Edited By ,Updated: 16 Oct, 2024 05:52 AM
भारत को दुनिया का इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की मुहिम ‘मेक इन इंडिया’ के 10 साल पिछले महीने पूरे हुए । मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर को बढ़ावा देने की ऐसी तमाम कोशिशों के बावजूद इस सैक्टर का देश की अर्थव्यवस्था में योगदान 17 फीसदी के आसपास अटका...
भारत को दुनिया का इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की मुहिम ‘मेक इन इंडिया’ के 10 साल पिछले महीने पूरे हुए । मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर को बढ़ावा देने की ऐसी तमाम कोशिशों के बावजूद इस सैक्टर का देश की अर्थव्यवस्था में योगदान 17 फीसदी के आसपास अटका है। ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में भारत की केवल 2.8 फीसदी हिस्सेदारी चीन जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले बहुत पीछे है। ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में भारत को मजबूत करने के लिए ‘कैपिटल गुड्स’ इंडस्ट्री, जैसे मशीन टूल्स, टैक्सटाइल मशीनरी, इलैक्ट्रिकल उपकरण, प्रोसैसिंग प्लांट उपकरण, कंस्ट्रक्शन व माइनिंग मशीनरी के देश में उत्पादन पर जोर देने की जरूरत इसलिए है, ताकि इनके इंपोर्ट पर निर्भरता घटाई जा सके। देश के मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में 12 फीसदी ‘कैपिटल गुड्स’ के उत्पादन का जी.डी.पी. में केवल 2 फीसदी योगदान है। 80 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देने वाली कैपिटल गुड्स इंडस्ट्री को मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाने के लिए चीन, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और जापान जैसे देशों की औद्योगिकीकरण रणनीतियों से सबक लेने की जरूरत है।
भारत के कैपिटल गुड्स मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में पिछले दशक के दौरान साल-दर-साल केवल 1.1 प्रतिशत की वृद्धि के कारण इंपोर्ट लगभग दोगुना बढ़ा है। तमाम सब सैक्टरों में कैपिटल गुड्स का भारत से एक्सपोर्ट के मुकाबले इंपोर्ट लगभग 3 गुना अधिक है। हालांकि कोरोना के बाद सरकारी पूंजीगत खर्च, इंफ्रास्ट्रक्चर डिवैल्पमैंट व बढ़ते डिजिटलीकरण की वजह से कैपिटल गुड्स सैक्टर की 12 फीसदी की मजबूत बढ़ोतरी को देखते हुए केंद्र सरकार के हैवी इंडस्ट्री विभाग ने नई कैपिटल गुड्स पॉलिसी बनाने के लिए कारोबारियों के साथ सलाह-मशविरा शुरू किया है। नई पॉलिसी को नई सोच और केंद्रित दृष्टिकोण के साथ कारगर ढंग से लागू करने के लिए 6 पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है।
पहला : नैशनल गुड्स पॉलिसी 2016 के व्यापक विश्लेषण में वर्तमान व भविष्य के उत्पादन को ध्यान में रखते हुए टैक्नोलॉजी, इनोवेशन और स्किल डिवैल्पमैंट पर जोर देने की जरूरत है। हाईटैक मैन्युफैक्चरिंग, इलैक्ट्रिक व्हीकल मैन्युफैक्चरिंग और ग्रीन एनर्जी के लिए आवश्यक मशीनरी की डिमांड व सप्लाई का अंतर कम करने के लिए पुराने व नए दोनों तरह के उद्योगों के लिए इंसैंटिव व कारगर रणनीति महत्वपूर्ण है।
दूसरा : बड़ी भारतीय कंपनियों और एस.एम.ईज के विस्तार व इन्नोवेशन के दम पर डोमैस्टिक डिमांड पूरी करने से इंपोर्ट पर निर्भरता घटाई जा सकती है। उन हाईटैक उभरते उद्योगों पर ध्यान देने की जरूरत है, जो इन्नोवेशन, आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) और मशीन लॄनग के जरिए भारतीय कंपनियों के लिए वैश्विक सांझेदारी की राह खोलते हैं। ग्लोबल कंपनियों के साथ गठबंधन को बढ़ावा देने के लिए सरकार सब्सिडाइज्ड लोन, एस.एम.ईज के लिए टैक्नोलॉजी इन्नोवेशन फंड, बड़े पैमाने पर निवेश के लिए आर. एंड डी. फंड और हाईटैक उद्योगों के लिए प्रोडक्शन ङ्क्षलक्ड इंसेटिव (पी.एल.आई.) स्कीम जैसी प्रोत्साहन स्कीमों की पेशकश कर सकती है।
