अकाली संकट : पांच सिंह साहिबानों के लिए परीक्षा की घड़ी

Edited By ,Updated: 26 Jul, 2024 05:31 AM

akali crisis testing time for the five singh sahibans

पंजाब में 10 साल तक लगातार शासन करने के बाद अकाली दल बादल पिछले 2 बार से सत्ता से बाहर है और अब लोकसभा चुनाव में करारी हार ने अकाली दल को विभाजन के कगार पर खड़ा कर दिया है। अकाली दल की लड़ाई अब अकाल तख्त साहिब तक पहुंच गई है।

पंजाब में 10 साल तक लगातार शासन करने के बाद अकाली दल बादल पिछले 2 बार से सत्ता से बाहर है और अब लोकसभा चुनाव में करारी हार ने अकाली दल को विभाजन के कगार पर खड़ा कर दिया है। अकाली दल की लड़ाई अब अकाल तख्त साहिब तक पहुंच गई है। हालांकि ऐसी स्थिति पहले भी कई बार बन चुकी है, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है क्योंकि इस बार अकाली दल इतनी कमजोर स्थिति में है जहां पहले कभी नहीं पहुंचा और इस बार बड़े विद्रोही नेताओं की संख्या कब्जा करने वाले गुट से अधिक है जबकि पहले आपसी लड़ाइयों के दौरान, कब्जा करने वाला गुट आमतौर पर सरकार चला रहा था और बड़े नेताओं का समर्थन भी कब्जा करने वाले गुट के साथ अधिक था। 

अकाली दल में फूट का इतिहास बहुत पुराना है। अगर 1966 में भाषा के आधार पर पंजाबी सूबे के अस्तित्व में आने की बात करें तो पंजाब विधानसभा के पहले चुनाव के दौरान अकाली दल 2 गुटों में बंट गया था। एक गुट का नेतृत्व संत फतेह सिंह और दूसरे गुट का नेतृत्व मास्टर तारा सिंह ने किया। विभाजन के इतिहास में न जाकर, आज हम केवल विभाजन के उन मामलों के बारे में बात करेंगे जिनमें अकाल तख्त को हस्तक्षेप करना पड़ा था या अकाली नेताओं द्वारा अकाल तख्त से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया था।  1984 में आप्रेशन ब्ल्यू स्टार के बाद केंद्र सरकार ने अकाली दल के नेतृत्व जिनमें जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा, प्रकाश सिंह बादल, जत्थेदार जगदेव सिंह तलवंडी और संत हरचंद सिंह लौंगोवाल को जेल भेज दिया तो अकाल तख्त के तत्कालीन जत्थेदार साहिब ने पार्टी चलाने के लिए पांच प्यारे नियुक्त किए। 

1988 में उस समय के अकाल तख्त के जत्थेदार रागी दर्शन सिंह ने उस समय अहम भूमिका अदा की जब उदारवादी नेताओं और चरमपंथी नेताओं के बीच अलगाव अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था। 1990 के शुरूआती दौर में कार्यवाहक जत्थेदार प्रो. मंजीत सिंह अकाली दल को एकजुट करने की कोशिश में थे और उन्होंने ऐसा प्रयास भी किया मगर स. प्रकाश सिंह बादल इस निर्णय से अलग ही रहे। 1999 में अकाली नेताओं गुरचरण सिंह टोहरा और प्रकाश सिंह बादल के झगड़े के समय अकाल तख्त के तत्कालीन जत्थेदार भाई रणजीत सिंह ने भी समझौता करवाने का प्रयास किया मगर उन्हें जत्थेदारी से हटा दिया गया। 

अकाली दल की लड़ाई का अकाल तख्त पर पहुंचने का यह पांचवां मौका है और इस बार अकाल तख्त के जत्थेदार तथा अन्य 4 सिंह साहिबान के लिए बागी अकाली नेताओं की ओर से दी गई माफी की चिट्ठी पर निर्णय करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। एक ओर तो सिंह साहिबान इन अकाली गुटों में फैसला करवाने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरी ओर  सर्बजीत सिंह जो अभी सांसद बने हैं, ने फरीदकोट में एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए अमृतपाल सिंह एम.पी. के साथ मिलकर नई पार्टी बनाने की घोषणा कर डाली। इस बात ने अकाल तख्त के लिए एक नई मुश्किल खड़ी कर दी है। इसके अलावा कई अन्य अकाली गुट भी हैं जिनमें मुख्य तौर पर भाई जसबीर सिंह रोडे और पूर्व जत्थेदार भाई रणजीत सिंह सुखबीर सिंह बादल का विरोध कर रहे हैं। 

सवाल यह पैदा होता है कि अकाल तख्त केवल अकाली दल बादल की एकता करवाने के लिए या इसके नेताओं की ओर से की गई गलतियों का निर्णय ही करेगा? बागी अकाली नेताओं ने खुद को अकाल तख्त के समक्ष पेश कर दिया और सुखबीर सिंह बादल को भी अकाल तख्त पर पेश होने की मांग की जिसे मानते हुए अकाल तख्त के जत्थेदार ने सुखबीर सिंह बादल को भी 15 दिनों में अकाल तख्त साहिब पर पेश होने के लिए कहा है और सुखबीर बुधवार को अपने साथियों सहित अकाल तख्त पर पेश होकर स्पष्टीकरण दे आए हैं। यहां सवाल यह पैदा होता है कि जब बागी अकाली नेता बादल सरकार के दौरान हुई गलतियों के लिए खुद को जिम्मेदार मान रहे हैं तो काबिज गुट में से केवल सुखबीर सिंह बादल को ही पेश होने के लिए क्यों कहा गया है। क्या बादल सरकार के अन्य भागीदार नेता इन गलतियों में शामिल नहीं थे? 

बेशक दोनों गुट अकाल तख्त साहिब को सुप्रीम ताकत मानने का दावा करते हैं मगर अकाल तख्त के फैसले का इंतजार किए बिना ही दोनों गुट अपनी-अपनी चालें चलने की कोशिश कर रहे हैं। सुखबीर सिंह बादल ने वर्किंग कमेटी की बैठक करके पार्टी का ढांचा भंग कर नया ढांचा बनाने के अधिकार ले लिए हैं और पार्टी की सबसे बड़ी कोर कमेटी बंद कर दी है और दूसरा गुट भी एक कन्वीनर गुरुप्रताप सिंह वडाला के अतिरिक्त 11 या 13 सदस्यों की प्रिजीडियम बनाने की तैयारी में जुटा हुआ है। दोनों गुटों की ऐसी कार्रवाइयां दर्शाती हैं कि दोनों गुट अकाल तख्त को दिल से समर्पित नहीं हैं और अपना-अपना दबदबा बनाने के प्रयास में हैं। इन सब बातों पर सोच-विचार करके कोई निर्णय लेना अकाल तख्त के जत्थेदार और बाकी 4 सिंह साहिबान के लिए एक परीक्षा की घड़ी होगा।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
 

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