जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली के बाद आतंकी हमलों में आई तेजी

Edited By ,Updated: 30 Oct, 2024 05:36 AM

terrorist attacks increased after the restoration of democracy in j k

जम्मू-कश्मीर में 10 वर्ष बाद हुए विधानसभा चुनाव शांतिपूर्वक सम्पन्न होने और उमर अब्दुल्ला द्वारा 16 अक्तूबर को मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण करने के बाद यहां लोकतांत्रिक सरकार की बहाली एवं शांति कायम होने की आशा बंधी थी, परंतु ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा।...

जम्मू-कश्मीर में 10 वर्ष बाद हुए विधानसभा चुनाव शांतिपूर्वक सम्पन्न होने और उमर अब्दुल्ला द्वारा 16 अक्तूबर को मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण करने के बाद यहां लोकतांत्रिक सरकार की बहाली एवं शांति कायम होने की आशा बंधी थी, परंतु ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। यह शपथ ग्रहण के तुरंत बाद राज्य में हुईं आतंकी ङ्क्षहसा की निम्न घटनाओं से स्पष्ट है : 

* 18 अक्तूबर को शोपियां के ‘वंदाना मल्होरे’ इलाके में आतंकवादियों ने एक गैर स्थानीय व्यक्ति बिहार निवासी मकई विक्रेता की हत्या कर दी।  
* 20 अक्तूबर को आतंकवादियों ने गांदरबल में सुरंग निर्माण में लगे मजदूरों पर गोलियां बरसा कर 6 प्रवासी मजदूरों तथा एक कश्मीरी डाक्टर की हत्या और 5 अन्य को घायल कर दिया।
* 24 अक्तूबर दोपहर को आतंकवादियों ने बारामूला जिले के गुलमर्ग इलाके में सेना के एक काफिले पर हमला करके 3 सैनिकों और सेना के 2 पोर्टरों (कुलियों) की जान ले ली तथा 3 अन्य को घायल कर दिया। इसी दिन आतंकवादियों ने पुलवामा जिले के ‘बाटागुंड’ गांव में उत्तर प्रदेश के एक श्रमिक को गोली मार कर घायल कर दिया। 

* और अब 28 अक्तूबर को सुबह के समय 3 आतंकवादियों ने सेना की एक एम्बुलैंस पर हमला कर दिया। इस हमले में हमारे किसी जवान की हानि तो नहीं हुई परंतु मुठभेड़ में आतंकवादियों को ढूंढ निकालने वाला 4 वर्षीय बहादुर कुत्ता ‘फैंटम’ आतंकियों की गोलीबारी में शहीद हो गया। एक ओर तो सेना आलआऊट अभियान के अंतर्गत आतंकवादियों का सफाया करने में जुटी हुई है परंतु दूसरी ओर पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हिंसा से बाज नहीं आ रहे तथा पिछले 18 अक्तूबर से अब तक 11 दिनों में ही 11 स्थानीय तथा बाहरी लोगों की हत्या कर चुके हैं। 

एक अधिकारी के अनुसार हमलों के लिए आतंकवादी ऐसे स्थानों का चुनाव करते हैं कि जिनके आसपास जंगल और पहाडिय़ां हों ताकि हमला करने के बाद वे घने जंगलों और पहाडिय़ों में जाकर छिप सकें। 
इस बात की पूरी आशंका है कि आतंकवादियों को स्थानीय लोगों का सहयोग मिल रहा है। कुछ लोग चोरी-छिपे आतंकवादियों के लिए रेकी करने के साथ उन्हें हर तरह की सहायता भी दे रहे हैं। यह आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि कुछ स्थानों पर आतंकवादी स्थानीय लोगों से बंदूक के बल पर जबरदस्ती भोजन और अन्य प्रकार की सहायता भी प्राप्त करते हैं।

गत 21 अक्तूबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गांदरबल जिले में आतंकवादी हमले की ङ्क्षनदा करते हुए कहा था कि इस जघन्य कृत्य में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। इससे पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी पाकिस्तान को आतंक का रास्ता छोडऩे की नसीहत देने के साथ ही यह चेतावनी भी दे चुके हैं कि देश को खतरा होने पर कोई भी कदम उठाने से संकोच नहीं किया जाएगा। परंतु ऐसा लगता है कि आतंकवादियों पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ और वे लगातार हिंसा में जुटे हुए हैं तथा सेना के जवानों एवं स्थानीय तथा बाहरी लोगों को निशाना बना रहे हैं। 

अधिकारियों के अनुसार इन हमलों की जिम्मेदारी ‘द रैजिस्टैंस फ्रंट’ (टी.आर.एफ.) तथा अन्य पाकिस्तान समर्थित संगठनों ने ली है। यह आतंकी संगठन ‘लश्कर-ए-तैयबा’ का मुखौटा बताया जाता है। पाकिस्तान से ही घाटी में खून-खराबा करने की साजिश रची जाती है तथा पाकिस्तान ही इन हमलों के लिए फंडिंग भी करता है। ‘टी.आर.एफ.’ का सरगना शेख सज्जाद गुल पाकिस्तान में रहता है। उसी के निर्देशों पर ‘टी.आर.एफ.’ का स्थानीय माड्यूल जम्मू-कश्मीर में सक्रिय हुआ है जिसने पहली बार कश्मीरी व गैर कश्मीरियों को निशाना बनाया है। इस तरह के घटनाक्रम के बीच सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय, जम्मू-कश्मीर पुलिस, सेना तथा कानून लागू करने वाली अन्य एजैंसियों को आतंकवादियों के विरुद्ध ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है, ताकि इनका सफाया हो सके।—विजय कुमार  

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