तीसरा : एस.एम.ईज सैक्टर में टैक्नोलॉजी अपग्रेडेशन इंसैंटिव के लिए पूंजी निवेश की सीमा तय की गई है। इसलिए कई छोटे हाईटैक उद्योगों में अधिक पूंजी निवेश की जरूरत को ध्यान में रखते हुए भारत को चीन, दक्षिण कोरिया व जर्मनी के ऐसे उद्योगों में निवेश के बैंचमार्क को लागू कर पूंजी निवेश सीमा बढ़ाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। यह पहल न केवल अधिक निवेश को प्रोत्साहित करेगी, बल्कि इससे इन्नोवेशन व विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
चौथा : पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.) को व्यवस्थित करने से कैपिटल गुड्स का डोमैस्टिक प्रोडक्शन बढ़ाया जा सकता है। चीन की तर्ज पर स्वदेशी उत्पादकों के लिए सरकार का अटूट समर्थन लोकल मशीनरी की मांग बढ़ाएगा, जिससे इंपोर्ट पर निर्भरता घटेगी। इनर्वेटेड ड्यूटी टैक्स स्ट्रक्चर जैसे व्यवधान का समाधान जरूरी है क्योंकि डोमैस्टिक प्रोडक्शन के लिए ऊंची कीमतों पर इंपोर्टेड कच्चे माल के कारण घरेलू निर्माताओं को नुकसान हो रहा है।
पांचवां : हाईटैक मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में निवेश आकॢषत करने के लिए हाईटैक कैपिटल गुड्स मैन्युफैक्चरिंग जोन स्थापित करने की जरूरत है। ज्वाइंट वैंचर या स्ट्रेजिक एक्विजिशन के जरिए केंद्र सरकार उन हाईटैक प्रोडक्ट्स को बढ़ावा दे सकती है, जो बेहतर क्वालिटी के प्रति सजग मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर के लिए जरूरी हैं। मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर के लिए पी.एल.आई. स्कीम, टैक्स छूट और टैक्स फ्री जोन जैसे इंसैंटिव महत्वपूर्ण होंगे। इस पहल से ‘ग्रीन एनर्जी’ यानी प्रदूषण मुक्त बिजली उत्पादन जैसे ग्रीन हाइड्रोजन, सोलर और विंड प्रोजैक्ट्स में नॉर्वे जैसे देशों के साथ सहयोग से ग्रीन एनर्जी उत्पादक उद्योगों को लाभ मिल सकता है।
छठा : आर. एंड डी. में निवेश इन्नोवेशन व कंपीटिटवनैस को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है। चीन की तरक्की प्राइवेट सैक्टर के आर. एंड डी. में निवेश के असर को दिखाती है। वहां की कंपनियों की वैश्विक आर. एंड डी. निवेश में हिस्सेदारी 1990 के दशक में 2 फीसदी से बढ़कर 2017 में 27 फीसदी हो गई, जबकि पिछले 25 वर्षों में ग्लोबल आर. एंड डी. में भारत की हिस्सेदारी 1.8 प्रतिशत से बढ़कर केवल 2.9 प्रतिशत हुई है।
सैंटर ऑफ एक्सीलैंस : रिसर्च एंड डिवैल्पमैंट में निवेश महत्वपूर्ण है। वर्ष 2016 में हैवी इंडस्ट्री विभाग ने आई.आई.टी. मद्रास और इंडियन मशीन टूल्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के सहयोग से स्थापित ‘सैंटर ऑफ एक्सीलैंस इन मशीन टूल्स एंड प्रोडक्शन टैक्नोलॉजी’ के आशाजनक परिणाम रहे। इनोवेशन व कंपीटिटवनैस को बढ़ावा देने के लिए ऐसे और अधिक सैंटर स्थापित किए जाने चाहिएं।
आगे की राह : भारत के कैपिटल गुड्स सैक्टर में निवेश आकॢषत करने की अपार क्षमता है। ग्लोबल स्तर पर मजबूत कैपिटल गुड्स सैक्टर का विस्तार ‘विकसित भारत’ के लिए महत्वपूर्ण है। यह सैक्टर देश की इंपोर्ट पर निर्भरता को कम करेगा और भारत विश्व स्तरीय मैन्युफैक्चरिंग एंव एक्सपोर्ट हब के रूप में स्थापित हो सकेगा, जिससे आर्थिक विकास के साथ भविष्य के लिए हाई क्वालिटी नौकरियों के नए अवसर पैदा होंगे।(लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)