Edited By ,Updated: 23 Mar, 2025 05:27 AM

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस ‘राम मनोहर नारायण मिश्र’ द्वारा सुनाए गए एक फैसले से देश भर में बवाल मच गया है। एक मामले में अभियोजन पक्ष के अनुसार 10 नवम्बर, 2021 को आरोपियों पवन व आकाश ने 11 वर्षीय नाबालिग पीड़िता के वक्षों को पकड़ा, आकाश ने...
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस ‘राम मनोहर नारायण मिश्र’ द्वारा सुनाए गए एक फैसले से देश भर में बवाल मच गया है। एक मामले में अभियोजन पक्ष के अनुसार 10 नवम्बर, 2021 को आरोपियों पवन व आकाश ने 11 वर्षीय नाबालिग पीड़िता के वक्षों को पकड़ा, आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ा व एक पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की थी। ‘जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र’ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘‘ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता के विरुद्ध पैनेट्रेटिव सैक्सुअल असाल्ट करने की कोशिश की हो, अत: आरोपियों के विरुद्ध बलात्कार अथवा बलात्कार के प्रयास का मामला नहीं बनता।’’
सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ‘न्यायाधीश संजीव खन्ना’ को लिखे पत्र में सीनियर ‘एडवोकेट शोभा गुप्ता’ ने कहा है कि ‘जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र’ द्वारा दिए गए उक्त फैसले से स्पष्टï है कि उनके द्वारा कानून की व्याख्या पूरी तरह गलत, असंवेदनशील और अनुत्तरदायित्व पूर्ण है जो समाज को बहुत गलत संदेश देती है। अत: संबंधित जज को क्रिमिनल रोस्टर से हटा देना चाहिए। राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष ‘रेखा शर्मा’ ने कहा है कि ‘‘यदि जज ही संवेदनशील नहीं होंगे तो हमारी बच्चियों का क्या होगा। सुप्रीमकोर्ट को इस मामले में दखल देना चाहिए।’’
उल्लेखनीय है कि 19 नवम्बर, 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बैंच का एक फैसला पलटते हुए सुप्रीमकोर्ट स्पष्टï कर चुकी है कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य यौन हमला माना जाएगा। इसके प्रकाश में भी यह फैसला गलत है। सुप्रीमकोर्ट ने पहले भी जजों को छोटी-छोटी गलतियों पर फटकार लगाई है और यहां तक कि 4 जजों वी. रामास्वामी, सौमित्र सेन, जे.बी. पारदीवाला और पी.डी. दिवाकरन के विरुद्ध महाभियोग भी लाया जा चुका है। अत: इस मामले में भी सुप्रीमकोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर मामला नए सिरे से खोल कर पीड़िता को न्याय देना चाहिए। इस फैसले से भारतीय न्यायपालिका की छवि को आघात लगा है।—विजय कुमार