Edited By ,Updated: 29 Oct, 2024 05:34 AM
सम मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने नागरिकता कानून की धारा-6ए को वैध करार दिया है। देश विभाजन के बाद 26 जनवरी, 1950 तक जो लोग पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान, यानी बंगलादेश से भारत आ गए, उन्हें भारत में नागरिकता...
असम मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने नागरिकता कानून की धारा-6ए को वैध करार दिया है। देश विभाजन के बाद 26 जनवरी, 1950 तक जो लोग पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान, यानी बंगलादेश से भारत आ गए, उन्हें भारत में नागरिकता मिलने के लिए संविधान में प्रावधान किया गया था।
ऑल असम स्टूडैंट यूनियन ने असम से अवैध प्रवासियों को निकालने के लिए 1979 में आंदोलन शुरू किया था। राजीव गांधी सरकार ने 1985 के असम समझौते से आंदोलनकारियों की अनेक मांगों को मानते हुए नागरिकता कानून में धारा-6ए जोड़कर अनेक बदलाव किए। उसके अनुसार पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) से असम आए प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए नई कट ऑफ डेट 1 जनवरी, 1966 निर्धारित की गई। उस समझौते के अनुसार 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान से असम आए लोगों को पंजीकरण के माध्यम से नागरिकता का हल मिला लेकिन अगले 10 सालों तक उन्हें चुनावों में वोटिंग का अधिकार नहीं मिला।
25 मार्च, 1971 की कट ऑफ डेट के बाद असम में आए सभी प्रवासियों को अवैध माना जाएगा। मोदी सरकार ने साल 2019 में नागरिकता अधिनियम में धारा-6बी जोड़कर 31 दिसंबर, 2014 की नई कट ऑफ डेट का निर्धारण किया, जिसे सी.ए.ए. के नाम से जाना जाता है। उसके तहत पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम-बहुल पड़ोसी देशों से आने वाले हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भारत में नागरिकता का प्रावधान किया गया।
नागरिकता में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की जरूरत नहीं : संविधान पीठ के फैसले के अनुसार संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार संसद को नागरिकता के बारे में कानून बनाने के अधिकार हैं। राजीव गांधी सरकार ने आंदोलनकारियों के साथ हुए समझौते को लागू करने के लिए कानून में बदलाव किए थे। जजों के अनुसार असम समझौता शांति स्थापित करने के लिए सियासी समाधान था, जबकि नागरिकता कानून में बदलाव उस फैसले को लागू करने के लिए विधाई समाधान था। सुप्रीम कोर्ट में साल 2009 की याचिका से असम में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन लागू करने की मांग की गई। उसके बाद साल 2012 में कई संगठनों ने धारा-6ए को गैर-कानूनी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
साल 2014 में 2 जजों की बैंच ने इस मामले को संविधान पीठ में सुनवाई के लिए भेज दिया। 10 साल संविधान पीठ में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ समेत 4 जजों ने बहुमत के फैसले से नागरिकता कानून में संशोधन को संवैधानिक ठहराया है। जबकि जस्टिस पारदीवाला ने अन्य जजों से असहमति जताते हुए धारा-6ए को मनमानीपूर्ण और अताॢकक बताया है। बहुमत के फैसले के अनुसार नागरिकता कानून में संशोधन, संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 29 के खिलाफ नहीं है।याचिकाकत्र्ताओं का दावा था कि असम समझौते को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन किए बगैर नागरिकता कानून में संशोधन गलत और अमान्य हैं। याचिकाकत्र्ताओं के तर्क को निरस्त करते हुए फैसले में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 के अनुसार संसद को नागरिकता कानून में बदलाव के अधिकार हैं।
याचिका में कहा गया था कि बंगलादेश की सीमा पूर्वोत्तर भारत में कई राज्यों से मिलती है, जबकि नागरिकता कानून में बदलाव सिर्फ असम राज्य के अनुसार किया गया है। जजों के अनुसार असम में जमीन की उपलब्धता बहुत कम है, इसलिए वहां पर घुसपैठ और नागरिकता के मामले को विशेष तरीके से ट्रीट करना असंवैधानिक नहीं है। देश के अन्य राज्यों और असम के मामलों में नागरिकता के लिए अलग कट ऑफ डेट को याचिकाकत्र्ताओं ने भेदभावपूर्ण बताया था। संविधान पीठ के फैसले से असम समझौते की कट ऑफ डेट और उसके अनुसार नागरिकता कानून में हुए बदलावों को संवैधानिक मान्यता मिल गई है।
सोनोवाल फैसले के अनुसार घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए : 1971 के पहले और बाद में पूर्वी पाकिस्तान, जो बाद में बंगलादेश बना, से बड़े पैमाने पर भारत में प्रवासी आए थे। शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बंगलादेश से फिर पलायन शुरू हो गया है, इसलिए नागरिकता कानून में बदलाव पर मुहर वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। 4 जजों के बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि जाली दस्तावेज से आए प्रवासियों के कारण धारा-6ए के दुरुपयोग की आशंका बढ़ गई है। सनद रहे कि जस्टिस पारदीवाला वरिष्ठ जज हैं, जो भविष्य में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनेंगे। उनके अनुसार भ्रष्ट अधिकारियों के सहयोग से बनाए गए झूठे सरकारी रिकॉर्ड, गलत तारीख, गलत वंशावली और जाली दस्तावेज की मदद से असम में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो रही है। जज के अनुसार कट ऑफ डेट के 53 साल बाद भी लोग नागरिकता के लिए आवेदन दे सकते हैं, जो गलत है।
संविधान पीठ के फैसले से नागरिकता से जुड़े कई जटिल कानूनी मुद्दों का समाधान होगा। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि किन लोगों की नागरिकता पर कोई खतरा नहीं है और कानून में बदलाव के अनुसार किन लोगों को नागरिकता मिल सकती है। उसके अलावा अवैध प्रवासियों को चिन्हित करके भारत से बाहर निकालना जरूरी है।
जजों ने कहा कि प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सर्वानंद सोनोवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के साल 2006 के फैसले में दिए गए दिशा-निर्देशों पर सख्ती से अमल करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार रोहिंग्या या अन्य घुसपैठियों को जब तक शरण नहीं मिले, तब तक उन्हें भारत में रहने का कानूनी अधिकार नहीं है। फैसले के अनुसार असम के साथ दूसरे राज्यों से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने के बारे में अब राज्यों और केंद्र सरकार को कार्रवाई करने की जरूरत है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)