जम्मू-कश्मीर में चुनावों को लेकर विभिन्न दलों में मचा घमासान और दल-बदल

Edited By ,Updated: 08 Sep, 2024 05:28 AM

there is a ruckus and defection among various parties regarding elections in j k

अनुच्छेद 370 और 35ए रद्द किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की रणभेरी बज चुकी है और 18 व 25 सितम्बर तथा 1 अक्तूबर को मतदान होने जा रहा है। इन चुनावों में एक खास बात यह भी है कि इस बार 18 कश्मीरी पंडित भी चुनाव लड़ रहे हैं।

अनुच्छेद 370 और 35ए रद्द किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की रणभेरी बज चुकी है और 18 व 25 सितम्बर तथा 1 अक्तूबर को मतदान होने जा रहा है। इन चुनावों में एक खास बात यह भी है कि इस बार 18 कश्मीरी पंडित भी चुनाव लड़ रहे हैं। चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही राज्य में दल-बदल का खेल भी शुरू हो गया है तथा कई नेता एवं कार्यकत्र्ता अपनी पहली पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल हो रहे हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर में नैकां और कांग्रेस ने गठबंधन किया है लेकिन टिकट न मिलने से नाराज इन दोनों दलों के एक दर्जन से अधिक नेता बागी तेवर अपनाते हुए गठबंधन के अधिकृत उम्मीदवारों के विरुद्ध निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में मैदान में उतर आए हैं। 

इस बीच नैकां के घोषणा पत्र को लेकर भी घमासान मच गया है, जिसमें जेलों में बंद पत्थरबाजों और अलगाववादी नेताओं की रिहाई तथा अनुच्छेद 370 की वापसी शामिल है। जैसे कि इतना ही काफी नहीं था उमर अब्दुल्ला द्वारा अफजल गुरु बारे दिए इस बयान को लेकर भी बवाल मच गया है कि  ‘‘अफजल गुरु की फांसी में जम्मू-कश्मीर सरकार की कोई भागीदारी नहीं थी। अगर उसकी फांसी में जम्मू-कश्मीर सरकार की मंजूरी की जरूरत पड़ती तो हम नहीं देते।’’ 

महबूबा मुफ्ती की पार्टी पी.डी.पी. के मुख्य प्रवक्ता सुहेल बुखारी और दक्षिण कश्मीर के त्राल से डी.डी.सी. सदस्य हरबख्श सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। सुहेल बुखारी का कहना है कि मुश्किल समय में पी.डी.पी. के साथ खड़े रहने वालों को दरकिनार किया जा रहा है। कांग्रेस छोड़ कर अपनी अलग ‘डैमोक्रेटिक प्रोग्रैसिव आजाद पार्टी’ (डी.पी.ए.पी.) बनाने वाले गुलाम नबी आजाद से कोकरनाग क्षेत्र के प्रभावशाली आदिवासी नेता हारून चौधरी ने नाता तोड़ लिया है। भाजपा में भी असंतोष है। यह भी रुठों को मना रही है और इसी कारण अभी उसने कुछ सीटों पर उम्मीदवार घोषित नहीं किए। भाजपा राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांगेगी और कांग्रेस ने भाजपा के विरुद्ध आरोप पत्र तैयार किया है। 

इन चुनावों में भाजपा 55 प्लस के नारे के साथ मैदान में है और दावा कर रही है कि सरकार उनकी बनेगी। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि तीन राजनीतिक परिवारों को छोड़ कर उनकी पार्टी के अन्य दलों के साथ समझौते के विकल्प खुले हैं। वर्ष 1987 से प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी भी 37 वर्ष बाद चुनाव लड़ेगी। इस पार्टी के चुनाव में उतरने से सबसे बड़ी परेशानी नैशनल कान्फ्रैंस को हुई है और उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि जेल में बंद लोगों को चुनाव लड़वाया जा रहा है। लोकतंत्र के इस महोत्सव को लेकर जोश है जिसमें राष्ट्रीय दलों के अलावा क्षेत्रीय दल और निर्दलीय भी भारी संख्या में अपनी ताल ठोक रहे हैं। 

कश्मीर में चुनाव को लेकर अलगाववादियों द्वारा हड़ताल या बहिष्कार का कोई कैलेंडर (गलत ऐलान) जारी नहीं हुआ है, जैसा कि 2014 से पहले होता था। हालांकि आतंकवादियों द्वारा इन चुनावों में बाधा डालने की आशंका व्यक्त की जा रही है परंतु लोकसभा के चुनाव में जिस प्रकार कश्मीर की जनता ने मतदान में भाग लिया, उससे उम्मीद व्यक्त की जा रही है कि विधानसभा चुनाव भी शांतिपूर्वक ही होंगे। जम्मू-कश्मीर में 4 लाख के लगभग युवा मतदाता इन चुनावों में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। 10 वर्ष बाद होने जा रहे विधानसभा चुनावों में अनेक उच्च शिक्षित उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे हैं। इनमें कई डाक्टर, पी.एचडी., एम.टैक और विदेशों में पढ़ाई किए हुए उम्मीदवार शामिल हैं। 

बहरहाल इन चुनावों में अच्छी बात यह है कि राज्य में राजनीतिक गतिविधियां शुरू हुई हैं और लोगों को चुनी हुई सरकार मिलेगी और अफसरशाही से मुक्ति, ताकि लोग अपनी बात जनप्रतिनिधि तक रख सकें। फिलहाल 8 अक्तूबर को नतीजे आने के बाद पता चलेगा कि जम्मू-कश्मीर की जनता ने किस के पक्ष में फतवा दिया है।—विजय कुमार 

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