Edited By ,Updated: 19 Feb, 2025 05:28 AM
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भारतीय कोऑप्रेटिव (सहकारी) बैंकिंग का इतिहास वर्ष 1904 में सहकारी समिति अधिनियम के पास होने के साथ शुरू हुआ था। इस अधिनियम का उद्देश्य कोऑप्रेटिव (सहकारी) ऋण समितियों को कायम करना था। भारत में सहकारी आंदोलन (कोऑप्रेटिव मूवमैंट) की शुरूआत किसानों,...
भारतीय कोऑप्रेटिव (सहकारी) बैंकिंग का इतिहास वर्ष 1904 में सहकारी समिति अधिनियम के पास होने के साथ शुरू हुआ था। इस अधिनियम का उद्देश्य कोऑप्रेटिव (सहकारी) ऋण समितियों को कायम करना था। भारत में सहकारी आंदोलन (कोऑप्रेटिव मूवमैंट) की शुरूआत किसानों, कामगारों और समाज के अन्य लोगों के विकास में सहायता करने और बचत को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से की गई थी। कोऑप्रेटिव बैंक या सहकारी बैंक शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में छोटे व्यवसायों, किसानों तथा अन्य लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण की सुविधाएं प्रदान करने वाले छोटे वित्तीय संस्थान हैं। ये अपने ग्राहकों द्वारा जमा करवाई गई राशि पर बड़े कमर्शियल बैंकों की तुलना में कुछ अधिक ब्याज देते हैं।
मोटे तौर पर कोआप्रेटिव बैंकों का मुख्य उद्देश्य अधिक लाभ कमाना नहीं बल्कि अपने सदस्यों को सर्वोत्तम उत्पाद और सेवाएं प्रदान करना होता है। कुछ कोआप्रेटिव बैंक राज्य सरकारों द्वारा संचालित हैं जबकि अधिकांश कोआप्रेटिव बैंकों का स्वामित्व और नियंत्रण उनके सदस्यों द्वारा ही किया जाता है, जो निदेशक मंडल का विधिवत चुनाव करते हैं। ये सभी बैंक भारतीय रिजर्व बैंक के अंतर्गत आते हैं। इन्हें सहकारी बैंक सहकारी समिति अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत किया जाता है। कोऑप्रेटिव बैंकों ने गांवों और कस्बों में आम लोगों को बैंकिंग से जोड़ कर देश की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है परंतु समय के साथ-साथ अब इन बैंकों में भी कुछ बुराइयां आ गई हैं। इस कारण कोऑप्रेटिव बैंकों में जमाकत्र्ताओं की रकम डूबने या गबन किए जाने के मामले सामने आने लगे हैं। कोआप्रेटिव बैंकों में हुए कुछ घोटाले निम्न में दर्ज हैं :
* 22 जून, 2024 को रायपुर (छत्तीसगढ़) के ‘डिस्ट्रिक्ट सैंट्रल कोऑप्रेटिव बैंक’, मौदहापारा के अकाऊंटैंट अरुण कुमार बैसवाडे और जूनियर क्लर्क चंद्रशेखर डग्गर की संदिग्ध कार्यशैली की जांच करने पर बैंक में 52 लाख रुपए का घोटाला सामने आया।
मामले की जांच करने पर 2017 से 2020 के बीच बैंक में एफ.डी. खातों और अन्य खातों में ब्याज में 52 लाख रुपए की हेराफेरी का पता चला। इस मामले में आरोपियों की सहायता करने के आरोप में संजय कुमार शर्मा नामक एक अन्य कर्मचारी को भी गिरफ्तार किया गया।
* 10 जनवरी, 2025 को बिहार में ‘वैशाली शहरी विकास को-ऑप्रेटिव बैंक’ में लगभग 85 करोड़ रुपए के घपले में प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी. की टीम) ने राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं लालू प्रसाद यादव तथा तेजस्वी यादव के करीबी पूर्व मंत्री तथा पूर्व सांसद आलोक मेहता के घर सहित 4 राज्यों में 19 ठिकानों पर छापामारी की।
* 7 फरवरी, 2025 को बलरामपुर (छत्तीसगढ़) जिले के ‘जिला कोऑप्रेटिव बैंक’ अंबिकापुर में 2022 से 2024 के बीच बैंक के कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा 13 करोड़ 14 लाख रुपए के घोटाले का मामला सामने आया।
* और अब 15 फरवरी को मुम्बई स्थित ‘न्यू इंडिया कोऑप्रेटिव बैंक’ में 122 करोड़ रुपए के घोटाले के सिलसिले में मुम्बई पुलिस की आॢथक अपराध शाखा ने बैंक के जनरल मैनेजर हितेश मेहता को गिरफ्तार किया।
हालांकि देश में कोऑप्रेटिव बैंकों की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता परंतु इन बैंकों में लगातार हो रहे घोटालों को देखते हुए देश के कोऑप्रेटिव बैंकिंग ढांचे में कुछ बुनियादी सुधार लाने की जरूरत है। इसके लिए रिजर्व बैंक और राज्य सरकारों तथा बैंक प्रबंधन का एक ही मंच पर आकर आपस में तालमेल के साथ काम करना जरूरी है ताकि कोऑप्रेटिव बैंकों में अपनी रकम जमा करवाने वालों की रकम सुरक्षित रहे और किसी भी कारण से बैंक के फेल होने का खतरा भी न हो।
इसके साथ ही इस तरह के घोटाले करके आम लोगों के खून-पसीने की रकम हड़पने वालों के विरुद्ध शीघ्र कठोरतम कार्रवाई करने की भी जरूरत है ताकि इस बुराई पर रोक लग सके।—विजय कुमार