Edited By ,Updated: 19 Dec, 2024 05:09 AM
इन दिनों न्यायपालिका अपने जनहितकारी फैसलों से समाज में व्याप्त अनेक बुराइयां दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिसके चंद ताजा उदाहरण निम्र में दर्ज हैं :
इन दिनों न्यायपालिका अपने जनहितकारी फैसलों से समाज में व्याप्त अनेक बुराइयां दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिसके चंद ताजा उदाहरण निम्र में दर्ज हैं :
* 17 अक्तूबर को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पाकिस्तान के समर्र्थन में नारे लगाने वाले आरोपी को जमानत देते हुए आदेश दिया कि मुकद्दमे की समाप्ति तक हर महीने उसे 2 बार भोपाल पुलिस थाने में हाजिरी देकर 21 बार राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देनी होगी तथा ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाना होगा।
* 4 दिसम्बर को पंजाब, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में अवैध खनन से पर्यावरण को हो रही भारी क्षति सम्बन्धी दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या को गंभीर बताया और उक्त राज्यों की सरकारों से इस बारे तथ्य एवं आंकड़े पेश करने का आदेश दिया।
* 6 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बैंच ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 73.80 ग्राम हैरोइन के साथ पकड़े गए आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया।
* 11 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और एन. कोटिश्वर सिंह ने तेलंगाना के एक व्यक्ति और उसके परिवार के विरुद्ध पत्नी द्वारा दर्ज करवाया गया क्रूरता और दहेज उत्पीडऩ का मुकद्दमा रद्द करते हुए कहा :
‘‘दहेज उत्पीडऩ कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीडऩ से बचाने के लिए बनाया गया है परन्तु कई बार जब इस कानून का दुरुपयोग महिलाएं अपने पति और उसके परिवार से अनुचित मांगें पूरी करवाने के लिए करती हैं तो यह न्याय व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाता है।’’
* 12 दिसम्बर को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि किसी लड़की से छेड़छाड़ और अश्लील इशारे करके उसे तंग करने वाला व्यक्ति पुलिस बल जैसी अनुशासित सेवा में नौकरी के उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
जस्टिस दीपक सिब्बल तथा लापिता बैनर्जी की पीठ ने यह फैसला एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका रद्द करते हुए सुनाया, जिसने कांस्टेबल के रूप में अपना चयन रद्द किए जाने को इस आधार पर चुनौती दी थी कि अदालत ने उसे उक्त आरोप से बरी कर दिया था। माननीय न्यायाधीशों ने कहा कि उसे पीड़िता तथा उसके पिता के पलट जाने के कारण आरोपमुक्त करार दिया गया था।
* 16 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान से भारत में 500 किलो हैरोइन की तस्करी के मामले में आरोपी व्यक्ति द्वारा दायर जमानत याचिका रद्द करते हुए युवाओं में बढ़ती ड्रग्स की लत पर चिंता व्यक्त की और कहा :
‘‘भारत में मादक द्रव्यों से होने वाले मुनाफे का इस्तेमाल आतंकवाद को समर्थन और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है जिससे दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता पैदा हो रही है।’’
* 17 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी तथा जस्टिस सतीश चंद्र ने एक 14 वर्षीय नाबालिगा से सामूहिक बलात्कार के आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया कि कोई भी अदालत पीड़िता अथवा उसके माता-पिता या अभिभावकों का पक्ष सुने बिना बलात्कार के आरोपियों को जमानत नहीं दे सकती।
* 17 दिसम्बर को ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने ‘नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ (एन.जी.टी.) द्वारा पुणे (महाराष्ट्र) के एक गांव में कुष्ठï रोगियों के लिए 1960 से चल रहे एक केंद्र को हटाने के दिए गए आदेश को रद्द करते हुए इसे क्रूरतापूर्ण करार दिया और कहा, ‘‘इंसानियत नाम की भी कोई चीज होती है। वे (कुष्ठï रोगी) समाज का हिस्सा हैं।’’
* 17 दिसम्बर को ही पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने मृत पति के स्थान पर अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने वाली एक विधवा को अपनी सास को भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश दिया और कहा,‘‘अनुकंपा के आधार पर दी गई नियुक्ति का उद्देश्य रोजगार देना ही नहीं, इससे जुड़ी जिम्मेदारियां निभाना भी है।’’ विभिन्न जनहितकारी मुद्दों पर न्यायपालिका द्वारा सुनाए गए उक्त आदेशों के लिए माननीय न्यायाधीश साधुवाद के पात्र हैं। काश! हमारे देश में सभी जज ऐसे हो जाएं तो देश को अनेक बुराइयों से मुक्त होने में अधिक समय न लगे।—विजय कुमार