंड एरिया’ किसी भी ऐसे क्षेत्र को संदॢभत करता था जिसे अमरीकी अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अधीन होना था। इसे विश्व नियंत्रण के लिए रणनीतिक रूप से आवश्यक माना जाता है। परन्तु शायद अब समय बदल गया है। आज न केवल युद्ध लडऩे का तरीका बदल गया है बल्कि युद्ध में शत्रु की ताकत का सही आकलन लगाने का तरीका भी बदलना होगा।

वर्तमान और भविष्य के प्रस्तावों की गणना में त्रुटियां राष्ट्रीय पराजय का कारण बन सकती हैं। परन्तु यह विश्व को युद्धों में घेर सकती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है। ट्रम्प भी गल्फ में अपना वर्चस्व चाहते हैं। यह सब अपने हित में होता है। ट्रम्प अपने देश के लिए किसी दूसरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। शायद ऐसी गलती चीन को आंकने में अमरीका कर रहा है जब वह ताईवान या इंडो-पैसिफिक वाटर्स में चीन के वर्चस्व के बारे में बात करता है। ऐसे में नई सोच, नौकरशाही, आकलन करने के तरीके और नई नीतियों की आवश्यकता है, अगर विश्व को शांत रहना है। ऐसे में पश्चिमी देशों की अपने हितों के लिए बनी नीतियों को भी लगाम डालने की जरूरत है जैसे कि ब्रिटेन, कुवैत और खाड़ी में 1954 को हटने को तैयार नहीं था क्योंकि उसकी आॢथक स्थिरता वहां के पैट्रोल पर निर्भर थी। उसके लिए वह युद्ध लडऩे को भी तैयार था। आज ट्रम्प ग्रीन लैंड के लिए लडऩे को तैयार हैं क्योंकि इसमें उनके निजी हित हैं।

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