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देश में दलितों का उत्पीड़न तुरंत रुकना चाहिए

Edited By ,Updated: 04 Dec, 2022 03:55 AM

the oppression of dalits in the country should stop immediately

छुआछूत और जाति आधारित भेदभाव मिटाने के लिए महात्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषों ने अनथक प्रयास किए परंतु स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी देश में अनेक स्थानों पर दलित भाईचारे से भेदभाव जारी है :

छुआछूत और जाति आधारित भेदभाव मिटाने के लिए महात्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषों ने अनथक प्रयास किए परंतु स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी देश में अनेक स्थानों पर दलित भाईचारे से भेदभाव जारी है : * 7 नवम्बर को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह नगर के थाना सूरसागर के अंतर्गत ‘भीमिया जी की घाटी’ में चंद लोगों ने किशन लाल नामक एक आदिवासी को हैंडपंप छू लेने पर पीट-पीट कर मार डाला। 


* 13 नवम्बर को औरैया (उत्तर प्रदेश) के ‘दिबियापुर’ में किसी बात से खफा 5 लोगों ने आदित्य दोहरे नामक एक दलित युवक को रास्ते में उसकी कार से बाहर खींच कर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जिससे वह सदमे में आ गया। 

* 15 नवम्बर को मुंगेर (बिहार) के ‘छोटी केशवपुर’ इलाके में  ब्याज का पैसा न लौटाने पर कुछ दबंगों ने एक दलित परिवार की महिलाओं को उनके घर में घुस कर पीटा जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गईं। * 26 नवम्बर को सिरोही (राजस्थान) में एक दलित युवक के परिजनों ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई कि पहले तो कुछ दबंगों ने अकारण ही उक्त युवक से बुरी तरह मारपीट की और फिर उसे पेशाब पिलाया जिससे युवक इतना डर गया कि कई दिनों तक अपने घर से बाहर ही नहीं निकला। 

* और अब 2 दिसम्बर को कोलार (कर्नाटक) जिले के ‘मुलबगल’ में किसी काम से जाते समय उदयकिरण नामक एक दलित युवक द्वारा अपना मोटरसाइकिल राजू नामक एक अन्य युवक से आगे निकाल ले जाने पर राजू ने उसे अपने घर बुलाकर बेइज्जत और अपमानित करने के बाद खम्भे से बांध कर पीट डाला। इससे आहत होकर उदय ने आत्महत्या कर ली। 

अत: यह प्रश्न उठता है कि आखिर कब तक हम समाज से जातपात की समस्या को नहीं मिटा पाएंगे और हमारे मन में खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने की भ्रांति बनी रहेगी। हमारे देश में सभी धर्म यही शिक्षा देते हैं कि सभी लोग एक ही भगवान के बनाए हुए हैं। नैतिक, धार्मिक और संवैधानिक लिहाज से भी सभी एक समान हैं। अत: ऐसा आचरण करने वाले लोगों को जब तक कठोर सजा नहीं मिलेगी तब तक यह कुरीति समाप्त नहीं हो सकती।—विजय कुमार 

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