Edited By ,Updated: 29 May, 2024 05:16 AM
इन दिनों जहां देश के अधिकांश भागों में भारी गर्मी पड़ रही है तथा अनेक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, वहीं दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत में मौसम से पहले की वर्षा ने जल-थल की स्थिति पैदा कर दी है।
इन दिनों जहां देश के अधिकांश भागों में भारी गर्मी पड़ रही है तथा अनेक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, वहीं दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत में मौसम से पहले की वर्षा ने जल-थल की स्थिति पैदा कर दी है। मिजोरम के आईजोल जिले में 28 मई को वर्षा के दौरान पत्थर की खदान ढहने से 17 लोगों की मौत हो गई तथा 150 के लगभग कब्रें भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं। असम में भी तेज हवाओं एवं भारी वर्षा से 2 लोगों की मौत तथा 17 अन्य घायल हो गए। वहां कई इलाकों में खेत पानी में डूब गए हैं। केरल के अनेक भागों में लगातार तेज वर्षा और आंधी-तूफान ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है तथा 2 जिलों में रैड अलर्ट भी घोषित कर दिया गया है। कोच्चि के कई इलाके पानी में डूब गए हैं।
भारतीय मौसम विभाग के निदेशक ‘मृत्युंजय मोहपात्रा’ के मुताबिक इस क्षेत्र में 26 मई से मॉनसून का सफर शुरू हो गया है। दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून मालदीव के कुछ हिस्सों, बंगाल की खाड़ी के दक्षिण, निकोबार और दक्षिण अंडेमान सागर में आगे बढ़ चुका है और 3-4 दिनों में इसके केरल और पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में पहुंचने की संभावना है। मौसम विभाग के अनुसार मॉनसून के महाराष्ट्र के मुम्बई में 10-11 जून को, मध्यप्रदेश में 15 जून को और उत्तर प्रदेश में 18-20 जून के बीच और 25 जून तक हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड-कश्मीर तथा दिल्ली में 29 जून को पहुंचने के बाद 8 जुलाई तक यह पूरे देश को कवर कर लेगा।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष देश में 1 जून से 30 सितम्बर तक मॉनसून सीजन में 104-106 प्रतिशत तक वर्षा होने का अनुमान है। इसके साथ ही मौसम विज्ञानियों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि विश्व में जलवायु परिवर्तन से बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है। एक चिंताजनक बात यह भी है कि पिछले कई दशकों से भारत बाढ़ का प्रकोप झेल रहा है। प्राकृतिक आपदाओं, विशेषकर बाढ़ के कारण मृत्यु दर के मामले में भारत विश्व के सर्वाधिक कुप्रभावित देशों में से एक है। हमारे देश में बाढ़ के परिणामस्वरूप औसतन प्रतिवर्ष 2765 मौतें होती हैं और इसके अलावा सार्वजनिक सम्पत्ति की भी भारी क्षति होती है। हाल ही के एक अध्ययन के अनुसार देश में बाढ़ के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील जिलों में से 17 गंगा बेसिन में और 3 जिले ब्रह्मपुत्र बेसिन में हैं।
इसी बीच एक अन्य रिपोर्ट में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’(इसरो) के हवाले से बताया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण हिमालय में बर्फ तेजी से पिघल रही है और ग्लेशियरों से बनी झीलों की संख्या बढऩे के साथ-साथ इनके आकार में भी वृद्धि हो रही है। 676 झीलों में से 601 झीलों का आकार दोगुने से भी अधिक हो गया है। इनमें से 130 झीलें भारत में हैं, जिनमें से 65 सिंधु नदी घाटी में, 7 गंगा नदी घाटी में और 58 ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में स्थित हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत-पाकिस्तान में ग्लेशियरों से बनी झीलों में भीषण बाढ़ का खतरा लगातार बढ़ रहा है। यदि इसी तरह यह प्रक्रिया लगातार चलती रही तो विनाशकारी बाढ़ आने में देर नहीं लगेगी।
इस बीच केंद्रीय जल आयोग की साप्ताहिक रिपोर्ट में बताया गया है कि हालांकि इस वर्ष पौंग और रंजीत सागर डैमों में जलस्तर गत वर्ष की तुलना में कम है परन्तु भाखड़ा डैम में जल स्तर पिछले वर्ष की तुलना में कुछ अधिक है। इसका कारण नदियों में पानी के बेहतर प्रवाह को बताया जा रहा है। इसके साथ ही 20 मई से ऊपरी पहाडिय़ों पर बर्फ पिघलने का मौसम शुरू हो चुका है जिससे डैमों में पानी की मात्रा बढ़ेगी। अत: अब जबकि इस वर्ष सामान्य से अधिक वर्षा होने का अनुमान लगाया जा रहा है, संबंधित राज्य सरकारों को अभी से ही अपने बांधों, नदियों, जलाशयों आदि की सफाई और बाढ़ से बचाव के प्रबंधों में चुस्ती और तेजी लाने की जरूरत है ताकि मॉनसून के आने पर अधूरे प्रबंध बाढ़ से विनाश का बड़ा कारण न बन जाएं।—विजय कुमार