Edited By ,Updated: 14 Oct, 2024 05:21 AM
सजायाफ्ता प्रत्येक अपराधी के मन में एक ही सवाल उठता है कि ‘भागेंगे कैसे’ जबकि कई अपराधियों ने जेल से भागने की साजिश रची और अपनी योजना के तहत भागने में सफल हो गए जोकि पिछले 3 महीनों में सामने आई निम्न चंद खबरों से स्पष्ट है :
सजायाफ्ता प्रत्येक अपराधी के मन में एक ही सवाल उठता है कि ‘भागेंगे कैसे’ जबकि कई अपराधियों ने जेल से भागने की साजिश रची और अपनी योजना के तहत भागने में सफल हो गए जोकि पिछले 3 महीनों में सामने आई निम्न चंद खबरों से स्पष्ट है :
* 11 अक्तूबर शुक्रवार की रात में 2 कैदी जिनमें से एक हत्या के आरोप में उम्र कैद काट रहा था, उत्तराखंड के हरिद्वार जिला जेल से भागने में सफल हो गए। दोनों एक सीढ़ी के सहारे उस समय भागे जब जेल में रामलीला का मंचन हो रहा था। दिलचस्प बात यह है कि इस घटना की शाम 8 बजे तक किसी को कानों-कान खबर न हुई। घटना की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को शनिवार सुबह साढ़े 6 बजे मिली। यह घटना बेहद चौंकाने वाली है मगर हमारी जेल प्रणाली के इतिहास में ऐसा होना आम बात है।
* 11 अक्तूबर को ही सुबह तड़के ‘मोरीगांव’ (असम) जिला जेल में ‘बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम’ (पॉक्सो) के अंतर्गत 5 विचाराधीन कैदी लोहे की ग्रिल तोडऩे के बाद चादर, कम्बल और लुंगी को रस्सी के रूप में इस्तेमाल करके जेल की 20 फुट ऊंची दीवार से नीचे उतर कर फरार हो गए। असम के इतिहास में इसे सबसे बड़ा जेल ब्रेक माना जा रहा है।
* 10 अक्तूबर को बरेली (उत्तर प्रदेश) जिले की सैंट्रल जेल के फार्म हाऊस में काम करने गया उम्र कैदी हरपाल ट्रैक्टर से जुताई के दौरान अपने साथ गए सुरक्षा कर्मियों को चकमा देकर फरार हो गया।
* 1 अक्तूबर को कटिहार (बिहार) जेल में बंद विचाराधीन कैदी जेल की दीवार फांद कर फरार हो गए।
* 18 अगस्त को नामसाई (अरुणाचल प्रदेश) जेल से 4 कैदी ड्यूटी पर तैनात सिपाही पर हमला तथा वैंटीलेटर की रॉड तोड़ कर फरार हो गए।
* 23 जुलाई को नैनी सैंट्रल जेल (उत्तर प्रदेश) से सामूहिक बलात्कार का आरोपी काली चरण जेल से फरार हो गया। इनके अलावा भी न जाने ऐसी कितनी घटनाएं हुई होंगी जो प्रकाश में नहीं आईं। हालांकि ऐसी प्रत्येक घटना के बाद प्रशासन द्वारा सुरक्षा प्रबंध पहले से अधिक मजबूत करने के दावे किए जाते हैं परंतु उन तथाकथित दावों का कोई परिणाम नजर नहीं आता।
जेलों में कैदियों तक मोबाइल फोन, नशा और नकद रुपए तक पहुंच रहे हैं जिससे वे जेलों के भीतर तरह-तरह की सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं। जेलों में बैठे चंद कैदी जेलों से बाहर अपना धंधा तक चला रहे हैं और जेल के बाहर नशों की सप्लाई और हत्याएं तक करवा रहे हैं। यहां तक कि जेलों में बंद गैंगस्टरों के इंटरव्यू तक हो जाते हैं जैसा कि लारैंस बिश्रोई का। जेलों से ही नेताओं की हत्याओं के आदेश तक दिए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि हमारी जेलों की दीवारें ऊंची नहीं हैं और उनमें सुरक्षा के प्रबंधों का अभाव है। यहां तक कि पुरानी जेलें भी अधिकांश काफी अच्छी स्थिति में हैं। अत: कैदियों के फरार होने का कुछ हद तक यही कारण है कि जेलों के अधिकारी या तो अपना कत्र्तव्य निभाने में लापरवाही बरतते हैं और या उनकी अपराधी तत्वों से मिलीभगत होती है। कैदियों के भाग जाने के बाद भी उनकी कोई खोज-खबर नहीं ली जाती और उनके फोटो टी.वी. या अन्य मीडिया पर प्रसारित करने की बजाय मामला दबाने की कोशिश के तहत भागने वाले पर लकीर खींच दी जाती है।
अत: एक तो पुलिस को जेलों में कैदियों की सुरक्षा प्रभावी ढंग से करने के लिए दोबारा गहन प्रशिक्षण देने और दूसरे जेलों के प्रबंधन को सुधारने और उनमें मौजूद सुरक्षा संबंधी त्रुटियों को दूर करने की आवश्यकता है। प्रश्न यह भी है कि जेलों और हिरासत से कैदियों की फरारी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों तथा सुरक्षा कर्मियों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई और फरार होने वाले अपराधी को पकडऩे की कोशिश क्यों नहीं की जाती? अतीत में जेलों से भागने के आरोपियों के चित्र और विज्ञापन आदि अखबारों में प्रमुखता से छपवाए जाते थे। आज के डिजिटल युग में तो यह सब और भी आसान है परंतु न जाने क्यों इस परम्परा को तिलांजलि दे दी गई है। मोबाइल फोन पर ही फोटो अपलोड करके हर जगह पहुंचाई जा सकती है।
स्पष्टत: यह सब जेलों में कैदियों की सुरक्षा में तैनात कर्मचारियों की चूक और लापरवाही का ही प्रमाण है जो अनेक प्रश्र खड़े करता है जिनका उत्तर तलाश कर उन कमजोरियों को दूर करने की जरूरत है। भारत में आधुनिक जेलें 1835 को लार्ड टी.बी. मैकाले के शासन में अस्तित्व में आईं। हालांकि समय-समय पर कुछ सरकारों ने कई जेल सुधारों की पेशकश की मगर उनको लागू नहीं कर पाई। बेशक जेल प्रबंधन एक राज्य का विषय है मगर अभी भी कुछ राज्यों की जेलों में ज्यादातर सामान्य रूप से कुप्रबंधन व्याप्त है।