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अमरीका के चुनावों में हिंसा नेताओं की उकसाहट का परिणाम

Edited By ,Updated: 04 Nov, 2024 04:50 AM

violence in us elections is the result of incitement by politicians

अमरीका के राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान 5 नवम्बर को होने जा रहा है जिसके लिए डैमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस तथा रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प ने पूरा जोर लगा रखा है। डोनाल्ड ट्रम्प ने जहां इन चुनावों में एक बार फिर अपना पुराना...

अमरीका के राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान 5 नवम्बर को होने जा रहा है जिसके लिए डैमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस तथा रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प ने पूरा जोर लगा रखा है। डोनाल्ड ट्रम्प ने जहां इन चुनावों में एक बार फिर अपना पुराना नारा ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ दोहराया है तो कमला हैरिस ने नारा ‘न्यू वे फारवर्ड’ दिया है।

जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आते गए, दोनों उम्मीदवारों के बीच जुबानी जंग भी तेज होती चली गई है। जो बाइडेन ने ट्रम्प के समर्थकों की तुलना ‘कचरे’ से की है वहीं ट्रम्प ने कमला हैरिस को मूर्ख, अक्षम, स्लो और बेहद कम आई क्यू वाली बताया है। कमला हैरिस ने भी ट्रम्प को तुच्छ तानाशाह, अस्थिर और बदला लेने के लिए जुनूनी बताया है। 

चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में कभी कमला हैरिस को तो कभी डोनाल्ड ट्रम्प को आगे बताया जा रहा है, लिहाजा यह कहना काफी मुश्किल है कि विजय किसकी होगी। इस बीच आज विश्व में कुछ ऐसा माहौल बन गया है कि चाहे वह ब्राजील, श्रीलंका, इथियोपिया, उत्तरी आयरलैंड  या अमरीका हो, चुनाव हिंसक होते जा रहे हैं। जहां तक अमरीका का सम्बन्ध है, शिकागो विश्वविद्यालय के एक प्रोफैसर राबर्ट पैप का कहना है कि ‘‘वास्तव में अमरीका इस समय राजनीतिक ङ्क्षहसा के एक असाधारण दौर से गुजर रहा है।’’ 

इसके कारणों में से एक तो है बहुसंख्यकों तथा अल्पसंख्यकों के बीच विभाजन। इसीलिए जब भी कोई डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों से पूछता है कि उन्हें वे किन कारणों से वोट देंगे तो उनका उत्तर होता है कि ट्रम्प आप्रवासियों को अमरीका में आने से रोक कर गोरों का वर्चस्व कायम करेंगे। इस प्रकार एक तो यह अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच विभाजन का मामला है और दूसरे हर राजनीतिक दल क्षेत्र विशेष में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक मतदाताओं के बीच अपने समर्र्थकों की शिनाख्त करके उनके बीच पैठ बनाना चाहता है। 

इसके बाद तीसरे और चौथे स्थान पर आता है बेरोजगारी और देश की सुरक्षा का मामला। लोगों का कहना है कि जो बाइडेन युग में युद्ध की स्थिति पैदा हुई और हो सकता है कि ट्रम्प युद्ध को रोकने में सफल हो जाएं जिससे  देश की अर्थव्यवस्था ठीक होगी, देश की स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार होगा। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि जब धर्म और अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक के आधार पर मतदाताओं का विभाजन किया जाता है तो लोगों में एक दहशत का माहौल पैदा होता है और ये सारी चीजें इस बार अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में मुख्य भूमिका निभा रही हैं।

यह भी कि एक विकसित देश होने के बावजूद 1776 में स्वतंत्रता मिलने से लेकर अभी तक कोई महिला अमरीका की राष्ट्रपति नहीं बन सकी है। लोगों के एक वर्ग का यह भी कहना है कि देश का राष्ट्रपति गोरों की सर्वोच्चता को कायम रखने वाला होना चाहिए, काला नहीं परंतु इससे इस प्रश्र का उत्तर नहीं मिलता कि देश में चुनावी हिंसा क्यों हो रही है?

मुख्यत: यह  दलों द्वारा अपने-अपने समर्थकों को दी जाने वाली उकसाहट का ही परिणाम है। उनका कहना है कि किसी भी नेता के ये कट्टïर समर्र्थक ही चुनावी खुराफात करते तथा हिंसा के लिए प्रेरित होते हैं।जैसे कि राष्ट्रपति के पिछले चुनावों में 6 जनवरी, 2021 को डोनाल्ड ट्रम्प की उकसाहट पर उनके लगभग 2000 समर्थकों ने बैरीकेड तोड़ दिए। कैपीटोल (संसद) तथा वाशिंगटन डीसी की पुलिस से युद्ध किया और अंतत: इमारत के अंदर घुस कर अमरीकी सांसदों को निशाना बनाया तथा वहां तोडफ़ोड़ कर डाली थी। वास्तव में राजनीतिक हिंसा का समर्थन अब आम बात हो गई है। इसका समर्थन अब अमरीकियों की सोच की मुख्यधारा का हिस्सा बन गया है तथा शांतिपूर्ण साधनों के नाकाम होने पर राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक सामान्य उपकरण बन गया है। 

इसी का परिणाम है कि जुलाई में एक बंदूकधारी ने एक चुनाव प्रचार रैली में डोनाल्ड ट्रम्प पर गोली चला दी, जिसमें एक नागरिक मारा गया, जबकि ट्रम्प तथा 3 अन्य को घायल कर दिया था। इसी तरह सितम्बर में फ्लोरिडा के ‘वैस्ट पाम बीच’ में ट्रम्प की हत्या के प्रयास के लिए एक अन्य व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था। कुल मिलाकर यह कहना मुश्किल है कि अमरीका तथा विश्व के अनेक देशों में चुनावों के दौरान शुरू हुआ ङ्क्षहसा का रुझान राजनीति को कहां लेकर जाएगा। 

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