Edited By ,Updated: 02 Jul, 2024 05:14 AM
लोकसभा चुनाव के परिणामों में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद राजनीतिक क्षेत्रों में अटकलें जारी थीं कि केंद्र सरकार अब नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) और चंद्र बाबू नायडू की पार्टी टी.डी.पी. के सहारे टिकी है और ये दोनों केंद्र सरकार को समर्थन...
लोकसभा चुनाव के परिणामों में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद राजनीतिक क्षेत्रों में अटकलें जारी थीं कि केंद्र सरकार अब नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) और चंद्र बाबू नायडू की पार्टी टी.डी.पी. के सहारे टिकी है और ये दोनों केंद्र सरकार को समर्थन देने के बदले में अपने-अपने राज्यों बिहार तथा आंध्र प्रदेश के लिए कोई बड़ी कीमत वसूल करेंगे। चूंकि नीतीश कुमार का पाला बदलने का लम्बा इतिहास रहा है, अत: इन दोनों में से नीतीश कुमार को लेकर ज्यादा अटकलें लगाई जा रही थीं परंतु हाल के राजनीतिक घटनाक्रम से मिलने वाले संकेतों के अनुसार नीतीश कुमार भाजपा के सामने ‘झुक कर’ उसे बड़ी राहत देने जा रहे हैं।
4 जून को चुनाव परिणाम आने के बाद से अब तक नीतीश कुमार ने भाजपा पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं डाला है तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जद (यू) से सिर्फ 2 मंत्री बनाने के बावजूद नीतीश कुमार ने इसका कोई विरोध नहीं किया। 29 जून को नई दिल्ली में जद (यू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे को हवा देते हुए नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार के सामने फिर से यह मांग रखी। बैठक में कहा गया कि बिहार को आॢथक रूप से विकसित करने के लिए यह विशेष दर्जा मिलना जरूरी हो गया है। परंतु नीतीश कुमार ने केंद्र को थोड़ा साफ्ट रुख दिखाते हुए उसके सामने दो विकल्प रख दिए हैंं। उन्होंने मोदी सरकार से कहा है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए लेकिन यदि यह नहीं दिया जा सकता हो तो विशेष पैकेज ही दे दिया जाए। नीतीश ने केंद्र के सामने 2 विकल्प क्यों रखे, इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर भी चल रहा है।
उल्लेखनीय है कि किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने और विशेष पैकेज देने में बहुत अंतर होता है। विशेष राज्य का दर्जा ‘नैशनल डिवैल्पमैंट कौंसिल’ द्वारा दिया जाता है। पहली बार यह दर्जा 1969 में जम्मू-कश्मीर को दिया गया था और वर्तमान में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों सहित 11 राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त है। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्य को कुछ वर्षों तक केंद्रीय करों से राहत मिलने के अलावा कई प्रकार की वित्तीय सुविधाएं प्रदान की जाती हैं जबकि किसी भी राज्य को विशेष आर्थिक पैकेज देने के लिए राज्यों की योजनाओं के धन को ही घुमा-फिरा कर उन्हें भेज दिया जाता है।
यही नहीं, नीतीश कुमार ने राज्यसभा सांसद संजय झा को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया जिन्होंने भाजपा और जद (यू) को दोबारा नजदीक लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब भाजपा तथा जद (यू) के बीच तालमेल का काम संजय झा देखेंगे जो नीतीश के भरोसेमंद होने के साथ-साथ भाजपा के सभी नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध हैं। इसलिए दोनों पार्टियों के बीच तालमेल की संभावना पहले से बेहतर हो गई है।
नीतीश कुमार के इस रुख का एक कारण यह समझा जा रहा है कि उन्हें बिहार में भाजपा के समर्थन की जरूरत है और अब उनका फोकस अगले वर्ष होने वाले बिहार के चुनाव पर अधिक है। बिहार के लिए केंद्र से विशेष आर्थिक पैकेज हासिल कर के वह चुनाव में जाना चाहते हैं और बिहार के विकास के मुद्दे को लेकर एक बार फिर भाजपा के साथ ही चुनाव लडऩे की योजना बना रहे हैं। बहरहाल, इस वर्ष के केंद्रीय बजट में यह स्पष्ट होगा कि नीतीश कुमार की मांग पर केंद्र किस सीमा तक विचार करता है और दोनों की राजनीतिक जुगलबंदी कब तक चलती है या नीतीश कुमार कोई नया ‘खेला’ करने की सोच रहे हैं।—विजय कुमार