यह हुई न बात !! लोगों ने पुल-सड़कें बनाईं! पूर्व छात्र ने शिक्षा हेतु दिया धन व एक महिला ने भवन!

Edited By ,Updated: 08 Aug, 2024 05:18 AM

this is great  people built bridges and roads

हालांकि लोग सरकार से सब तरह की सुविधाओं की उम्मीद करते हैं परंतु कई बार मजबूरियों के चलते सरकार के लिए उनकी मांग तुरंत पूरी कर पाना संभव भी नहीं हो पाता।ऐसे में चंद लोग देश और समाज के प्रति अपना कत्र्तव्य समझ कर खुद आगे आते हैं और जो काम सरकार को...

हालांकि लोग सरकार से सब तरह की सुविधाओं की उम्मीद करते हैं परंतु कई बार मजबूरियों के चलते सरकार के लिए उनकी मांग तुरंत पूरी कर पाना संभव भी नहीं हो पाता। ऐसे में चंद लोग देश और समाज के प्रति अपना कत्र्तव्य समझ कर खुद आगे आते हैं और जो काम सरकार को करना चाहिए वे खुद करके एक मिसाल पेश करते हैं। अपने दम पर पुल और सड़कें बनाने तथा शिक्षा के लिए धन और भवन देने के ऐसे ही प्रेरक उदाहरण पाठकों की जानकारी के लिए निम्न में दर्ज हैं : 

* हिमाचल प्रदेश में कुल्लू जिले में 1 अगस्त को अचानक आई बाढ़ में ‘मलाणा’ को दूसरे गांव से जोडऩे वाली ‘मलाणा’ खड्ड पर बना पुल बह गया था। 
प्रदेश में व्याप्त आपदा के दृष्टिगत स्थानीय प्रशासन से सहायता मिलने में देरी को भांपते हुए इंतजार करने और हाथ पर हाथ धर कर बैठने की बजाय 300 गांव वासियों (प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति) ने गांव को जोडऩे वाले अस्थायी पुल का स्वयं ही निर्माण करके अपनी समस्या सुलझा ली, जिससे अब उन्हें आने-जाने की सुविधा हो गई है।
लोगों के श्रम दान द्वारा निर्मित इस अस्थायी पुल को ही पार करके 6 अगस्त को डाक्टरों की टीम इलाका वासियों की सेहत की जांच करने के लिए ‘मलाणा’ पहुंचने में सफल हो पाई। 

* ऐसा ही एक अन्य उदाहरण झारखंड में रांची के ‘रातू’ ब्लॉक के ‘मालटोंटी’ गांव के नागरिकों ने पेश किया है। इस गांव को दूसरे गांवों से जोडऩे वाली सड़क टूट जाने के कारण जब यह पैदल चलने लायक भी न रही और जन प्रतिनिधियों ने उनकी गुहार नहीं सुनी तो स्वयं ही उन्होंने श्रमदान करके इस सड़क को चलने लायक बना दिया।
* झारखंड के लातेहार में भी ‘सरईडीह’ गांव के निवासियों ने सरकारी तंत्र की उदासीनता के चलते श्रम दान द्वारा कच्ची सड़क का निर्माण किया है। गांव के लोगों के अनुसार गांव में सड़क और अन्य सुविधाएं न होने के कारण यहां के युवक-युवतियों के विवाह के लिए कोई पूछने भी नहीं आता। सड़क बनने से शायद अब उनकी समस्या कुछ सुलझ जाए। 
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए दानवीरता के निम्न प्रेरणादायक उदाहरण भी हाल ही में सामने आए हैं : 

* भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मद्रास के पूर्व छात्र ‘डा. कृष्णा चिवुकुला’ ने अपने इस शिक्षा संस्थान को 228 करोड़ रुपए का दान देकर एक उदाहरण पेश किया है।
डा. कृष्णा द्वारा दिया गया यह दान भारत के इतिहास में किसी भी शैक्षणिक संस्थान को मिला अब तक का सबसे बड़ा दान है।
उनके इस योगदान को मान्यता प्रदान करते हुए संस्थान के प्रबंधकों ने अपने एक एकैडमिक ब्लॉक का नाम ‘कृष्णा चिवुकुला ब्लाक’ रखा है। दान में मिली इस रकम का इस्तेमाल संस्थान द्वारा कई उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाएगा। 
* दानशीलता का एक अन्य उदाहरण छत्तीसगढ़ के ‘गरियाबंद’  जिले के ‘मुड़ा’ गांव में एक दानवीर महिला गुनोबाई ने प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मिला मकान एक सरकारी प्राइमरी स्कूल को दान करके पेश किया है। उल्लेखनीय है कि इस स्कूल की इमारत बनाने की मंजूरी वर्ष 2006 में दी गई थी, लेकिन इमारत नहीं बनी। स्कूल की इमारत जर्जर होने के कारण बच्चों की सुरक्षा के लिए हमेशा खतरा बना रहता था। अब यहां अनेक बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और गुनोबाई स्वयं अपने बेटे के साथ एक पुराने मकान में ही रह रही हैं। 

अपने इस कदम के संबंध में गुनोबाई का कहना है कि ‘‘बच्चों की तकलीफ को देख कर अपना पी.एम. आवास स्कूल को देकर मुझे ऐसा लगा कि मेरे सारे कष्टï दूर हो गए।’’ इंसान के दृढ़ संकल्प के उक्त उदाहरण जहां यह सिद्ध करते हैं कि व्यक्ति यदि हिम्मत से काम ले तो कुछ भी कर सकता है, वहीं यह सरकार के मुंह पर एक तमाचा भी है कि जो काम सरकारों को करने चाहिएं वे अब आम जनता निराश होकर खुद कर रही है।—विजय कुमार

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