न्यायपालिका के चंद महत्वपूर्ण निर्णय ‘देखभाल न करने वाली संतानों से’ ‘सम्पत्ति वापस ले सकते हैं बुजुर्ग’

Edited By ,Updated: 21 Mar, 2025 05:21 AM

some important decisions of the judiciary

न्यायपालिका जहां देश में विभिन्न विवाद निपटा रही है, वहीं संतानों द्वारा अपने बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा और उनके भरण-पोषण आदि से जुड़़े विवादों के संबंध में भी महत्वपूर्ण निर्णय सुनाकर बुजुर्गों के जीवन की संध्या को सुखमय बनाने में योगदान दे रही...

न्यायपालिका जहां देश में विभिन्न विवाद निपटा रही है, वहीं संतानों द्वारा अपने बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा और उनके भरण-पोषण आदि से जुड़े विवादों के संबंध में भी महत्वपूर्ण निर्णय सुनाकर बुजुर्गों के जीवन की संध्या को सुखमय बनाने में योगदान दे रही है। पिछले 3 महीनों के दौरान इसी से संबंधित सुनाए गए चंद महत्वपूर्ण निर्णय निम्न में दर्ज हैं : 

* 4 जनवरी को ‘सुप्रीम कोर्ट’ के जस्टिस ‘सी.टी. रवि कुमार’ और जस्टिस ‘संजय करोल’ ने कहा कि यदि बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते तो माता-पिता द्वारा उनके नाम पर की गई सम्पत्ति की ‘गिफ्ट डीड’ रद्द की जा सकती है। 
अदालत ने यह फैसला मध्य प्रदेश की एक महिला की उस याचिका पर सुनाया जिसमें उसने अपने बेटे के पक्ष में की गई डीड को रद्द करने की मांग की थी क्योंकि बेटे ने उसकी देखभाल करने से इंकार कर दिया था। 

* 26 फरवरी को ‘पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट’ ने संगरूर की एक पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एक व्यक्ति को अपनी 77 वर्षीय मां को 5000 रुपए मासिक देखभाल भत्ता देने का आदेश दिया गया था। ‘जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी’ ने कहा कि यह याचिका घोर कलियुग का एक ज्वलंत उदाहरण है। इसने अदालत की अंतरात्मा को ङ्क्षझझोड़ कर रख दिया है, जहां एक बेटा अपनी मां को खर्च चलाने के लिए 5000 रुपए मासिक की मामूली सी रकम भी नहीं देना चाहता। इसके साथ ही जस्टिस ‘जसगुरप्रीत सिंह पुरी’ ने व्यक्ति को 3 महीने के भीतर अपनी मां को 50,000 रुपए जुर्माना देने का आदेश दिया और कहा कि पिता की मौत के बाद बेटा उनकी सम्पत्ति भी ले चुका है, फिर भी पीड़ित महिला को मात्र 5000 रुपए के भरण-पोषण भत्ते, जो बहुत कम है, के लिए हाईकोर्ट में अपील दायर करनी पड़ी। 

* 19 मार्च को ‘मद्रास हाईकोर्ट’ के जस्टिस ‘एस.एम. सुब्रह्मïण्यम’ और जस्टिस ‘के. राज शेखर’ पर आधारित खंडपीठ ने कहा, ‘‘यदि बच्चे या उनके निकट संबंधी अपने बुजुर्ग की सेवा या देखभाल नहीं करते तो वे उन्हें दिया गया गिफ्ट या सैटलमैंट डीड रद्द कर सकते हैं। भले ही डीड की शर्तों में इसका स्पष्टï उल्लेख न हो।’’

माननीय जजों ने हाल ही में दिवंगत ‘एस. नागलक्ष्मी’ की बहू ‘एस. माला’ की अपील रद्द कर दी। ‘नागलक्ष्मी’ ने इस आशा से अपने बेटे ‘केशवन’ के नाम एक सैटलमैंट डीड की थी कि वह और उसकी पत्नी एस. माला’ जीवन भर उसकी देखभाल करेंगे लेकिन ‘केशवन’ की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी ‘माला’ ने उनकी देखभाल नहीं की जिस पर ‘नागलक्ष्मी’ को कानून की सहायता लेनी पड़ी। 

माननीय जजों ने यह फैसला माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 की धारा 23 (1) के अधीन सुनाया। यह अधिनियम उन वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है जो देखभाल की उम्मीद के साथ अपनी सम्पत्ति हस्तांतरित करते हैं। इसके अंतर्गत लाभार्थियों द्वारा अपने बुजुर्गों की देखभाल में नाकाम रहने पर वे सम्पत्ति के ऐसे हस्तांतरण को रद्द करवाने के अधिकारी हैं।

उक्त फैसले स्पष्ट करते हैं कि वरिष्ठ नागरिकों के अधिकार कानूनी रूप से सुरक्षित हैं और संतानों के लिए उनकी देखभाल करना सिर्फ नैतिक दायित्व ही नहीं बल्कि यह कानूनी तौर पर भी बाध्यकारी है तथा बच्चों द्वारा अपनी जिम्मेदारी न निभाने पर बुजुर्गों के पास कानूनी विकल्प मौजूद हैं। इसी कारण हम अपने लेखों में बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम अवश्य कर दें पर इसे ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं परंतु अक्सर बुजुर्ग यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें अपने शेष जीवन में भुगतना पड़ता है।—विजय कुमार

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!