‘जिनपिंग की तानाशाही के विरुद्ध’‘चीन के अंदर उठती आवाजें’

Edited By ,Updated: 22 Aug, 2020 02:03 AM

rising voices inside china against jinping s dictatorship

कोरोना संक्रमण के प्रसार के लिए सारी दुनिया की आलोचना झेल रहे चीन के शासक जहां सहायता देने के नाम पर नेपाल, पाकिस्तान व श्रीलंका आदि को भारत के विरुद्ध भड़का रहे हैं वहीं स्वयं इन देशों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। अपनी इसी रणनीति के अंतर्गत...

कोरोना संक्रमण के प्रसार के लिए सारी दुनिया की आलोचना झेल रहे चीन के शासक जहां सहायता देने के नाम पर नेपाल, पाकिस्तान व श्रीलंका आदि को भारत के विरुद्ध भड़का रहे हैं वहीं स्वयं इन देशों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। अपनी इसी रणनीति के अंतर्गत चीन सरकार ने ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर परियोजना’ के अंतर्गत पाकिस्तान में सड़क, रेल, पुल और बिजली परियोजनाओं आदि पर 60 अरब डालर का निवेश किया है। 

इसी प्रकार उसने नेपाल में भी अनेक परियोजनाएं शुरू कर रखी हैं जिनमें तिब्बत के जिलोंग से काठमांडू तक सुरंग वाली सड़क तथा काठमांडू में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय आदि का निर्माण भी शामिल है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चीन एक ओर नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार के नेताओं को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए भड़का रहा है तो दूसरी तरफ स्वयं नेपाल की जमीन पर कब्जा करता जा रहा है। नेपाल की सरकारी एजैंसियों की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने नेपाल के 7 जिलों दोलखा, गोरखा, दारचुला, हुमला, सिंधपालचौक, संखुवासभा और रसुवा में जमीन पर कब्जा कर लिया है लेकिन प्रधानमंत्री ओली की सरकार चुप है। 

यह भी उल्लेखनीय है कि चीन द्वारा नेपाल के ‘रुई गांव’ में किए गए अवैध कब्जे की सबसे पहले सूचना देने वाला नेपाली पत्रकार ‘बलराम बनिया’ 14 अगस्त को संदिग्ध हालात में बागमती नदी के किनारे मृत पाया गया। तिब्बतियों के धर्म गुरु दलाईलामा की जासूसी करवाने के लिए चीन सरकार रिश्वतखोरी का सहारा ले रही है। एक हजार करोड़ रुपए के हवाला रैकेट में गिरफ्तार चीनी नागरिक ‘चार्ली लुओ सांग’ उर्फ ‘चार्ली पैंग’ द्वारा दिल्ली में कुछ लामाओं को रिश्वत देकर दलाईलामा और उनके करीबी सहयोगियों की जानकारी जुटाने की कोशिश करने का पता चला है। इतना ही नहीं चीन ने भारत के साथ सीमा पर चल रहे तनाव के बीच तिब्बत से कालापानी घाटी तक भारत से सटी सीमा पर आम्र्स ब्रिगेड और तोपें तैनात कर दी हैं। 

विश्व के अग्रणी शहरों में से एक हांगकांग भी चीन के विश्वासघात का शिकार बना है जिसे इंगलैंड ने 1997 में स्वायत्तता की शर्त के साथ चीन को सौंपा था। चीन ने अगले 50 वर्ष तक इसकी स्वतंत्रता तथा सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक व्यवस्था बनाए रखने की गारंटी दी थी परंतु ऐसा न होने और चीन सरकार की दमनकारी नीतियां जारी रहने के कारण आज हांगकांग में चीन सरकार के विरुद्ध भारी रोष भड़का हुआ है और उसके विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं। 

चीन में अल्पसंख्यक मुसलमानों और ईसाइयों का दमन भी लगातार जारी है। वहां मुसलमानों को लम्बी दाढ़ी रखने, टोपी पहनने और धार्मिक शिक्षा लेने जैसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित करने के अलावा बच्चे पैदा करने से रोकने और उनके जबरन गर्भपात का अभियान शुरू कर दिया गया है। इस बीच शिनजियांग प्रांत में एक मस्जिद को गिराकर वहां एक सार्वजनिक शौचालय बना दिया गया है तथा वहां चल रहे खुफिया कैम्पों की कुछ वीडियो फुटेज सामने आई हैं जहां ‘उईगर युवकों’ को हथकड़ी से बांधकर कैद करके रखा गया है। 

चीनी शासकों ने अब अपने देश के लगभग 7 करोड़ ईसाई अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है। कुछ समय पूर्व चीन में ईसाई धर्म से संबंधित पुस्तकों के इस्तेमाल और उनके अनुवाद पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और अब वहां चर्च तथा मकानों के बाहर से ‘क्रास’ हटाने का अभियान भी शुरू किया गया है। इसके अंतर्गत वहां रहने वाले ईसाई समुदाय के लोगों को अपने मकानों में मौजूद ‘क्रॉस’ तथा अन्य धार्मिक मूर्तियां आदि हटा देने और अपने आराध्य प्रभु यीशू मसीह के चित्रों के स्थान पर (भगवान को न मानने वाले) कम्युनिस्ट नेताओं विशेषकर जिनपिंग आदि के चित्र लगाने को कहा गया है। हाल में ही अधिकारियों ने कम से कम 5 प्रांतों में स्थित गिरजाघरों से जबरदस्ती धार्मिक प्रतीक हटा दिए क्योंकि उनका कहना है कि इमारतों से किसी धर्म की पहचान नहीं होनी चाहिए। 

इसी कारण अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा है कि ‘‘यह चीन की निरंकुशता और अत्याचारों से मुक्ति पाने का समय है और हमें चीन मुक्त दुनिया के लिए प्रयास करने चाहिएं।’’ इस बीच चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग की विस्तारवादी नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने पर कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासित चीन की सैंट्रल पार्टी स्कूल की पूर्व प्रोफैसर ‘काई शिया’ ने कहा है कि ‘‘राष्ट्रपति जिनपिंग अपने देश को समाप्त करने पर तुले हैं।’’ 

उन्होंने यह आरोप भी लगाया है कि ‘‘जिनपिंग के शासनकाल में कम्युनिस्ट पार्टी देश के विकास में बाधा बन गई है। इसी कारण बहुत से लोग पार्टी छोडऩा चाहते हैं क्योंकि यहां अभिव्यक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है।’’ चीन के शासकों की ऐसी ही निरंकुश नीतियों के विरुद्ध उनके अपने घर में भी विद्रोह के स्वर उठने लगे हैं और शिनजियांग प्रांत के लोगों ने तो चीन से आजादी के लिए दुनिया से मदद की मांग भी कर दी है।—विजय कुमार 

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