‘तीसरे विश्व युद्ध का मंडरा रहा खतरा’ ‘दूसरे विश्व युद्ध की कुछ आ रही यादें’

Edited By ,Updated: 23 Nov, 2024 05:30 AM

the threat of the third world war looms

आज के हालात को देखते हुए ऐसा लगता है कि हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। अब तक 2 विश्व युद्ध हो चुके हैं। पहला विश्व युद्ध 28 जुलाई, 1914 से 11 नवम्बर, 1918 तक चला और इसमें लगभग 9 करोड़ सैनिकों तथा 1.3 करोड़ नागरिकों की मृत्यु हुई थी।

आज के हालात को देखते हुए ऐसा लगता है कि हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। अब तक 2 विश्व युद्ध हो चुके हैं। पहला विश्व युद्ध 28 जुलाई, 1914 से 11 नवम्बर, 1918 तक चला और इसमें लगभग 9 करोड़ सैनिकों तथा 1.3 करोड़ नागरिकों की मृत्यु हुई थी। दूसरा विश्व युद्ध 1939 से 1945 के बीच हुआ। मानव इतिहास के इस सबसे भयानक युद्ध में 70 देशों की जल, थल तथा वायु सेनाएं शामिल थीं।  जिसमें मित्र देश ब्रिटेन, अमरीका, सोवियत संघ एवं फ्रांस आदि एक ओर तथा जर्मनी, इटली और जापान आदि देश दूसरी ओर थे। 

इस युद्ध में भी पहले विश्व युद्ध की भांति ही जान-माल की भारी तबाही हुई और दोनों पक्षों के लगभग 7 से साढ़े 8 करोड़ सैनिकों तथा आम नागरिकों की मौत हुई थी और इस युद्ध में मित्र देशों की विजय हुई थी। तब मेरी आयु 7 वर्ष थी और उन दिनों हम लाहौर में मोहन लाल रोड पर रहते थे। एक दिन मैं अपने घर के बाहर खड़ा था कि तभी एक हॉकर उर्दू दैनिक मिलाप का ‘जमीमा’ (एक पेज) हाथों में लहराते हुए और यह कहता हुआ वहां से गुजरा कि दूसरी भीषण जंग शुरू। उन दिनों सब अखबार उर्दू में छपा करते थे और मुझे उर्दू नहीं आती थी लेकिन मैंने एक पैसा देकर वह जमीमा खरीदा और लाकर पिता लाला जगत नारायण जी को दे दिया जो उस समय दफ्तर में ही बैठे थे।  उन दिनों टी.वी. नहीं था परंतु रेडियो का प्रचलन शुरू हो चुका था और  रेडियो पर ही सब लोग गीत और खबरें सुना करते थे। रात को 9 बजे  ‘इट इज लंदन कॉलिंग’ आवाज के साथ युद्ध संबंधी तथा अन्य खबरें शुरू हो जातीं जिसे परिवार के सब लोग सुनते थे।

उस समय पिता जी लाहौर कांग्रेस के प्रधान थे और हमारे घर के पिछवाड़े में स्थित ‘लाहौरी गेट’ मैदान में कांग्रेस द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभाएं हुआ करती थीं, जहां हम (मैं तथा बड़े भाई स्व. रमेश चंद्र जी) तथा कुछ वर्कर लोगों के बैठने के लिए दरियां बिछाने में मदद करते थे। उन बैठकों में एक प्रसिद्ध शायर ‘उस्ताद दामन’ को भी बुलाया जाता था जो 10 रुपए लेकर उनमें आते और अपना कलाम पढ़ा करते थे। चूंकि उन दिनों भारत पर अंग्रेजों का शासन था इसलिए दूसरे विश्व युद्ध के दिनों में कांग्रेस की बैठकों में पढ़ा जाने वाला उनका यह शे’र बड़ा मशहूर हुआ था कि ‘कदम जर्मन का बढ़ता है, फतह इंगलिश की होती है।’ अब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के 79 वर्ष बाद तीसरा विश्व युद्ध होने की आशंका बढ़ गई है क्योंकि रूस ने परमाणु युद्ध में इस्तेमाल की जाने वाली अत्यंत घातक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आई.सी.बी.एम.) भी 21 नवम्बर को यूक्रेन पर दाग दी है। 

इसी तरह के खतरे को भांपते हुए ही 18 नवम्बर, 2024 को रियो-डी-जिनेरियो में विश्व के 20 प्रमुख देशों के नेताओं ने युद्ध ग्रस्त गाजा के लिए अधिक सहायता और पश्चिम एशिया तथा यूक्रेन में शत्रुता एवं युद्ध समाप्त करने का आह्वïान किया है। रूस के घनिष्ठï मित्र चीन के राष्टï्रपति जिनपिंग और ब्राजील के राष्टï्रपति लूला डी सिल्वा ने भी यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए आवाज उठाने की अपील की है। 21 नवम्बर को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी कहा है, ‘‘ऐसा लगता है कि हम (तीसरे) विश्व युद्ध के करीब हैं, अत: भगवान गौतम बुद्ध का दिखाया शांति का मार्ग ही स्थिरता का एकमात्र साधन है। आज दुनिया एक बड़ी समस्या का सामना कर रही है। यह ऐसा समय है जब हमें विश्व शांति की आकांक्षा करनी चाहिए। भगवान गौतम बुद्ध हमें प्रेरित कर सकते हैं।’’

उल्लेखनीय है कि मगध सम्राट ‘अशोक’ ने ‘कलिंगा’ के युद्ध के बाद अपराध बोध से ग्रस्त होकर हसा का परित्याग कर बौध धर्म ग्रहण कर लिया  तथा  ‘अशोक’ ने अपनी पुत्री ‘संघमित्रा’ तथा पुत्र ‘महेंद्र’ को अहिंसा का प्रचार करने के लिए ‘श्रीलंका’ भेजा था। गौतम बुद्ध का कहना था कि ‘‘सबको अपने जैसा समझ कर न किसी को मारें और न मारने को प्रेरित करें। जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि तुम स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो। फिर जीत हमेशा तुम्हारी होगी। इसे तुमसे कोई नहीं छीन सकता।’’आज के हालात में गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर चल कर विश्व पर मंडरा रहे इस संकट को टालने में सफलता मिल सकती है। यह जीवन एक बार ही मिलता है अत: इसे अच्छी तरह बिताने और जीवन के आनंद भोगने के लिए विश्व में शांति का होना आवश्यक है।—विजय कुमार 

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