एक ही गलत कदम भविष्य को बर्बाद कर सकता है

Edited By ,Updated: 02 Jul, 2024 09:19 AM

a single wrong move can ruin your future

हर व्यक्ति बच्चा हो या बूढ़ा, अज्ञानता, अभाव, अशक्ति व अहम और अहंकार के कारण कई प्रकार की नादानियां व गलतियां करता रहता है। यही गलतियां उसको भविष्य में इतनी भारी पड़ती हैं कि उसके पास पछताने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं रहता।

हर व्यक्ति बच्चा हो या बूढ़ा, अज्ञानता, अभाव, अशक्ति व अहम और अहंकार के कारण कई प्रकार की नादानियां व गलतियां करता रहता है। यही गलतियां उसको भविष्य में इतनी भारी पड़ती हैं कि उसके पास पछताने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं रहता। बच्चों की बात करें तो आज के बच्चे ऐसे माहौल में पल रहे हैं कि उनकी आदतें जन्म से ही बदलती जा रही हैं। उनकी सोच में परिवर्तन होता जा रहा है तथा यदि इस पर अंकुश न लगाया गया तो उनका व देश का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। वे हर समय मोबाइल पर कुछ न कुछ देखते हुए पाए जाते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को खाना खिलाने के लिए भी मोबाइल को उनके हाथ में थमाना पड़ता है। 

यह ठीक है कि बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है। पढ़ाई में कुछ बच्चे तो पूरे के पूरे अंक प्राप्त कर रहे हैं मगर जब यह बच्चे 15-16 वर्ष की आयु में प्रवेश करते हैं तब इनके शरीर में अद्भुत-सा बदलाव आने लगता है तथा वे अपने मां-बाप की बात को भी नहीं मानते तथा उनको रोकने पर वे अपनों से भी नफरत करने लग पड़ते हैं। स्कूलों में जो भी पढ़ाई करवाई जाती है वह केवल अंक बढ़ाने के लिए ही करवाई जाती है तथा नकल का सहारा भी खूब लिया जाता है मगर ऐसी पढ़ाई हमारी जिंदगी में कहीं काम आने वाली नहीं होती। आज हजारों-लाखों युवा इसलिए बेरोजगार हैं क्योंकि उन्हें किसी पेशे से संबंधित पढ़ाई नहीं करवाई गई। आज चिन्ता इसी बात की है कि बच्चे कहीं गलत रास्ते पर जाकर अपना भविष्य नष्ट न कर लें। एक शायर ने खूब कहा है कि  ‘एक ही कदम उठा था राहे शौक में और मंजिलें तमाम उम्र मुझे ढूंढती रहीं।’ आम सामान्य अध्यापक जो भी  बच्चों को पढ़ाते हैं वह तो गूगल इत्यादि पर भी उपलब्ध होता है। 

बहुत ही कम ऐसे अध्यापक हैं जो बच्चों को संस्कारी व शिष्टाचारी बनाते हैं तथा उनको एक अच्छा इंसान बनने की राह पर चलाते हैं। अध्यापक ही एक ऐसा वर्ग है जिससे बच्चे कुछ सीखते हैं। मां-बाप को तो बच्चे नकारते रहते  हैं और उन्हें आऊटडेटड कहते हैं। आखिर मां-बाप अपने साथ कुछ नहीं ले जाने वाले, वो तो सब कुछ अपने बच्चों के हवाले ही छोड़कर चले जाते हैं। श्री राम ने अपने मां-बाप की खुशी के लिए अपने जीवन काल के 14 वर्ष खुशी-खुशी वनवास में काट दिए थे। बच्चों को चाहिए कि वे अपने मां-ृबाप के साथ कुछ समय गुजारें। एक सर्वे के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत बच्चे नशे का शिकार हो चुके हैं तथा रोज सुनने को मिलता है कि फलां बच्चा नशे की ओवरडोज लेकर परमात्मा को प्यारा हो गया। नशा एक बहुत बड़ा व्यापार बन चुका है। नशे की दुकानें हर जगह मिल सकती हैं। आज के युवा मजनू बनते जा रहे हैं तथा नपुसंकता का शिकार भी होते जा रहे हैं। छोटी उम्र में ही बूढ़े लगने लगते हैं। 

