Edited By ,Updated: 30 May, 2024 06:02 AM
998 में स.प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने लेखक को यह पता लगाने के लिए पश्चिम बंगाल भेजा कि ज्योति बसु के नेतृत्व में वामपंथी सरकारें 1977 से लगातार क्यों चल रही हैं। किन प्रणालियों और प्रथाओं के तहत वे प्रांत के लोगों तक...
1998 में स.प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने लेखक को यह पता लगाने के लिए पश्चिम बंगाल भेजा कि ज्योति बसु के नेतृत्व में वामपंथी सरकारें 1977 से लगातार क्यों चल रही हैं। किन प्रणालियों और प्रथाओं के तहत वे प्रांत के लोगों तक पहुंचने और उनके साथ संबंध बनाए रखने में सफल हुई हैं। बार-बार चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से बड़े बहुमत के साथ वामपंथी सरकारें सत्ता को प्राप्त करने में सफल क्यों हुई हैं?
पश्चिम बंगाल में कृषि सुधार कांग्रेस सरकारों द्वारा शुरू किए गए थे लेकिन वे अपने वर्गीकरण चरित्र के कारण विफल रहे। वामपंथ ने अपने वर्ग चरित्र, विचारधारा और व्यापक जनसम्पर्क के माध्यम से सदियों पुरानी ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था पर आधारित एक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चेतना पैदा की। गरीब किसानों, श्रमिक वर्ग और जागरूक वर्ग ने उनका भरपूर समर्थन किया। थोड़े समय के लिए 1969 और 1971 में वामपंथी सरकारों के गठन, कार्यक्रमों, प्रशासनिक परिवर्तनों ने संघर्षरत लोगों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
पश्चिम बंगाल में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 70 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हुए थे और सरकारों को लगता था कि इस क्षेत्र में सुधार के बिना राज्य समृद्ध नहीं हो पाएगा। करीब 2 दशकों तक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भूमि सुधार, ग्रामीण स्थानीय सरकारें, समान वितरण, कृषि विकास, साक्षरता अभियान, स्वास्थ्य, स्वच्छ जलापूर्ति, सामाजिक वाणिज्य कार्यक्रम लागू किए गए। प्रति हैक्टेयर उपज बढ़ाने के लिए खेती, उच्च उपज वाले बीज, उर्वरक, कृषि मशीनरी और कौशल पर ध्यान केंद्रित किया गया। ऐसे जनसमर्थक निरंतर कार्यक्रमों के कारण लोगों की कुल आबादी का 30 प्रतिशत गरीबी रेखा से ऊपर उठाया गया।
शहरी विकास के लिए ट्रेड यूनियनों के तहत विकास कार्य शुरू किए गए। लोकतंत्र मजदूर वर्ग को सौंप दिया गया। सरकार ने सोचा कि यदि हर विभाग, अद्र्धसरकारी, निजी क्षेत्र में ट्रेड यूनियन स्थापित हो तो इससे राज्य का विकास होगा। सरकार चलाने, बहुपक्षीय विकास के लिए राजनीतिक पहिए कहे जाने वाले एक अनुशासित पार्टी कैडर पिरामिड की स्थापना की गई। इसमें जागरूक, वैचारिक, प्रतिबद्ध, राजनीतिक रूप से परिपक्व लोग शामिल थे जो विभिन्न स्तरों पर सरकार, नौकरशाही और पार्टी के काम के लिए प्रतिबद्ध थे। राजनीतिक पहिया ग्रामीण कमेटी, स्थानीय कमेटी, जोनल कमेटी, जिला कमेटी, राज्य कमेटी पर आधारित था। इस सीढ़ी पर किसी भी व्यक्ति या नेता को थोपा नहीं जाना चाहिए। पंचायत उम्मीदवार से लेकर सांसद तक का चुनाव इसके माध्यम से होता था।
नौकरशाही पूर्णत: नियंत्रण में थी। यह कैबिनेट और सरकार की नीतियों के साथ काम करने के लिए जिम्मेदार थी। रिश्वत का कोई स्थान नहीं था। लापरवाही बर्दाश्त नहीं की गई थी। राजनीतिक पहिया सरकार और पुलिस के साथ गहराई से जुड़ा हुआ था। मुख्यमंत्री ने कानून-व्यवस्था पर पुलिस आयुक्त से रिपोर्ट मांगनी होती थी ताकि कानून-व्यवस्था बनी रहे। सभी स्तरों पर सार्वजनिक शिकायतों और मामलों के निपटारे के कारण विधायकों, सांसदों या मंत्री कार्यालयों में भीड़ का कोई सवाल ही नहीं था। मंत्रिमंडल जनता की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार का था। यह मंत्रिमंडल नीतियां बनाने से लेकर इन्हें लागू तक करता था। मुख्य सचिव के नेतृत्व में अमला इन्हें क्रियान्वित करता था। आवश्यकता पडऩे पर मुख्यमंत्री या मंत्री, मुख्य सचिव, गृह सचिव से मंत्रणा करते थे। नौकरशाही पूरी तरह से जवाबदेह थी।
राज्य की नौकरशाही और पुलिस राज्य सरकार के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य थी। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के खिलाफ प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक बदमाशी थी। कांग्रेस पार्टी के नेताओं का मानना था कि राष्ट्रीय कांग्रेस नेतृत्व ने भी उनके समर्थन और वामपंथी सरकारों के विरोध पर ध्यान नहीं दिया। उनका मानना था कि वामपंथी दल विशेषकर माकपा एक शक्तिशाली कैडर आधारित राजनीतिक संगठन है जिसका हम मुकाबला नहीं कर सकते। कृषि क्षेत्र में 1991-92 में जन-जागरूकता, सरकारी सहयोग, कड़ी मेहनत और तकनीकी जानकारी के कारण पश्चिम बंगाल में अनाज उत्पादन में 34 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। जबकि हरियाणा में 24 प्रतिशत और पंजाब में 23 प्रतिशत (जो उग्रवाद के कगार पर था) वृद्धि दर्ज की गई। अक्सर राज्य के खजाने को राज्य के राजनेता और नौकरशाही खा जाते हैं और उसे लूट लेते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने इसे पूरी तरह से नियंत्रित और संरक्षित किया गया।
मुख्यमंत्री तीन गाडिय़ों से कार्यालय जाते थे जिसमें 2 सुरक्षा के लिए और तीसरा वाहन उनके लिए था। मंत्री के पास केवल एक कार होती थी जबकि कोई सुरक्षा वाहन नहीं था। पश्चिम बंगाल की एकमात्र विधानसभा बिना सुरक्षा के मौजूद थी। राज्य के मुख्यमंत्री ज्योति बसु का कहना था ‘‘समाज अनुशासन के बिना जीवित नहीं रह सकता। यह कितना हास्यास्पद है कि किसी को फुटपाथ पर सिर्फ इसलिए अतिक्रमण करने की इजाजत दी जाए क्योंकि वह गरीब है।’’ कोलकाता को 3 चीजों पर गर्व है- 1. मैट्रो, 2.विद्या सागर सेतू हुगली नदी और पुल, 3. बिजली कटौती के बिना 24 घंटे आपूर्ति।-दरबारा सिंह काहलों