हमारे ऐतिहासिक स्थलों की उपेक्षा बहुतायत की समस्या या आलस्य का परिणाम

Edited By ,Updated: 13 Jan, 2025 05:18 AM

the problem of neglecting our historical sites is abundance

महामारी के बाद अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन में वृद्धि लगभग एक वैश्विक स्वरूप ले चुकी है और जब विदेश यात्रा करने वाले भारतीयों की बात आती है तो कहानी बहुत अलग नहीं है। विदेश जाने वाले भारतीय यात्रियों की संख्या पूर्व कोविड स्तर से अधिक हो गई है। हालांकि...

महामारी के बाद अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन में वृद्धि लगभग एक वैश्विक स्वरूप ले चुकी है और जब विदेश यात्रा करने वाले भारतीयों की बात आती है तो कहानी बहुत अलग नहीं है। विदेश जाने वाले भारतीय यात्रियों की संख्या पूर्व कोविड स्तर से अधिक हो गई है। हालांकि बात जब भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की आती है तो तस्वीर उतनी रोमांचक नहीं दिखाई पड़ती।

पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2024 के पहले 6 महीनों में 47.78 लाख विदेशी पर्यटकों ने भारत का दौरा किया जो वर्ष 2023 की तुलना में 9.1 प्रतिशत अधिक है लेकिन 2019, जो कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित होने से पहले का वर्ष था, की इसी अवधि की तुलना में 9.8 प्रतिशत कम है। हालांकि इससे 132 लाख करोड़ की आमदनी हुई और 32.1 मिलियन लोगों को नौकरियां मिलीं। दूसरी ओर 2024 में फ्रांस में 89.4 मिलियन,स्पेन में 83.7 मिलियन, अमरीका में 79.3 मिलियन और चीन में 65.7 मिलियन पर्यटक आए। ‘वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम’ (डब्ल्यू.ई.एफ.) के 2024 यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक (टी.टी.डी.आई.) में भारत 119 देशों की सूची में 39वें नम्बर पर है। यह पूछने पर कि किन विशेषताओं के कारण वे छोटे से देश फ्रांस में जाना पसंद करते हैं तो पर्यटक वहां के ऐतिहासिक स्थलों, प्रतिष्ठित इमारतों, भोजन, वहां के शिल्प और कला तथा संग्रहालयों का उल्लेख करते हैं। इसी प्रकार स्पेन जाने वाले पर्यटकों द्वारा वहां की स्वच्छ हवा, पानी और दर्शनीय स्थलों को मुख्य आकर्षण बताया जाता है। 

भारत की बात करें तो हमारी एकमात्र उपलब्धि सिर्फ मैडीकल टूरिज्म है जिसमें हमारा विश्व में पांचवां स्थान है जबकि राष्ट्रीय पर्यटन की अन्य श्रेणियों में हमारा कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं है। भारत, जहां कदम-कदम पर इतिहास की छाप मौजूद है,दर्शनीय इमारतों की बहुतायत है और हमारे प्रत्येक राज्य के विविधतापूर्ण भोजन, नृत्य, कला, संस्कृति, जीवन शैली की अपनी एक अलग विशेषता है, फिर भी यहां विदेशों से पर्यटक क्यों नहीं आना चाहते? इसका सर्वप्रथम कारण है हमारे धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण की दृष्टिï से महत्वपूर्ण स्थलों पर स्वच्छता का अभाव। इसके अलावा एक बड़ा कारण है हमारी सरकारों का पर्यटन को बढ़ावा देने पर उतना ध्यान नहीं देना, जितना उन्हें देना चाहिए। ऐसे ही उपेक्षित स्थलों में से एक है दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर दूर हिसार के निकट स्थित हड़प्पा सभ्यता का स्थान राखीगढ़ी। यहां खुदाई के दौरान प्राप्त वस्तुओं में खेल-खिलौने, छलनी, विभिन्न औजार, पालतू पशुओं के अवशेष, तांबे और कांसे के सामान, पॉटरी, गहने और हड़प्पा कालीन लिपि युक्त मुद्राएं आदि शामिल हैं।

अब इस बात की भी पुष्टिï हो चुकी है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग न केवल खेलों के शौकीन थे बल्कि मनोरंजन के भी। वहां खुदाई में मिट्टी की ईंटों से बना एक स्टेडियम भी मिला है जिसमें ढलान युक्त सीढ़ीनुमा बैठने के स्थान तथा ठंड से बचने के लिए आग जलाने के स्थान भी हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि उस युग में आयोजन रात के समय भी चलते थे जबकि पाश्चात्य सभ्यताओं में रोम में कॉलेजियम तो थे परंतु वहां इस तरह के खेल आयोजन स्थलों के कोई अवशेष नहीं पाए गए। 
इसी प्रकार पंजाब के रोपड़ में भी एक इतना ही प्राचीन और महत्वपूर्ण स्थान है जहां सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित अवशेष मिले हैं जिसके बारे में रोपड़ में रहने वाले कम ही लोगों को जानकारी है। यदि कोई व्यक्ति गूगल से पता करके वहां पहुंच भी जाए तो वहां उसका मार्गदर्शन करने के लिए या किसी प्रकार की जानकारी देने वाला कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा। इसके निकट ही एक म्यूजियम है जिसके प्रवेश द्वार पर एक व्यक्ति बैठा रहता है। हालांकि म्यूजियम में प्रवेश का शुल्क 5 या 10 रुपए निर्धारित हैै। इस म्यूजियम में खुदाई के दौरान निकली हुई अनेक सुंदर मूर्तियां मौजूद हैं परंतु इन्हें देखने के लिए न कोई स्थानीय कला प्रेमी आता है और न कोई बाहरी पर्यटक क्योंकि किसी को इसके बारे में पता ही नहीं है कि वहां कितना अनमोल खजाना पड़ा है।

न केवल ऐतिहासिक बल्कि हमारे यहां धार्मिक पर्यटन को भी बहुत अधिक प्रोत्साहन दिया जा सकता है जैसे कम्बोडिया में मंदिरों के पर्यटन को बढ़ावा दिया जाता है। ऐसे में वाराणसी को नहीं भूलना चाहिए जहां चप्पे-चप्पे पर ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर हैं परंतु शहर में सफाई न होने के कारण यह शहर देश-विदेश के पर्यटकों को उतना आकॢषत नहीं कर पाया जितना आकर्षित कर सकता था। हम स्वयं को एक महान सभ्यता होने का दावा तो करते हैं परंतु इसके संरक्षण की ओर ध्यान नहीं देते हैं। हमारी धरोहर न केवल मंदिर हैं बल्कि हर धर्म के और हर समुदाय के और हर दौर के शासकों चाहे वे मुगल हों या अंग्रेज, द्वारा बनवाई गई इमारतें और अन्य दर्शनीय स्थान हैं जो पर्यटन को आकॢषत करने का बड़ा माध्यम बन सकते हैं। 

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