आखिर क्या कारण है कि 140 करोड़ वाले देश में कुछ गिने-चुने खिलाड़ी ही ओलिम्पिक मैडल जीत पाते हैं। सरकार की तरफ  से उन्हें हर सुविधाएं दी जाती हैं मगर फिर भी वे कुछ विशेष नहीं कर पाते हैं। कहा गया है कि मिट्टी जब तक अपना हक अदा न करे, हवाओं के झोंकों से गुलाब के फूल नहीं खिला करते। मंजिलें चाहे कोई भी क्यों न हों, चाहे राजनीति और चाहे कोई अन्य व्यवसाय इन सब को पाने के लिए एक दृढ़ निश्चय व खूबसूरत रास्ता चुनने की आवश्यकता होती है। एक बार गलत रास्ता पकड़ लिया तो वह आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा पाता तथा भटकने के लिए मजबूर कर देता है। दूसरी तरफ भटकाने वाले लोग बहुत होंगे जो आपको कभी भी सफल होते हुए नहीं देखना चाहेंगे। यदि आप कमजोर होंगे तो कोई भी व्यक्ति आपकी सहायता व सहयोग के लिए आगे नहीं आएगा। आज जरूरत है आत्मनिर्भर, सशक्त व मजबूत बनने की ताकि आप किसी के आगे झुकने के लिए मजबूर न हो पाएं। 

बच्चों को अपने बूढ़े मां-बाप की कद्र करनी चाहिए क्योंकि मां- बाप एक ऐसी नेमत हैं जो एक बार छिन जाए तो दोबारा लौट कर कभी नहीं आती। मां-बाप तो वो बहार है जिस पर एक बार फिजा आ जाए तो ये बहारें फिर से नहीं आती। माता-पिता की हर खुशी का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि संसार में पवित्र रिश्ता मां-बाप का ही होता है। बच्चों को अपने मां-बाप की सेवा श्रवण कुमार की तरह करनी चाहिए। श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को तीर्थयात्रा करवाने के लिए उन्हें अपने कंधों पर कांवडिय़ों की मदद से भ्रमण करवाया था तथा जब वह माता-पिता की प्यास बुझाने के लिए बावड़ी पर पानी लेने के लिए गया तो राजा दशरथ के तीर से मारा गया था। याद रखें कि दुनिया में लाने वाले जब दुनिया में नहीं रहते तो दुनिया अंधेरी लगती है। 

बच्चों को अपने मां-बाप की उपेक्षा करने की गलती नहीं करनी चाहिए,  नहीं तो सारी उम्र ही पछताना पड़ेगा।गलत मार्ग पर चलने का बोध होते ही यदि यू-टर्न ले लिया जाए तथा गलती का प्रायश्चित कर लिया जाए तो मनुष्य अपनी खोई हुई शक्ति व प्रतिष्ठा को पुन: प्राप्त कर सकता है। यदि धूल चेहरे पर हो तथा शीशा ही साफ  करते रहें तब कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं।रास्ते में जाते समय यदि कीचड़ के छींटें पड़ जाए तो यह सोचना मूर्खता ही होगी कि अब तो कीचड़ लग ही गया तो अब क्यों न कीचड़ में लोट-पोट हो जाया जाए। बुद्धिमता तो इसी में है कि कीचड़ को धो लिया जाए कि पुन: कीचड़ न लगे। सुबह का भूला हुआ अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते। 

यदि गलती का समुचित प्रायश्चित कर पुन: प्रयास किया जाए तो सन्मार्ग व उज्ज्वल भविष्य की प्राप्ति हो सकती है। यदि नाव के नीचे छेद हो जाए तो नाव में पानी भर जाने से वह डूब सकती है और यदि वही छेद नाव के ऊपर हो तो वह दिखाई भी देगा और उसे समय रहते ठीक भी कर लिया जाएगा। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ और प्रशासनिक अधिकारियों में भी अहंकार की एक ही भूल उन्हें अर्श से फर्श पर ले आती है। सत्ता में आंखें अंधी हो जाती हैं तथा वह दूसरों को कुछ नहीं समझते मगर उनको यह गलती इतनी भारी पड़ती है कि लोग उनके अच्छे कार्यों को भी भूलना शुरू कर देते हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि ऐसी भी गलती न करें जो मिटाने से भी न मिट पाए।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)
 

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