‘मंदिर, मस्जिद विवाद को लेकर’ ‘संघ प्रमुख भागवत की खरी बातें’

Edited By ,Updated: 22 Dec, 2024 05:20 AM

sangh chief bhagwat s frank words on temple and mosque dispute

1975 के अंत में जब देश तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लगाए हुए आपातकाल से जूझ रहा था, पशु चिकित्सा में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अधूरा छोड़ कर ‘मोहन राव मधुकर राव भागवत’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गए।

1975 के अंत में जब देश तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लगाए हुए आपातकाल से जूझ रहा था, पशु चिकित्सा में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अधूरा छोड़ कर ‘मोहन राव मधुकर राव भागवत’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गए। वह विभिन्न पदों से गुजरते हुए 2009 से इसके सरसंघ चालक हैं तथा समय-समय पर धर्म, समाज और राजनीति से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय देते रहते हैं। इसी शृंखला में 20 दिसम्बर को श्री मोहन भागवत ने पुणे में आयोजित  ‘सह जीवन व्याख्यान माला’ में ‘भारत विश्वगुरु’ विषय पर व्याख्यान दिया और भारतीय समाज की विविधता को रेखांकित करते हुए मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठाने पर चिंता व्यक्त की है।

उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि ऐसे मुद्दों को उठाकर वे हिन्दुओं के नेता बन सकते हैं, यह स्वीकार्य नहीं है। राम मंदिर का निर्माण इसलिए किया गया क्योंकि यह सभी हिन्दुओं की आस्था का विषय था। राम मंदिर होना चाहिए था और हुआ परंतु रोज नए मुद्दे उठाकर घृणा और दुश्मनी फैलाना उचित नहीं। हर दिन एक नया विवाद उठाया जा रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता। अपने भाषण में उन्होंने सब लोगों को अपनाने वाले समाज की वकालत की और कहा कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि भारत देश सद्भावना पूर्वक एक साथ रह सकता है। ‘रामकृष्ण मिशन’ में ‘क्रिसमस’ मनाया जाता है। केवल हम ही ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि हम हिंदू हैं।

श्री भागवत के अनुसार बाहर से आए कुछ समूह अपने साथ कट्टïरता लेकर आए और वे चाहते हैं कि उनका पुराना शासन वापस आ जाए लेकिन अब देश संविधान के अनुसार चलता है। कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक? यहां सभी समान हैं। जरूरत सद्भावना से रहने और कायदे- कानूनों का पालन करने की है। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व 3 जून, 2022 को भी श्री भागवत ने नागपुर में स्वयंसेवकों की एक सभा से पहले अपने संबोधन में कई संदेश दिए थे जिनमें उन्होंने श्रद्धा और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद पर हिन्दू दावे का समर्थन किया था, परंतु इसके साथ ही बलपूर्वक यह भी कहा था कि ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ देश भर में किए जा रहे ऐसे दावों का समर्थन नहीं करता। 

उन्होंने इस तथ्य को दोहराया था कि आक्रमणकारियों के जरिए इस्लाम भारत में आया था, लेकिन जिन मुसलमानों ने इसे स्वीकार किया है वे बाहरी नहीं हैं, इसे समझने की जरूरत है। भले ही उनकी प्रार्थना (भारत से) बाहर से आई हो और वे इसे जारी रखना चाहते हैं तो अच्छी बात है। हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है। मस्जिदों में जो होता है, वह भी इबादत का ही एक रूप है। ठीक है यह बाहर से आया है। 
श्री भागवत के अनुसार हिन्दुओं के दिलों में खास महत्व रखने वाले मंदिरों के मुद्दे अब उठाए जा रहे हैं...हर रोज कोई नया मुद्दा नहीं उठाना चाहिए। झगड़े क्यों बढ़ाते हैं? ‘ज्ञानवापी’ को लेकर हमारी आस्था पीढिय़ों से चली आ रही है। हम जो कर रहे हैं वह ठीक है परंतु हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों?

सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा है कि मोहन भागवत जी ने सही कहा है परंतु उनकी बात कोई नहीं सुनता। श्री भागवत की उक्त बातों पर कोई टिप्पणी न करते हुए हम इतना ही कहेंगे कि भाजपा की अभिभावक संस्था ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के प्रमुख होने के नाते श्री मोहन भागवत का हर कथन मायने रखता है। इस कारण श्री भागवत की उक्त बातों पर सभी संबंधित पक्षों को विचार करने की आवश्यकता है ताकि अनावश्यक विवादों में उलझे बगैर शांति और सौहार्दपूर्ण वातावरण में देश तरक्की करता रहे।—विजय कुमार   

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